पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२६६

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सारा' ५०६ सारीख, सारीखा सारा'--सना सी० [स०] १ काली निसोथ । कृपण निवृत्ता। २ दूव । सचरा, सत्त नाम उर नाहिं । ते घट मरघट मारिखा, भूत वस दूर्वा । ३ शातला। ४ थूहर । ५ केला। ६ कुश । कुशा ता मांहिं । दरिया० बानी, पृ०६। (ख) सु र सदगुरु (को०) । ७ तानिसपन्न । सारिग्गा उपकारी नहिं कोइ ।-मु दर० ग्र०, भा० २, सारा-मा पु० १ एक प्रकार का अलकार जिसमे एक वस्तु दूसरी पृ०६६७। से बढकर कही जाती है । जैसे, ऊखहु ते मधुर पियूपहु ते मधुर सारिणी'-मचा स्त्री० [स०] १ सहदेई । सहदेवी। महाबला । पीत- प्यारी तेरे अोठ मधुरता को सागर है। पुप्पा। २ कपाप । ३ घमासा । दृरानभा । कपिल शिशपा । सारा--मशा पु० [स० श्यालक] दे० 'साला'। काला सीसो । ४ गध प्रसारिणी । ५ रक्त पुनर्नवा । ६ जल- सारा--वि० [स० सर्व] [वि॰ स्त्री० सारी] समस्त। सपूर्ण । समूचा। प्रणाली । स्रोत की धारा (को०) । पूग। उ०-के है पाकदामन तू नरियाँ मे आज । वडाई बडी सारिणी-मज्ञा स्त्री० १ दे० 'सारणी' । २ वह तालिका या ग्रथ तुज है सारियां मे अाज ।--दक्खिनी०, पृ० ८४ । जिससे ग्रहो आदि की गति का स्मवद्ध ज्ञान प्राप्त होता हो । सारा-सा पु० [हिं० अोसारा] दे० 'प्रोसारा' । उ०-जव जैसे,—चद्र सारिणी, सूर्यसारिणी। ३ सूची। तालिका । सारे मे धूप फैल जाए तब कही आँख खुले ।—फिसाना०, फेहरिस्त । भा० ३, पृ० ३६८ । सारिव-सज्ञा ॰ [सं०] एक प्रकार का धान । सारादान - सज्ञा पुं० [स०] सार वस्तु को ग्रहण करना। उत्कृष्ट या सारिवा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ अनतमूल । सर्वोत्तम को चयन करना [को०] । पर्या-शाग्दा। गोपी। गोपकन्या। गोपवल्ली। प्रतानिका । सारापहार--सज्ञा पुं० [म०] सार अश या सपत्ति को लूटना किो०] । लता । प्रास्फोता । काप्ठ शारिवा। गोपा। उत्पन सारिवा । सारामुख--सहा पु० [स०] एक प्रकार का धान या चावल किो०] । अनता । णारिवा । श्यामा। साराम्ल-सज्ञा पु० [म०] १ जैवीरी नीबू । २ धामिन । २ काला अनतमूल । सारार्थी-वि० [स० सारार्थिन्] सार भाग का इच्छुक । लाभ लेने का पर्या०-कृष्ण मूली। कृष्णा । चदन सारिवा। भद्रा। चदन गोपा। चदना । कृपण वल्ली। इच्छुक (को॰] । साराल-सज्ञा पुं० [सं०] तिल । सारिवाद्वय-सज्ञा पुं० [सं०] अनतमूल और श्यामा लता इन दोनो का समूह। साराव-वि० [स०] नादयुक्त । रवयुक्त (को०] । सारिप्ट-वि० [म०] अरिष्ट अर्थात् अमगल एवम् अशुभ लक्षणो से सारावती-सज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार का छद जिसे सारावली भी युक्त । मृत्यु के लक्षणो से युक्न [को०] । कहते है। सारिष्ठ- वि० [स०] १ सबसे सु दर । २ सवमे श्रेष्ठ । सारि-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ पासा या चौपड खेलनेवाला । २ जुआ सारिसूक्त - तज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन ऋपि जो ऋग्वेद के कुछ खेलने का पासा। उ०-ढारि पासा साधु सगति केरि रसना मनो के द्रष्टा थे। सारि । दाँव अव के परयो पूरी कुमति पिछली हारि। सूर सारी-सशा सी० [म०] १ सारिका पक्षी। मैना। उ०-शुभ (शब्द०)। ३ गोटी । ४ एक पक्षी । मैना (को०)। सिद्धात वाक्य पढते हैं शुक सारी भी आश्रम के ।-पचवटी, यौ०-सारिक्रीडापामे का खेल । गोटियो का खेल । सारि- -पृ०६।२ पामा । गोटी । ३ सातला। सप्तला । थूहर । फलक = विसात जिसपर गोटी खेलते है। ४ भौहो की मगिमा या वक्ता (को॰) । सारिक'-सञ्ज्ञा पु० [सं०] दे॰ 'सारिका' । सारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० शाटिका, शाटी, हिं० साडी] १ दे० 'साडी' । सारिक'-सञ्ज्ञा पु० [अ० सारिक] [स्त्री० सारिका] चोर । तस्कर [को०] । उ०-तन सुरग सारी, नयन अजन, बेंदी भाल । सजे रही जग सारिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ मैना नामक पक्षी। दे० 'मैना' । जालिमा भामिनि देखहु लाल ।-स० सप्तक, पृ० २५२ । उ०-वन उपवन फल फूल, सुभग सर शुक सारिका हस सारी-सज्ञा स्त्री० [हिं० साला] स्त्री की वहन । पत्नी की वहन । पारावत ।—सूर (शब्द॰) । २ सारगी, सितार, वीण आदि सारी-सशा सी० [स० सार] मलाई । बालाई । साढी । तन वाद्यो का ऊँचा उठा हुआ वह भाग जिसके ऊपर से सारी"--मश पु० [स० सारिन्] वह जो अनुकरण करनेवाला हो । होकर तार जाता है । घुडिया। घोरिया (को०)। ३ चाडाल वह जो अनुसरण करे। वीणा (को०)। ४ विश्वस्त व्यक्ति । चर (को०)। सारी - वि० [स० सारिन्] १ गमनशील । जानेवाला। गता। सारिकामुख-सञ्ज्ञा पु० [स०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का २ किसी वस्तु का सार भाग लेनेवाला (को०)। सारीख, सारीखा-वि० [स० सदृक्ष, प्रा. सारिक्ख] [वि॰ स्त्री० सारिखाg+-वि० [सं० सदश या सदृक्ष] दे० 'सरीखा' । उ०-(क) सारीखी] समान | तुल्य । सदृश । उ०--(क) जोध सुर तुम्ह सारिखे सत प्रिय मोरे।-मानस, ५ । (ख) सतगुरु सग न असुर वो सगेवर जूटिया, बरोबर कर सारीख वाहाँ ।-रघु० कीडा।