पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३२३

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६०४३ . सोपा था। सीताकुड सीतावर जोती । जुती हुई भूमि की डूंड (सीता) से रीता उत्पन्न हुई । है। इसके विपय मे प्रसिद्ध है कि जब देवताओ ने सीता जी की सयानी होने पर सीता के विवाह के लिये जनक ने धनुर्यश पूजा नही स्वीकार की, तब वे फिर अग्निपरीक्षा के लिये किया, जिसमे यह प्रतिज्ञा थी कि जो कोई एक विशेप धनुष अग्निकुड मे कूद पडी । आग चट बुझ गई और उसी स्थान पर को चढावे, उससे सीता का विवाह हो। अयोध्या के राजा पानी का एक सोता निकल आया । (२) भागलपुर जिले मे दशरथ के पुत्र कुमार रामचद्र ही उस धनुप को चढा और मदार पर्वत पर एक कुड। (३) चपारन जिले मे मोतिहारी तोड सके इससे उन्ही के साथ सीता का विवाह हुआ। जब से छह कोस पूर्व एक कुड। (४) चटगाँव जिले मे एक पर्वत विमाता की कुटिलता के कारण रामचन्द्र जी ठोक अभिषेक की चोटी पर एक कुड । (५) मिरजापुर जिले मे विध्याचल के समय पिता द्वारा १४ वर्षों के लिये वन में भेज दिए गए, के पास एक झरना और कुड । तब पतिपरायणा सती सीता भी उनके साथ बन मे गई और सीतागोता-सज्ञा पु० [स० सीतागोप्तृ] सीता का रक्षक । जुते हुए वहाँ उनकी सेवा करती रही। वन मे ही लका का राजा रावण खेत का रक्षक [को०] । उन्हें हर ले गया, जिसपर राम ने वदरो का भारी सेना लेकर सीताजानि-सज्ञा पुं० [सं०] वह जिसकी पत्नी सीता हैं--श्रीराम- लका पर चढाई को और राक्षसराज रावण को मारकर वे चद्र। सीता को लेकर १४ वर्ष पूरे होने पर फिर अयोध्या पाए पोर सीतातीर्थ-सज्ञा पुं० [सं०] वायुपुराण में वर्णित एक तीर्थ । राजसिंहासन पर बैठे। सीतात्यय-सज्ञा पु० [स०] अर्थशास्त्र के अनुसार किसानो पर होने- जिस प्रकार महाराज रामचन्द्र विष्णु के अवतार माने जाते है, उसी प्रकार सोता देवो भो लक्ष्मा का अवतार मानी जातो वाला जुरमाना । खेती के सबध का जुरमाना (कौटि०) । है और भक्तजन राम के साथ बराबर इनका नाम भी जपते सीताद्र-य-मञ्चा पु० [स०] खेती के उपादान । काश्तकारी का हैं। भारतवर्ष मे सोता देवी सतियो मे शिरोमणि मानी जातो सामान। है। जब राम ने लोकमर्यादा के अनुसार सीता को अग्नि सीताधर-सञ्ज्ञा पु० [सं०] हलधर । बलराम जी। परीक्षा की थी, तब स्वय अग्निदेव ने सीता को लेकर राम को सीताध्यक्ष सज्ञा पु० [स०] वह राजकर्मचारी जो राजा की निज की भूमि मे खेतीबारी आदि का प्रबध करता हो । पर्या:--वैदेही । जान की । मैयिली । भूमिसभवा । अयोनिजा । सीतानवमी व्रत-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का व्रत । यो०-सीता की मचिया = एक प्रकार का गोदना जो स्त्रियाँ हाय सीतानाथ -सज्ञा पु० [स०] श्रीरामचद्र । मे गुदाती है । सीता की रसोई = (१)एक प्रकार का गोदना । सीतापति-सज्ञा पु० [स०] (सीता के स्वामी) श्रीरामचद्र । (२) वच्चो के खेलने के लिये रसोई के छोटे छोटे बरतन । सीतापहाड़--सञ्ज्ञा पु० [स० सीता + हिं० पहाड] एक पर्वत जो बगाल सीता को पजीरी= कर्पूरवल्ली नाम को लता। के चटगांव जिले मे है। ३ वह भूमि जिसपर राजा की खेती होती हो। राजा की निज सीताफल-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ शरीफा । २ कुम्हडा । की भूमि । सीर। ४ दाक्षायणो देवी का एक रूप या नाम । सीताबट-सञ्ज्ञा पु० [स० सीतावट] द० 'सीतावट' । उ०-विटप ५ आकाशगगा को उन चार धारामो मे से एक जो मेरु पर्वत पर गिरने के उपरात हो जाती है। महीप सुरसरित समीप सोहै, सीतावट पेखत पुनीत होत पातकी। वारिपुर दिगपुर बीच विलसति भूमि, अकित जो जानकी विशेष-पुराणो के अनुसार यह नदो या धारा भद्राश्व वर्ष या चरन जलजात की।-तुलसी ग्र०, पृ० २६२ । द्वीप में मानी गई है। ६ मदिरा। ७ ककहो का पौवा । ८ पातालगारुडी लता। सीतायज्ञ-सज्ञा पु० [स०] हल जोतने के समय होनेवाला एक यज्ञ । एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे रगण, तगण, मगण, सीतारमण-सज्ञा पु० [स०] (सीता के पति) रामचद्र जी। यगण और रगण होते है। उ०--जन्म वीता जात सीता सीतारमन-मज्ञा पु० [स० सीतारमण] श्रीरामचद्र । अत रीता वावरे । राम सीता राम सीता राम सीता गाव सीतारवन, सीतारौन-सञ्चा पु० [स० सीता+रमण, प्रा० रवण, रे। छद ०, पृ० २०७ । १० सीताध्यक्ष के द्वारा एकत्र हिं० रवन, रौन] दे० 'सीतारमण' । किया हुआ अनाज । ११ जनो के अनुसार विदेह की एक सीतालोष्ट-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे० 'सीतालोष्ठ' । नदी का नाम । १३, हल से जुतो हुई भूमि (को०) । १४ कृषि । खेती (को०)। १५ इद्र की पत्नी (को०)। १६ उमा का नाम सीतालोष्ठ-सञ्ज्ञा पु० [स०] जुते हुए खेत की मिट्टी का ढेला (गोभिल (को०)। १७ लक्ष्मी का नाम (को०)। श्राद्धकल्प)। सीतावट-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] प्रयाग और चित्रकूट के बीच एक स्थान सीताकुड -सज्ञा पु० [१० सीताकुण्ड] वह कुड जो सोता देवी के सबध से पवित्न तीर्थ माना जाता हो। जहां वट वृक्ष के नीचे राम और सीता दोनो ठहरे थे। सीतावन-सज्ञा पुं० [स०] एक तीर्थ का नाम (को०] । विशेष--इस नाम के अनेक कुड और झरने भारतवर्ष मे प्रसिद्ध हैं । जैसे,—(१) मुगेर से ढ़ाई कोस पर गरम पानी का एक कुड सीतावर--सच्चा पु० [स०] श्रीरामचद्र।