पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२६३

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सारणा ५०८३ सारनाथ सारणा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ पारद अादि रसो का एक प्रकार का सारदर्शी-वि० [स० सारदर्शिन्] मार तत्व को जाननेवाला । सस्कार। सारण। २ विस्तार करना। फैलाना (को०) । महत्वपूर्ण प्रश को पहचाननेवाला (को०] । ३ ध्वनि या स्वर उत्पन्न करना (को॰) । सारदा'--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ दे० 'शारदा' । २ दुर्गा [को०] । सारणि-सञ्ज्ञा सी० [स०] १ गधप्रसारिणी । २ पुनर्नवा । गदहपूरना। सारदा'-सज्ञा पु० [म० शरद् ] स्थल कमल । ३ छोटी नदी। ४ नाली। प्रणालिका। मोरी (को०) । सारदा'- वि० स्त्री० [स०] सार देनेवाली। जो मार दे । साररिणक'--सज्ञा पु० [स०] [स्त्री० सारणिको] १ पथिक । राहगीर । सारदातीर्थ--सज्ञा पु० [म० शारदातीर्थ] एक प्राचीन तीर्थ । बटोही। २ घूम घूमकर बेचनेवाला व्यापारी। फेरीवाला। सारदारु-सञ्ज्ञा पु० [स०] वह लकडी जिसमे मार भाग अधिक हो । विसाती (को०)। सारदासुदरी--सज्ञा स्त्री॰ [स० शारदासुन्दरी] दुर्गा का एक नाम । सारणिक--वि० यात्रा करनेवाला (को०] । सारदी'--सज्ञा स्त्री० [स०] जलपीपल । सारणिकघ्न-सज्ञा पुं० [स०] पथिको का विनाश करनेवाला, सारदी-वि० [स० शारदी] दे॰ 'शारदीय'। उ०-कहुँ कहुँ वृष्टि डाकू। सारदी थोरी। कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी।- सारणी-सज्ञा सी० [स०] १ गंधप्रसारिणी। २. छोटी नदी। ३. मानस,४।१६। दे० 'सारिणी। सारणेश-सज्ञा पु० [स०] एक पर्वत का नाम । सारदूल-सज्ञा पु० [हिं० शार्दूल] दे० 'शार्दूल'। उ०-क्रीडा मृग जाको सारदूल । तन बरन काति मनु हेम फूल । -भारतेदु सारतडुल--सज्ञा पु० [स० सारतण्डुल] चावल । हलका उवाला हुआ चावल जिसके सब दाने साबूत हो। ग्र०, भा० १, पृ० ३७३॥ सारतः--अव्य० [स० सारतस्] १ प्रकृति के अनुसार । प्रकृत्या । २ सारद्रुम-सज्ञा पुं० [स०] १ खैर का पेड । २ वह वृक्ष जिसकी लकडी मे सारभाग अधिक हो। बलपूर्वक । ३ धन के अनुसार । वित्त के अनुसार (को०] । सारतरु-सज्ञा पु० [स०] १ केले का पेड । २. खैर का पेड । सारधाता--सञ्ज्ञा पु० [स० सारधात] १ वह जो ज्ञान उत्पन्न करता सारता-सज्ञा स्त्री० [स०] मार का भाव या धर्म । सारत्व । हो । वोध करानेवाला । २ शिव । सारति- सज्ञा स्त्री० [हिं० सारना] तैयारी। व्यवस्था । उ०-तव सारधान्य-सज्ञा पु० [स०] १ उत्तम धान । बढिया चावल । २ वकील कर जोरि अरज करी कछु अरज की। तव सुजानि दृग वढिया अन्न। मोरि मसलति की सारति करी।-सुजान०, पृ०६। सारधू-सज्ञा स्त्री॰ [हिं०] पुत्री । वेटी। कन्या । सारनैल--सञ्ज्ञा पु० [स०] वैद्यक के अनुसार अशोक, अगर, सरल, सारना-क्रि० स० [हिं० सरना का सक० रूप] १ पूर्ण करना। देवदारु आदि का तेल जिसका व्यवहार क्षुद्र रोगो मे होता है । समाप्त करना। सपूर्ण रूप से करना। उ०-धनि हनुमत सारथि-सज्ञा पु० [स०] १. रयादि का चलानेवाला। सूत । रथ- सुग्रीव कहत है, रावण को दल मारयो। सूर सुनत रघुनाथ नागर। २ ममुद्र । सागर । ३ साथी। सहयोगी (को०)। भयो सुख काज आपनो सारयो ।--सूर (शब्द०) । २. ४ अगुआ । नेता । पथप्रदर्शक (को०)। साधना । बनाना। दुरुस्त करना। ३ सुशोभित करना। सारथित्व--सज्ञा पुं० [स०] १ सारथि का कार्य । २ सारथि का सुदर बनाना । ४ देख रेख करना। रक्षा करना । सँभालना। भाव या धर्म । ३ मारथि का पद । ५ अाँखो मे अजन आदि लगाना । ६ (अस्त्र आदि) चलाना । सचालित करना । उ०--ससि पर करवत सारा काहू । नख- सारथी-सज्ञा पु० [म० सारथि] दे० 'सारथि-१' । उ०-यापने तन्ह भरा दीन्ह बड दाहू।—जायसी (शब्द०)। ७ गलाना। वारण सो काटि ध्वज रुक्म के असुर प्रो सारथी तुरत मारयो । सडाना । उ०--सन असत हे एक काट के जल मे सार। - सूर (शब्द०)। -पलटू०, भा० १, पृ० १७ । ८ काढना। लगाना। उ०--- सारथ्य-सज्ञा पु० [स०] १ रथ आदि का चलाना। गाडी आदि (क) जातहि राम तिलक तेहि सारा ।--मानस, ५। ४६ । हाँकना । २ सवारी । ३ सहायता । मदद। (ख) मारेहु तिलक कहेउ रघुनाथा -मानस, ६ । १०५। सारद@-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० शारदा] सरस्वती । शारदा । उ०-सुक सारनाथ-सज्ञा पु० [म० सारङगनाथ] वनारस से उत्तरपश्चिम चार से मुनी सारद सेवकता चिरजीवन लोमस ते अधिकाने । ऐसे मील पर एक प्रसिद्ध स्थान । भए तो कहा तुलसी जो पै राजिवलोचन राम न जाने । विशेष —तुलसी (शब्द०)। "इंदुयो, जैनियो और बौद्धो का एक प्रसिद्ध त सारद'- वि० [स० शरद >शारद] शारदीय । शरद सवधी। उ०-- मृगदाव है जहाँसे भगवान् बुद्ध ने अपना मैचत्र प्रवर्तन) किया था। यहाँ खुदाई. सोहति धोती सेत मे, कनक वरन तन वाल । सारद वारद प, बौद्ध मदिरो का ध्वसावशेप तथा वीजुरी, भा रद कीजत लाल ।-विहारी (शब्द॰) । जैन मूर्तियाँ पाई गई है । इसके सारद'--सज्ञा पुं० [स० शरद] शरद ऋतु । म भी यहाँ पाया गया है।