पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३०५

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सिफारिश ६०२५ सिम्त पर लाला मदन मोहन के यहाँ हुआ है। -श्रीनिवास ग्र०, मारा काम सिमट गया । ६ सकुचित होना। लज्जित होना। पृ० १६४। ७ सहमना । सिटपिटा जाना । संयो॰ क्रि०--जाना। सिफारिश-सज्ञा स्त्री० [फा० सिफारिण] १ किसी के दोष क्षमा करने के लिये किसी से कहना सुनना। २ किसी के पक्ष मे कुछ सिमटी-मज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का कपड़ा जिसकी बुनावट खेस के समान होती है। कहना सुनना। किसी का कार्य सिद्ध करने के लिये किसी से अनुरोध । ३ माध्यम । जरिया । वसीला। ४ नौकरी देनेवाले सिमर --मज्ञा पु० [स० शाल्मलि ?] सेमर । विशेप दे० 'सेमल' । उ०--चदन भरम सिमर आलिंगल सालि रहल हिय काटे । से किसी नौकरी चाहनेवाले की तारीफ। नौकरी दिलाने के -विद्यापति, पृ०६१। लिये किसी की प्रशसा। जैसे,-नौकरी तो सिफारिश से सिमरख:-मज्ञा पुं० [फा० सगर्फ] दे० 'शिंगरफ' । मिलती है । ५ सस्तुति। सिमरगोला-सञ्ज्ञा पुं० [सिमर १ + गोला] एक प्रकार की मेहराव । क्रि० प्र.--करना ।—होना । सिफारिशनामा-सज्ञा पु० [फा० सिफारिशनामह,] सिफारिशी पत्र सिमरन-सज्ञा पु० [स० स्मरण] याद करना। स्मरण । स्मृति । या चीठी। सिमरना-क्रि० स० [स० स्मरण] दे० 'मुमिरना'। उ०-(क) राम नाम का सिमरनु छोडिया माजा हाथ विकाना ।-तेग सिफारिणी वि० [फा० सिफारिशी]१ सिफारिशवाला । जिसमे सिफा- बहादुर (शब्द०)। (ख) सिमरे जो एक बार ताको राम बार रिश हो। जैसे,-सिफारिशी चिट्ठी। २ जिसकी सिफारिश की वार विसरे विसारे नाही सो क्यो विसराइये । हृदयराम गई हो । जैसे,-सिफारिशी टट्ट । ३ अनुशसा या सिफारिश (शब्द०)। करनेवाला। सिमरिख-सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की चिडिया । सिफारिणी टटू--सशा पु० [फा० सिफारिशो+हिं० टट्ट] वह जो सिमल-सञ्ज्ञा पु० [स० सीर ( = हल) + माला] १ हल का जा। केवल सिफारिश या खुशामद से किसी पद पर पहुंचा हो। २ जूए मे पडी हुई खूटी। सिफाल -सज्ञा स्रो॰ [फा० मिफाल] १ मिट्टी का बरतन | मृत्पात्र । सिमला आलू--सञ्ज्ञा पु० [हिं० शिमला + अालू] एक प्रकार का २ मिट्टी का ठीकरा किो०] । सिफालगर वि० [फा० सिफालगर] मिट्टी के बरतन बनानेवाला । पहाडी बडा पालू । मरबुली। सिमसिम-वि० [?] जो कुछ कुछ पार्द्र या शीतल हो । कुम्हार (को०] । सिफाली-वि० [फा० सिफाली] मिट्टी का । मृत्तिकानिर्मित । मिट्टी सिमसिमाना--क्रि० अ० [?] साधारण आर्द्रता या शीतलता प्रतीत होना। का बना हुया किो०] । सिमाना-सज्ञा पुं० [म० सीमान्त] सिवाना । हद । सिफ्त, सिक्ति-सज्ञा भी० [फा० सिफत] दे० 'मिफत' । सिमाना'-क्रि० स० [हिं० सिलाना] दे० 'मिलाना'। उ०--लायो (क) खुदा तुज को शाही मजावार है । सिफ्त को तेरी कुछ न बेगि याही छन मन की प्रवीन जानि लायो दुख मानि व्योत लई आकार है । --दक्खिनी०, पृ० २६६ । (ख) भी सु दर कहि न सो मिमाइ कै ।--नाभा (शब्द॰) । सकै कोइ तिमनो जिसदी सिफ्ति अलेपै।-सु दर० ग्र०, भा० सिमिटना-क्रि० अ० [स० समित + हि० ना(प्रत्य०) या देश.] १, पृ० २७५ सिविका-सज्ञा स्त्री० [म० शिविका] दे० 'शिविका' । उ०—सिबिका दे० 'सिमटना' । उ०-(क) यह सुनि जहाँ तहाँ ते सिमिटै आइ होइ इक ठौर ।-सूर (शब्द०)। (ख)जलचर वृद जाल सुभग अोहार उघारी ।-- मानस, १।३४८ । अतरगत सिमिटि होत एक पास। एकहि एक खात लालच सिमंत--सज्ञा पु० [स० सीमन्त] दे० 'सीमत' । उ०-स्याम के बस नहिं देखत निज नास |--तुलसी (शब्द॰) । सीस सिमत सराहि सनाल सरोज फिराइ के मारो।- सिमृति--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्मृति] दे॰ 'स्मृति' । उ०---द्रुपद सुता मन्नालाल (शब्द०)। को लज्जा राखी। वेद पुरान सिमृति सब साखी ।--लाल कवि सिम--वि० [स०] पत्येक । सपूर्ण । समग्र । ममस्त [को०] । (शब्द०)। सिमई--सज्ञा स्त्री० [हिं० सिंवई] ३० 'सिवॆई,' 'सिवैयाँ' । सिमेट-पज्ञा पु० [अ० सीमेट] १. एक विशेप प्रकार के पत्थर का सिमट -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० सिमटना] सिमटने की क्रिया या भाव । विशिष्ट प्रक्रिया से तैयार किया हया चूर्ण जो पलस्तर आदि सिमटना--फि० अ० [स० ममित (= एकन) + हिं० ना (प्रत्य०) या करने के काम मे आता है। २ एक प्रकार का लसदार गारा देश०] १ दूर तक फैली हुई वस्नु का थोडे स्थान मे आ जाना। जो सूखने पर बहुत कडा और मजबूत हो जाता है। सुकडना । सकुचित होना । २ शिकन पडना। मलवट पडना। सिमेटना --क्रि० स० [म० समित + हिं० ना] दे० 'समेटना'। ३. उधर उधर बिखरी हई वस्तु का एक स्थान पर एकत्र सिम्त-ज्ञा स्त्री० [अ०] पोर । तरफ। दिशा। उ०-इस हिंद से होना । बटोरा जाना । वटुरना । इकट्ठा होना। ४ व्यवस्थित सब दूर हुई कुफ की जुल्मत, की तने व रहमत, नक्कारए ईमा होना। तरतीव से लगना । ५ पूरा होना । निवटना । जैसे, को हरेक सिम्त बजाया।-भारतेदु ग्र०, भा० १, पृ० ५३१ । हिं? श? १०-३७ -