पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सीटपटांग ६०४२ सीता निकले। पृ० २४॥ सीट पटांग--सज्ञा स्त्री० [हिं० सीटना + (ऊट) पटांग] बढ बढकर की ३ उत्तरोत्तर उन्नति का क्रम । धीरे धीरे आगे बढ़ने की परपरा। जानेवाली बातें । घमड भरी बात । ४ हैंड प्रेस का एक पुर्जा जिसपर टाइप रखकर छापने का सीटी-सज्ञा स्त्री॰ [स० शीत] १ वह पतला महीन शब्द जो अोठो को प्लटेन लगा रहता है। ५ घुटिया के आकार का लकडी का गोल सिकोडकर नीचे की ओर आघात के साथ वायु निकालने पाया जो खडमाल में चीनी साफ करने के काम मे आता है। से होता है। ६ एक गराटीदार लकडी जो गिरदानक की आड के लिये क्रि० प्र०-बजाना। लपेटन के पास गडी रहती है । (जुलाहे)। मुहा०--सीटी देना = सीटी के शब्द से बुलाना या और कोई सीत@~सन्ना स्त्री॰ [म० सीता] दे० 'मीता' । उ०--वड कंवरि सकेत करना। सीत विदेह री रघुनाथ वर राजेम ।--रघु० रु०, पृ० ८४ । २ इसी प्रकार का शब्द जो किसी बाजे या यत्न आदि के भीतर की सीता--सशा पु० [स० शीत] दे० 'शीत' । हवा निकालने से होता है । जैसे,—रेल की सीटी। सीता--संज्ञा पुं० [स० मिक्थ] दे० 'सीय'। उ०-बटा महापरमाद मुहा०--सीटी देना % (१) सीटी का शब्द निकालना । जैसे,- सीत सतन कर छाडन ।-पलटू०, भा० १, पृ० १५ । रेल सीटी दे रही है। (२) सीटी से सावधान करना । सीतकर--सशा पुं० [सं० शीतकर] चद्रमा । उ०-हों ही वीरी विरह ३ वह बाजा या खिलौना जिसे फूंकने से उक्त प्रकार का शब्द वस के वीरौ सबु गाउँ । कहा जानिए कहत है समिहिं सीत- कर नाउँ।--विहारी र०, दो०६५। यौ मीटीवाज = मुंह से वार वार सीटी की आवाज निकालने- सीतपकड--सज्ञा पुं० [हिं० शीत + पकडना] एक गेग जो हाथी को वाला। शीत से होता है। सीठ-सचा स्त्री० [म० शिष्ट, प्रा० सिट्ठ ( = शेष)] दे० 'सीठी'। सीतपन-सज्ञा पुं॰ [स० सीतापति] दे० 'सीतापति'। उ०-- सीठना--प्रज्ञा पु० [स० अशिष्ट, प्रा० असिट्ठ + हिं० ना (प्रत्य॰)] प्रारभै दौलत पुन पाणा पुणे सुवाणा सीतपत 1--रघु० २०, अश्लील गीत जो स्त्रियाँ विवाहादि मागलिक अवसरो पर गाती है। सीठनी । विवाह की गाली। सीठनी-सज्ञा स्त्री० [हिं० सीठना] विवाह की गाली। सीतमयूख-सञ्ज्ञा पु० [सं० शीतमयूख] चद्रमा। सीतकर । सुघा- कर । उ०-घोर अनल को भखत है सीतमयूख सहाय।- सीठा-वि० [सं० शिप्ट, प्रा० सिट्टी (= वचा हुआ)] नीरस । दीन० ग्र०, पृ० १७६ । पीका । विना स्वाद का। वेजायका। सीठापन--सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सीठा+पन] नीरसता। फीकापन। सीतल --वि० [स० शीतल] दे० 'शीतल' । सीठी'-सज्ञा स्त्री० [सं० शिष्ट, प्रा० सिट्ठी (= बचा हुआ)] १ सीतल चीनी--सज्ञा स्त्री० [सं० शीतल+हिं० चीनी] दे० 'शीतल- चीनी'। फल, फूल पत्ते आदि का रस निकल जाने पर बचा हया निकम्मा अश । वह वस्तु जिसका रस या सार निचुड गया सीतलपाटी-सशा स्रो० [म० शीतल+ हिं० पाटी] १ एक प्रकार की हो । खूद । जैसे,--अनार की सीठी, भांग की सीठी, पान की बढिया चिकनी चटाई। २ पूर्व बगाल और आसाम के जगलो सीठी । २ निस्सार वस्तु । सारहीन पदार्थ । ३ नीरस वस्तु । मे होनेवाली एक प्रकार की झाडी जिससे चटाई या सीतल- फीकी चीज। पाटी बनती है। ३ एक प्रकार का धारीदार कपडा । सीठी--वि० सी० दे० 'सीठा'। सीतल बुकनी--सज्ञा स्त्री० [हिं० शीतल +बुकनी] १ सत्तू । सतुग्रा । सीड़--सज्ञा स्त्री॰ [स० गीतल या शीत+प्रा० ड (प्रत्य॰)] सील । २ सतो की वानी । (साधु) । तरी । नमी। सीतला--सज्ञा स्त्री० [म० शीतला] दे० 'शीतला'। सीढी--सज्ञा स्त्री० [सं० श्रेणी या देशी सिड्ढी ( = सीढी)] १ किसी यौ०-सीतला माई = शीतला माता । ऊँचे स्थान पर जम क्रम से चढने के लिये एक के ऊपर एक सीता-सज्ञा सी० [मं०] १ वह रेखा जो जमीन जोतते गमय हल की वना हुआ पैर रखने का स्थान । निसेनी। जीना। पंडी। फाल के धंसने से पडती जाती है । कूड । २ बाँस के दो बल्लो का बना लवा ढाँचा, जिसमे थोडी थोडी विशेष-वेदो मे सीता कृषि की अधिष्ठात्री देवी और कई मनो दूर पर पैर रखने के लिये डडे लगे रहते है और जिसे भिडाकर की देवता है । तैत्तिरीय ब्राह्मण मे सीता ही सावित्री और किसी ऊँचे स्थान तक चढते हैं । बाँस की वनी पंडी। पाराशर गृह्यसूत्र मे इद्रपत्नी कही गई हैं। क्रि० प्र०-लगाना। २ मिथिला के राजा सीरध्वज जनक की कन्या जो श्रीरामचद्र जी यौ०--सीढी का डडा=पैर रखने के लिये बांस की सीढी मे जडा की पत्नी थी। मुहा०-सीढी सीढी चढना = क्रम क्रम से ऊपर की ओर बढना। विशेष-इनकी उत्पत्ति की कथा यो है कि राजा जनक ने सतति धीरे धीरे उन्नति करना । के लिये एक यज्ञ की विधि के अनुसार अपने हाथ से भूमि हुया डडा।