पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/२९०

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अादि । मुद्रा। सप्रदाय। सिकोही ६०१० सिखेरवंद सिकोली मे वीडा ठलाय, कसेंडी मे चरणामृत ठलाय, पाछ पात्र ४ मोतियो का गुच्छा (जो तोल मे एक धरण हो)। ३२ रत्ती सव धोय साजि के ठिकाने धरिए ।-वल्लभ पु० (शब्द०)। तौल का मोतियो का समूह । ५ नील । सिकोही- वि० [फा० शिकोह (तडक भडक)] १ अानवानवाला। सिक्थक-सशा पु० [सं०] २० 'मिक्य' । गर्वीला । दर्पवाला । २ बीर। बहादुर। उ०-तरवार सिरोही सिक्य-मा पु० [म०] दे० 'शिक्य' [को०] । सोहती। लाख सिकोही कोहती।--गोपाल (शब्द॰) । सिक्ष्य-सहा पु० [सं०] स्फटिक । कांच । विल्लौर [को०] । सिक्कक--सज्ञा पु० [सं०] बाँसुरी मे लगाने की जीभी या उसके स्वर सिखड-मश पु० [सं० शिखण्ड] मोर की पूंछ । मयूरपक्ष । उ- को मधुर वनाने के लिये लगाया हुअा तार । मिरनि मिखड सुमन दल मडन वाल सुभाय बनाए '-तुलसी सिक्कड--सज्ञा पु० [स० शृडखल] दे० 'सीकड' । (शब्द०)। सिक्कर--सज्ञा पु० [हिं० सीकड २० 'सीकड' । उ०--अकरि प्रारि सिखडी-मज्ञा पुं० [सं० शिखण्डी] दे० 'शिखडी' । करि डकरि डकरि वर पकरि पकरि कर सिक्कर फिरावते । सिख-सज्ञा स्त्री० [म. शिक्षा, प्रा० सिक्खा, हिं० सीय] सीख । --गोपाल (शब्द०)। शिक्षा। उपदेश । उ०-(क) गुरु सिख देइ राय पहिं गए। सिक्का-सज्ञा पुं० [अ० सिक्कह] १ मुहर । मुद्रा। छाप। ठप्पा । -मानम, २।१०। (ख) राजा जु सो कहा कही ऐसिन की सुनै २ स्पए, पैसे आदि पर की राजकीय छाप । मुद्रित चिह्न । सिख, माँपिनि सहित विप रहित फ्ननि की।-केशव (शब्द०)। ३ राज्य के चिह्न अादि से अकित धातु खड जिसका व्यवहार (ग) किती न गोकुल कुल वधू, काहि न किहि मिख दीन । कोने देश के लेन देन मे हो। टकसाल मे ढला हुआ धातु का टुकडा जो तजी न कुल गली है मुरली सुर लीन।-विहारी (शब्द॰) । निर्दिष्ट मूल्य का धन माना जाता है। रुपया, पैमा, रफी सिखg-मशा सी० [स० शिखा चोटी । जैसे, नखमिख । सिख'-~-मज्ञा पु० [स० शिप्य, प्रा० सिक्ख] १ शिष्य । चेला। २ मुहा०-सिक्का वैठना या जमना = (१) अधिकार स्थापित होना। प्रभुत्व होना। (२) प्रातक जमना। प्रधानता प्राप्त होना। गुरु नानक तथा गुरु गोविंदसिंह आदि दम गुरो का अनुयायी रोव जमना। धाक जमना। सिक्का बैठाना या जमाना % नानकपथी। ३ वह जो सिख संप्रदाय का (१) अधिकार स्थापित करना प्रभुत्व जमाना। (२) अनुयायी हो। अातक जमाना। प्रधानता प्राप्त करना। रोब जमाना। विशेष - इस सप्रदाय के लोग अधिकतर पजाव में हैं। सिक्का पड़ना= सिक्का ढलना। यो०-सिखपाल = शिप्य का पालन। उ०-गुरु है दीनदयाल कर ४ पदका तमगा। ५ माल का वह दाम जिममे दलाली न सिखपाल मदाई। प्रख भक्ति परसग सदा सेवक सुखदाई । शामिल हो । (दलाल)। ६ मुहर पर अक बनाने का ठप्पा -राम० धर्म०, पृ० १७५ । ७ नाव के मुंह पर लगी एक हाथ लवी लकडी। ८ लोहे की सिख इमलो सज्ञा पुं० [हिं० सिख +अ० इल्म या इमला] भालू को गावदुम पतली नली जिससे जलती हुई मशाल पर तेल टपकाते नचाना सिखाने की रीति । है। ६ वह धन जो लडकी का पिता लडके के पिता के पास विशेष – कलदर लोग पहले हाथ मे एक लोहे की चूडी पहनते हैं सगाई पक्की होने के लिये भेजता है। और उसे एक लकडी से बजाते है। इसी के इशारे पर वे भालू सिवको-सज्ञा स्त्री० [अ० सिक्कह] १ छोटा सिक्का । २ चार पाने को नचाना सिखाते है। (२५ पैसे) का मिक्का। चवन्नी। सूकी। ३ आठ पाने सिखना-नि स० [स० शिक्षण] दे० 'सीखना'। (पचास पैसे) का सिक्का । अग्नी। सिखर' मज्ञा पुं० [म० शिखर] १ शृग। दे० 'शिखर' । सिवख'--सज्ञा पु० [स० शिष्य] दे० 'सिख'। अरुन अधर दसननि दुति निरखत, विद्रुम सिखर लजाने। सूर सिवख'--सज्ञा सी० [स० शिक्षा, प्रा० सिक्खा, हिं० सीख] दे० 'सिख स्याम पाछी वपु काछे, पटतर मेटि विराने ।-सूर०, उ०-दिन्नी जु मिक्ख तव सेख को, अप्प अप्प सिवरन गवय । १०।१७५६ । २ मुकुट का किरीट । --ह. रासो, पृ० ४३। सिखर--सज्ञा पुं० [म० शिक्य + धर] दे० 'सिकहर' । सिक्त-वि० [सं०] १ सिंचित । सीचा हुआ। २ भीगा हुअा। तर । सिखरन-सज्ञा स्त्री० [स० श्रीखण्ड] दही मिला हुआ चीनी का शरबत गीला । ३ जिसे गर्भयुक्त किया गया हो । गभित (को०)। जिसमे केसर, गरी आदि मसाले पडे हो । उ०-(क) वासीधी सिक्तता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] सिंचित होने या सीचे जाने की क्रिया या सिख रन अति सोभी। मिलै मिरच मेटत चकनीधी।--सूर भाव [को०] । (शब्द०)। (ख) सिखरन सौध छनाई काढी। जामा दही दूधि सिक्ति-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ सीचने की क्रिया। २. उद्गारण । स्त्राव । सो साढी ।-जायसी (शब्द०)। निपेक । निपेचन (को०)। सिखरबद-वि० [स० शिखर + फा० बद (प्रत्य॰)] शिवरयुक्त । सिक्य-मज्ञा पुं॰ [सं०] १ उवाले हुए चावल का दाना। भात का कलशयुक्त । उ०-तव थोरी सी दूरि एक सिखरबध एक देहरा एक दाना। सीथ । २ भात का ग्रास या पिड। ३ मोम । दीस्यो।-दो सौ बावन०, भा० १,१०, १७८ । O