पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३२९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सीरीज ६०४६ सीसा' सीरीज-सज्ञा स्त्री० [अ० सीरीज] एक ही वस्तु का लगातार क्रम । मीम'-सज्ञा पु० [स०] दे० 'सीसा' । सिलसिला। श्रेणी। लडी। माला। जैसे,-बालसाहित्य सीसक - सज्ञा पु० [स०] सीसा नामक धातु । सीरीज की पुस्तकें अच्छी होती है। सीसज-सज्ञा पुं० [स०] सिंदूर । सीरोसा-सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार की मिठाई । सीसतान--सशा पु० [हिं० सीस + फा० ताज] वह टोपी या ढक्कन सीलघ- सज्ञा भी० [सं० सीलन्ध ] एक प्रकार की मछली। जो शिकार पकडने के लिये पाले हुए जानवरो के सिर चढा विशेष-वैद्यक मे यह श्लेष्मावर्धक, वृष्य, पाक मे मधुर और रहना है और शिकार के समय खोला जाता है। कुलहा। गुरु, वातपित्तहर, हृद्य और आमवातकारक कही गई है। उ०-तुलसी निहारि कपि भालु किलकत ललकत लखि ज्यो सील-सच्चा स्त्री॰ [स० शीतल, प्रा० सीअड] भूमि मे जल की आर्द्रता कंगाल पातरी सुनाज की। राम रुख निरखि हरण्यो हिय सीढ । नमी। तरी। हनुमान मानो खेलवार खोली सीसताज वाज की।--तुलसी (शब्द०)। सील'-सज्ञा पुं० [स० शलाका] लकडी का एक हाथ लबा अौजार सीसताए - सज्ञा पुं० [सं०] अफगानिस्तान और फारस के वीच का जिसपर चूडियाँ गोल और सुडौल की जाती है। प्रदेश । सीस्तान। सील-सज्ञा पु० स० शील] दे० 'शील' । सीसत्रान-तज्ञा पु० [स० शिरस्त्राण] टोप । कूड । शिरस्त्राण । यौ०-सीलवत, सीलवान = शीलयुक्त । सुशील । उ०-सीसनान अवतसजुत मनिहाटक मय नाह । लेहु हरपि सील'-सज्ञ' पु० [अ०] १ मुहर । मुद्रा । ठप्पा । छाप । २ एक प्रकार उर सजहु सिर बहु सोभा जिहिं माह '-रामाश्वमेघ (शब्द०)। की समुद्री मछली जिसका चमडा और तेल बहुत काम सीसपत्र - सज्ञा पुं० [सं०] सीसा धातु । आता है। सीसपत्रक-मशा पु० [स०] सीसा धातु । सील --सञ्ज्ञा पु० [म०] हल [को०] । सीसफूल - सज्ञा पु० [हिं० सीस + फूल] सिर पर पहनने का फूल के सीला'- समा पुं० [स० शिल] १ अनाज के वे दाने जो फसल कटने पर आकार का एक गहना । खेत मे पडे रह जाते है जिन्हें तपस्वी या गरीव लोग चुनते है । सीसम-सज्ञा पुं॰ [फा० शीशम] एक वृक्ष । दे० 'शीशम' । सिल्ला । उ०—(क) कविता खेती उन लई सीला बिनत मजूर ।--(शब्द०)। (ख) विष समान सब विषय बिहाई। सीसमहल-सज्ञा पु० [फा० शीशा+अ० महल] वह मकान जिसकी दीवारो मे चारो ओर शीशे जडे हो। शीशे का महल । वस तहाँ सीला बिनि खाई।-रघुराज (शब्द॰) । २ खेत मे गिरे दानो को चुनकर निर्वाह करने की मुनियो की वृत्ति । सीसर-संज्ञा पु० [स०] १ पराशर गृह्यमूत्र के अनुसार सरमा नाम सीला- वि० [सं० शीतल] [वि॰ स्त्री० सीली] गीला । पार्द्र । तर । नम। की देवताओं की कुतिया का पति । २. एक बालग्रह जिसका रूप कुत्ते का माना गया है। सीवक सन्ना पु० स०] सीनेवाला । सिलाई करनेवाला। सीसल-सज्ञा पु० [देश॰] एक प्रकार का पेड जो केवडे या केतकी सीवडो-मज्ञा पु० [स० सीरगन्त] ग्राम का सीमात । सिवाना (डिं० ) । की तरह का होता है और जिसका रेशा बहुत काम आता सीवन-सज्ञा पुं० [स०] १ सीने का काम । सिलाई । २ सीने से पडी है। रामवास। हुई लकीर। कपडे के दो टुकडो के बीच की सिलाई का जोड । ३ दरार । दराज । सधि । ४ वह रेखा जो प्रडकोश के बीचो- सीसा-मज्ञा पु० [सं० सीसक] एक मूल धातु जो बहुत भारी और नीलापन लिए काले रंग की होती है। बीच से लेकर मलद्वार तक जाती है। विशेष--याधुनिक रसायन मे यह द्रव्यो में माना गया है। सीवना-ज्ञा पु० [स० सीमान्त] दे० 'सिवान' । यह पीटने से फैल सकता है, और तार रूप में भी हो सकता सीवना-क्रि० स० [स० सीवन] दे० 'सीना' । है, पर कुछ कठिनता से। इसका रग भी जल्दी बदला जा सीवनी- सज्ञा स्त्री० [स०] १ सुई । सूचिका । सूची। २. वह रेखा जो सकता है। इसकी चद्दरे, नलियाँ और बदूक की गोलियां आदि लिंग के नीचे से गुदा तक जाती है । बनती है। इसका घनत्व ११ ३७ और परमाणुमान २०६४ विशेष--सुश्रुत मे यह चार प्रकार की कही है-गोफणिश, है। सीसा दूसरी धातुप्रो के साथ बहुत जल्दी मिल जाता और कई प्रकार की मिथ धातुएँ बनाने में काम आता है। तुल्लसीवनी, वेल्लित और ऋजुग्रथि । छापे के टाइप की वातु इसी के योग से बनती है। ३ घोडे का गुदा के नीचे का भाग (को०)। आयुर्वेद मे सीसा सप्त धातुग्रो मे है और अन्य धातुओ के समान सीवी--मञ्च स्त्री० [अनु० सी० मी०] दे० 'सीवी' । यह भी रसीपध के रूप मे व्यवहृत होता है। इसका भस्म कई सी य-वि० [सं०] सीने लायक । सोने के योग्य [को०) । रोगो मे दिया जाता है । वैद्यक मे सीसा आयु, वीर्य और काति सीस'--सज्ञा पु० [म० शीर्ष ] १ सिर। माथा । मस्तक । ३. कधा। को बढानेवाला, मेहनाशक, उष्ण तथा कफ को दूर करनेवाला (डि०)।३ अतरीप (लश०)। माना जाता है। इसकी उत्पत्ति की कथा भावप्रकाश मे इस हि० श०१०-४० 12