पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३१४

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सिलफची ६०३४ मिलामा w सिलफची - सज्ञा स्त्री॰ [फा० चिलमची] दे० 'चिलमची' । सिलहटिया-वि० [मिलहट + हिं० इया (प्रत्य॰)] मिलहट सवधी । सिलफोडा--सज्ञा पु० [हिं० सिल + फोडना] पापाणभेद । पत्यरचूर सिल हट का। नाम का पोवा। सिलहार, सिलहारामज्ञ पुं० [सं० शिलकार] खेत मे गिरा हुआ सिलबट्टा--सज्ञा पु० [हिं० सिल + वट्टा] सिल और बट्टा अर्थात् सिलहिला-वि० [हिं० सील, सीड + हीला ( = कीचढ)] [वि० सी० अनाज बीननेवाला। लोटिया । मिलहिली] जिसपर पैर फिमले । रपटनवाला। रपटीला। मिलवरुपा-सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का बांस जो पूरवी वगाल कीचड से चिकना । उ०-घर कबीर का शिखर पर, जहाँ मिल- की ओर होता है। हली गैल । पाय न टिक पिपीलिका, खलक न लादे वल । सिलमाकुर-सज्ञा पु० [अ० सेलमेकर] पाल बनानेवाला । (लरकरी)। -कबीर (शब्द०)। सिलवट'--सरा स्त्री॰ [देश॰] सुकडने से पड़ी हुई लकीर। चुनट। सिलही-सज्ञा सी० [देश॰] एक प्रकार का पक्षी। बल । शिकन । सिकुडन । वली । सिला--सन्ना सी० [म० शिला] दे० 'शिला' । उ०-हह मिला मव क्रि० प्र०--डालना।-पडना। चद्रमुखी परसे पद मजुल कज तिहारे। कीन्ही भली रघुनदन जू सिलवट-सज्ञा पुं० [हिं० सिल+वट्टा] १ दे० 'सिलवट्टा'। २ सिल करुना करि कानन को पग धारे ।-तुलसी (शब्द०)। जिसपर मसाला आदि पीसते हैं। सिला-सा पु० [स० शिल] १ खेत मे कटी फसल उठा ले जाने के सिलवाना-क्रि० स० [हिं० सीना का प्रे० रुप] किसी को सोने मे पश्चात् गिरा हुअा अनाज। कटे खेत मे मे चुना हुआ प्रवृत्त करना । सिलाना। दाना। उ०-कगं जो कछु धरी सचि पचि सुकृत सिला सिलसिला'-तज्ञा पुं० [अ०] १ बंधा हुआ तार। क्रम । परपरा बटोरि। पैठि उर वरबस दयानिधि दम लेत जोरि ।-तुननी २ श्रेणी। पक्ति। जैसे,—पहाडो का मिलसिला। ३ (शब्द०)। जजीर । लडी। ४ व्यवस्था । तरतीब । जैसे,—कुरमियो क्रि० प्र०-चुनना ।-बीनना। को सिलसिले से रख दो। ५ कुलपरपरा। वशानुक्रम । २ पछोडने या फटकने के लिये रखा हुआ अनाज का ढेर। ३ सबध । लगाव । वेश | ८ बेडी। शृखला । निगड। कटे हुए खेत मे गिरे अनाज के दानो को वीन या चुन कर उनी से जीवन निर्वाह करने की वृत्ति अथवा किया। शिलवृत्ति । सिलसिला'-वि० [सं० सिक्त] १ भीगा हुआ। आर्द्र । गीला। २ जिसपर पैर फिसले । रपटनवाला । रपटीला। ३ चिकना । मृदु । सिला'-सज्ञा पुं० [अ० सिलह] १ बदला। एवज । पलटा। प्रतीकार। उ०-वैदी माल तमोल मुख, सीस सिलसिले वार । दृग प्रांजे राजे खरी, येही महज सिंगार ।--विहारी (शब्द॰) । मुहा०—मिले मे = बदले मे। उपलक्ष मे। २ इनाम । पुरस्कार (को०) । ३ उपहार । तोहफा (को०)। सिलसिलावदी-मज्ञा स्त्री० [अ० सिलसिला+फा० वदी] १ नम का बधान । तरतीब । २ कतारबदी। पक्ति बँधाई। सिलाई--सशा स्वी० [हिं० नीना + आई (प्रत्य॰)] १ सीने का काम। सूई का काम । २ सीने का ढग । जैसे,—इम कोट की सिलाई सिलसिलेवार- वि० [अ० सिलसिला + फा० वार] तरतीववार । अच्छी नहीं है। ३ सोने की मजदूरी । ४ टांका। सीवन । त्रमानुसार। सिलाई --सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक कीडा जो प्राय ऊस या ज्वार के सिलह सज्ञा पु० [अ० सिलाह] हथियार । शस्त्र । उ०—ापु गुमल खेतो मे लग जाता है। इसका शरीर भूरापन लिए हुए गहरा करि मिलह करि हुवं नगारे दोइ । देत नगारे तीसरे ह सवार लाल होता है। कोइ।-सूदन (शब्द०) सिलाजीत-सग पु० [स० शिलाजतु] १ पत्थर की चट्टानो का यौ०-सिलहखाना । सिलहदस्त = शस्त्रपाणि। सशस्त्र । सिलह लसदार पसेव जो बडी भारी पुष्टई माना जाता है। विशेष दे० दार= (१) दे० 'सिलहपोश'। (२) योद्धा। सिपाही । शस्त्र 'शिलाजीत' । २ गेर।गरिक । जीवी । सिनहदारी = सिपाही का काम या पेशा। सिलहपोश = सिलाना-क्रि० स० [हिं० सीना का प्रे० स्प] सीने का काम दूसरे शस्त्रधारी । हथियारबद। से कराना। सिलवाना। सिलहखाना--सञ्ज्ञा पुं० [अ० सिलाह + फा० खानह] अस्त्रागार । सिलाना-कि० स० [हिं० मिराना] दे॰ 'सिराना' । हथियार रखने का स्थान । सिलावाक-सज्ञा पुं० [हिं० शिला+पाक] पथरफूल । छरीला । सिलहट-सना पुं॰ [देश॰] १ आसाम का एक नगर । २ एक प्रकार शैलज। का अगहनी धान। ३ एक प्रकार की नारगी जो सिलहट सिलाबी-वि० [हिं० सीड, सील+ फा० प्राव ( = पानी), अथवा फा० (प्रामाम) मे होती है। सैलाबी ?] सीडवाला । तर । सिलहटिया-मज्ञा सी० [देश॰] एक प्रकार की नाव जिसके आगे पीछे सिलामा-संज्ञा पुं० [अ० सिलामह ] १ मसाला ग्रादि पीसने की मिल। दोनो तरफ के मिक्के लवे होते है। २ वट्टा । दे० 'सिलीट' (को०] ।