सारस ५०८५ साराश सारस--सज्ञा पुं॰ [सं०] [स्त्री० सारसी] १ एक प्रकार का प्रसिद्ध सारमिका-सा सी० [म०] सारस पक्षी की मादा । मारसी (को०] । सुदर पक्षी जो एशिया, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया और युरोप के सारसी-सज्ञा स्त्री० [म०] १ आर्या छद का २३ वा भेद जिसमे ५ गुरु उत्तरी भागो मे पाया जाता है। उ०--मोर हस सारस और ४८ लघु मात्राएँ होती है। २ सारस पक्षी की मादा। पारावत । भवननि पर सोभा अति पावत ।--मानम, ७।२८ । विशेष—इसकी लवाई पूंछ के आखिरी सिरे तक ४ फूट होती सारसुता--ज्ञा स्त्री॰ [म० सूरमुता] यमुना। उ०-निरखति वैठि नितविनि पिय सँग सारसुता की ओर । —सूर (शब्द०)। है। पर भूरे होते है। सिर का ऊपरी भाग लाल और पैर सारसुती@f-सज्ञा स्त्री० [स० सरस्वती] दे० 'सरस्वती' । काले होते हैं। यह एक स्थान पर नहीं रहता वरावर घूमा सारसैधव--सज्ञा पु० [म० सारसैन्धव] सेंधा नमक । करता है। किसानो के नए वीज बोने पर यह वहाँ पहुँच जाता सारस्य'--वि० [म०] जिसमे बहुत अधिक रस हो । बहुत रसवाला । है और वीजो को चट कर जाता है। यह मेढक, घोघा आदि सारस्य'--यज्ञा पुं०१ रसदार होने का भाव । रसीलापन । सरसता। भी खाता है। यह प्राय घास फूस के ढेर मे घोसला बनाकर २ जल का प्राचुर्य । जल की अधिकता (को०)। ३ उत्क्रोश । या खंडहरो मे रहता है। यह अपने बच्चो का लालन पालन कलकल । निनाद (को०)। बडे यत्न से करता है। कही कही लोग इसे पालते है । वाग बगीचो मे छोड देने पर यह कीड़े मकोडो को खाकर उनसे सारस्वत'--नशा पु० [स०] १ दिल्ली के उत्तरपश्चिम का वह भाग जो सरस्वती नदी के तट पर है और जिसमे पजाव का कुछ पेड पौधो की रक्षा करता है। कुछ लोग भ्रमवश हस को ही भाग समिलित है। (प्राचीन आर्य पहले यही पाकर वमे थे और सारस मानते हैं। वैद्यक मे इसके मास का गुण मधुर, अम्ल, इसे बहुत पवित्र समझते थे ।) सारस्वत प्रदेश । २ इस देश कपाय तथा महातिसार, पित्त, ग्रहणी और अर्श रोग का नाशक बताया गया है। के निवासी ब्राह्मण। ३ सरस्वती नदी के पुत्र एक मुनि का नाम । ४ एक प्रसिद्ध व्याकरण । ५ बिल्वदड। ६ वैद्यक मे पर्या०-पुष्कराह । लक्ष्मण। सरसीक । सरोद्भव । रसिक । एक प्रकार का चूर्ण जिसके सेवन से उन्माद, वायुजनित विकार कामी। तथा प्रमेह आदि रोगो का दूर होना माना जाता है । ७. २ हस । ३ गरुड का पुत्र । ४. चद्रमा। ५ स्त्रियो का एक वैद्यक मे एक प्रकार का प्रोपधयुक्त घृत जो पुष्टिकारक माना प्रकार का कटिभूपण। ६ झील का जल । जाता है। ८ एक कल्प का नाम (को०)। ६ वक्तृत्व । विशेष--नदी का जल पहाड आदि के कारण रुक कर जहाँ जमा वाग्मिता (को०) । १० दे० 'सारस्वत कल्प (को०)। होता है, उसे 'सरस' और उसके जल को सारस जल कहते सारस्वत'--वि० १ सरस्वती (वाग्देवी) सवधी। सरस्वती का। हैं। ऐसा जल बलकारी, प्यास बुझानेवाला, लघु, रुचिकारक २ वाक्पटु । वाग्मी । विद्वान् (को०) । ३ सरस्वती नदी सबधी और मलमूत्र को रोकनेवाला माना गया है । (को०)। ४ सारस्वत देश का । ७ कमल । जलज। उ०--(क) सारस रस अचवन को मानो तृपित मधुप जुग जोर। पान करत कहुँ तृप्ति न मानत पलक सारस्वतकल्प--मशा पु० [म०] सरस्वतीपूजन सबधी एक उत्मव का न देत अकोर ।—सूर (शब्द०)। (ख) मजु अजन सहित नाम । सारस्वतोत्सव किो०] । जलकन चुवत लोचन चारु । स्याम सारस मग मनो ससि सारस्वतव्रत--सज्ञा पु० [म.] पुराणानुसार एक प्रकार का व्रत जो श्रवत सुधा सिंगारु । - तुलसी (शब्द०)। ८ खग । पक्षी। सरस्वती देवता के उद्देश्य से किया जाता है । विहग (को०)। ६ सगीत मे एक ताल (को०)। १० छप्पय का विशेषकहते है कि इस व्रत का अनुष्ठान करने ने मनुष्य बहुत ३७ वा भेद । इसमे ३४ गुरु, ८४ लघु, कुल ११८ वर्ण या १५१ बडा पडित, भाग्यवान् और कुशल हो जाता है और उसे मात्राएँ अथवा ३४ गुरु, ८० लघु कुल ११४ वर्ण या १४८ पत्नी तथा मिनो आदि का प्रेम प्राप्त हो जाता है। यह व्रत मात्राएँ होती है। बराबर प्रति रविवार या पचमी को किया जाता है और इसमे सारस--वि०१ तालाव सबधी। २ सारस पक्षी सवधी। ३ चिल्लाने किसी अच्छे ब्राह्मण की पूजा करके उसे भोजन कराया वाला । बुलानेवाला किो॰] । जाता है। सारसक-मशा पुं० [स०] सारस । सारस्वतीय--वि० [म.] सरस्वती सबधी । सरस्वती का। सारसन--सज्ञा पु० [स०] १ स्त्रियो का कमर मे पहनने का मेखला सारस्वतोत्सव--रश पु० [स०] वह उत्सव जिसमे सरस्वती देवी का नामक आभूषण। करधनी । चद्रहार । २ तलवार को पेटी । पूजन किया जाता है। कमरवद । ३ कवच । उरस्त्राण (को०)। सारस्वत्य--वि॰ [म०] सरस्वती सवधी । मरस्वती का। सारसप्रिया-सा श्री० [सं०] सारसी [को०] । साराभस--ना पु० [म.] नीबू का रस | सारसा--सज्ञा पुं० [अ० सालसा] २० 'सालसा' । साराश-सज्ञा पु० [म०] १ खुलासा । सक्षेप । सार। निचोड । २ सारसाक्ष-वि० [मं०] एक प्रकार का रत्न । लाल को०] । तात्पर्य । मतनव। अभिप्राय । ३ नतीजा। परिणाम। सारसाक्षी-मज्ञा स्त्री० [सं०] पद्मलोचना । कमननैनी स्त्री (को०] । ४ उपसहार। परिशिष्ट । हिं• श० १०-३२
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२६५
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