गया है सिंघाडी ६००१ सिंदूर अबीर बनाने में भी यह आटा काम में आता है। वैद्यक मे उ०-निजकर पुनि पत्रिका वनाई । कुकुम मलयज विंदु सिंचाई। सिंघाडा शीतल, भारी कसैला वीर्यवर्द्धक, मलरोधक, वात -रघुराज (शब्द०)।२ सीचने का काम । वृक्षो मे जल देने का कारक तथा रुधिरविकार और निदोप को दूर करनेवाला कहा काम । ३ सोचने का कर या मजदूरी । सिचाना, सिँचाना-क्रि० स० [हिं० सीचना का प्रे० रूप] १ पानी से छिडकाना। २ सीचने का काम कराना। पर्या-जलफल । वारिकटक । त्रिकोणफल । सिंचित--वि० [स० सिञ्चित] [स्त्री० सिंचिता] १ जल छिडका हुआ २ सिंघाडे के आकार की तिकोनी सिलाई या बेल बूटा । ३ सोनारो छोटो से तर किया हुआ । सीचा हुआ । का एक औजार जिससे वे सोने की माला बनाते हैं। ४ एक सिंचिता-मज्ञा स्त्री० [स० सिञ्चिता] पिप्पली। पीपर। प्रकार की मुनिया चिडिया। ५ समोसा नाम का नमकीन पकवान जो सिंघाडे के आकार का तिकोना होता है। ६ सिंचौनी, सिँचौनो --सञ्ज्ञा क्षी० [हिं० सीचना + औनी (प्रत्य॰)] सिंघाडे के आकार की मिठाई । मीठा समोसा । ७ एक प्रकार दे० 'सिंचाई। की प्रातिरावाजी। ७ रहट की लाट मे ठोकी हुई लकडी जो सिंजा-तज्ञा स्त्री० [म० मिजा] १ अलकारो की ध्वनि । भूपणो की लाट को पीछे की ओर घूमने से रोकती है। रुनभुन । २ दे० 'शिंजा'। सिंघाडी-मञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सिंघाडा] वह तालाव जिसमे सिंघाडा रोपा सिंजालपारी-सज्ञा स्त्री० [देश] एक औजार । विशेष दे. 'गावलीन'। जाता है। सिंजित--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सिञ्जित] शब्द । ध्वनि । झनक । झकार । सिंघाए-मज्ञा पु० [स० सिडवाण] दे० 'सिंहाण' । उ०-घुटुरुन चलत घु घुरू वाज। सिंजित सुनत हस हिय सिंघाएक-सञ्ज्ञा पु० [८० सिडधाणक] ३० 'सिंहाणक' । लाजै ।--लाल कवि (शब्द०)। सिंघारना@f--क्रि० स० [स० सहारण] सहार करना । उ० सिंडिकेट-सज्ञा पु० [अ०] १ सिनेट या विश्वविद्यालय की प्रवध धनुधारे । रे धनुधारे। सर एका वाल सिंघारे ।-रघु० रू०, सभा के सदस्यो या प्रतिनिधियो की समिति। २ धनी पृ० १५५। व्यापारियो या जानकार लोगो की ऐसी मडली जो किसी कार्य सिघासन सज्ञा पु० [स० सिहासन, प्रा० सिंघासण, सिंघासन] दे० को, विशेषकर अर्थसबधी उद्योग या योजना को अग्रसर करने के 'सिंहासन' । उ०—(क) दशरथ राउ सिंघासन वैठि विराजहिं लिये वनी हो। हो।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) तहाँ सिंघासन सुभग निहारा। सिंदन--सज्ञा पुं॰ [स० स्यन्दन] दे० 'स्यदन' । उ०--गज वाजि दिव्य कनकमय मनि दुति कारा ।--मधुसूदन (शब्द॰) । सु सिंदन जान चढे । -ह. रासो, पृ०७८ । सिंघिणी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] नासिका [को॰] । सिंदरवानी--सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की हलदी। सिधिनी'-तशा स्त्री० [सं०] नासिका । नाक । विशेष--इस हलदी की जड से एक प्रकार का तीखर निकलता सिधिनी--सज्ञा स्त्री० [स० सिंह, प्रा० सिंघ+ हिं० इनी (प्रत्य॰)] है । यह असली तीखुर मे मिला भी दिया जाता है। दे० 'सिहिनी'। सिंदुक--नन्ना पु० [स० सिन्दुक] सिंदुवार वृक्ष । सभालु । सिंघिया-सञ्ज्ञा पु० [स० शृङगिक] दे० 'सिहिनी' (विष)। सिंदुर--सज्ञा पु० [भ० सिन्दूर] दे० 'सिंदूर'। सिंघो--सज्ञा स्त्री० [हिं० सोग] १ एक प्रकार की छोटी मछली जिसका सिंदुररसना--सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सिन्दुर रमना ?] मदिरा। शराव । रग सुखीं लिए हुए होता है। इसके गलफडे के पास दोनो तरफ (अनेकार्थ०)। दो कॉटे होते हैं । सोठ । शुडी। सिंदुरिया-वि० [हि० सिदुर + इया (प्रत्य॰)] सिंदूर जैसे रग सिंधू -सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का जीरा जो कुल्लू और बूशहर वाला । सिंदूरिया (को॰) । (फारम) से आता है और काले जीरे के स्थान पर बिकता है। सिदुरी--मज्ञा स्त्री॰ [स० सिन्दूर] बलूत की जाति का एक छोटा सिघेला, सिँघला --सज्ञा पु० [सं० सिंह, प्रा० सिंघ+ हि० एला पेड जो हिमालय के नीचे के प्रदेश मे चार साढे चार हजार (प्रत्य॰)] शेर का बच्चा। उ०-तौ लगि गाज न गाज फुट तक पाया जाता है। सिंघेला । सौह साह सी जुरौ अकेला ।--जायसी (शब्द॰) । सिदुवार--संज्ञा पु० [म० सिन्दुवार सँभालू वृक्ष । निर्गु डी। सिंचता-सज्ञा सी० [स० सिञ्चता] दे० सिंचिता' [को०] । सिदुवारक-सशा पुं० [सं० मिन्दुवारक] दे० 'सिंदुवार' [को॰] । सिंचन-एशा पु० [स० सेचन] १ जल छिडकना । पानी के छोटे डाल- सिंदूर-सज्ञा पु० [न० मिन्दूर] १ इंगुर को पीसकर बनाया हुआ कर तर करना । २ पेडो मे पानी देना। सौचना। एक प्रकार का लाल रंग का चूर्ण जिसे सौभाग्यवती हिंदू स्त्रियां सिंचना, सिंचना-कि० अ० [हिं० सीचना] सीचा जाना। अपनी मांग मे भरती है। सिचाई, सिंचाई - सज्ञा स्त्री० [हिं०/सोच + आई (प्रत्य॰)] १ पानी विशेष--सिंदूर स्त्रियो का सौभाग्य का चिह्न माना जाता है। छिडकने का काम । जल के छीटो से तर करने की क्रिया। गणेश और हनुमान की मूर्तियो पर भी यह घी मे मिलाकर हिं० २० १०-३४
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२८१
दिखावट