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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३४

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संधक ४८५० सधभेदक हुमा हो । समिति। सभा । ममाज । ३, प्राचीन भारत का सघट्ट चक्र-सञ्ज्ञा पुं० [स० सडघट्टचक] फलित ज्योतिप मे युद्धफल एक प्रकार का प्रजातन्त्र राज्य जिसमे शासनाधिकार प्रजा द्वारा विचारने का नक्षत्रो का एक चक। चुने हुए प्रतिनिधियो के हाथ मे होता था। ४ इसी सस्था विशेप-इम चक के द्वारा यह जाना जाता है कि युद्ध मे जीत के ढग पर बना हुआ वौद्ध अमरणो आदि का धार्मिक होगी या हार । यदि युद्धार्य प्रम्यान करनेवाले का जन्मनक्षत्र समाज। इस चक्र मे शुभ होता है, तो वह युद्ध मे विजय लाम करता विशेष-इसकी स्थापना महात्मा बुद्ध ने की थी। पीछे से है, और यदि अशुभ होता है, तो पराजय । स्वरोदय मे इस यह बौद्ध धर्म के त्रिरत्नो मे से एक रत्न माना जाता था। शेप चक्र का विवरण इस प्रकार दिया है-एक त्रिकोण चक बना दो निरत्न बुद्ध और धर्म थे । कर इस चक्र मै टेढी रेखाए खीचकर उसमे अश्विनी आदि ५. साधुप्रो आदि के रहने का मठ। सगत । ६ अतरगता। २७ नक्षत्र अकित करने चाहिए। नी नक्षत्रो का एक साथ घनिष्ठ सपर्क (को०)। वेध होता है। वेध क्रम इस प्रकार होता है। अश्विनी का सघक-सज्ञा पु० [स० सडघक दल। झुड । समूह । समुदाय (को०] | रेवती के साय, चित्रा नक्षत्र का श्लेपा और मूल के साथ, और ज्येष्ठा का मूल के साथ वेध होता है। यदि राजा का सघगुप्त-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० सङ्घगुप्त वाग्भट के पिता का नाम। जन्म नक्षत्र इस चक्रवेव मे न हो, या सौम्य ग्रह सहित वेध सधचारी-सज्ञा पु० [स० सडपचारिन्] १ जो अधिकाश लोगो का हो, तो उस समय युद्ध नही होगा। यदि कूर नक्षत्र के साथ साथ दे । बहुमत, बहुपक्ष का अनुसरण करनेवाला। बहुमत के वेध हो, तो उस समय भीपण युद्ध होगा। सीम्य, स्वामी, अनुसार आचरण करनेवाला । २ वे जो झु ड या समुदाय मित्रामिन्न आदि ग्रहगणो से युक्त तथा अतिचार प्रभृति गति मे चलते हो । जसे,-वृक, मृग, हाथी इत्यादि । ३ मछली । द्वारा भी शुभाशुभ का निर्णय होता है । सघजीवी-सज्ञा पुं० [स० सङघजीवी] १. वह जो समूह के साथ रहता हो। दल या वर्ग के रूप मे रहनेवाला । २ मजदूर । सघट्टन -सञ्ज्ञा पुं० [म० सदघट्टन] [खी० मघट्टना] १ बनावट । कुली (को०] । रचना। गठन । २ मिलन। सयोग । ३ घटना। ४ दे० 'सघटन। सघट'-सञ्ज्ञा पु० [स० सङघटन] १ सघटन । मिलन । सयोग । उ०- यह संघट तब होइ जब पुन्य पराकृत भूरि ।-मानस, १।२०२ । सघट्टा-सचा स्त्री॰ [स०] लता । वल्ली । वेल । २. परस्पर सघर्ष । युद्ध । लडाई। झगडा। ३. समूह । सघट्टित-वि० [सं० सडपट्टित] १ एकत्र किया हुमा । २ गठित । उ०-सुभट मर्कट भालु कटक संघट सजत नमत पद रावणानुज निर्मित । बना हुमा। रचित । ३ चलाया हुआ । चालित । निवाजा ।—तुलसी (शब्द०)। ४ राशि । ढेर । ४ घर्पित । रगडा हुआ। ५ (पाटा आदि) जो साना या सघट-वि० [स० सङघट] [वि॰ स्त्री० सघटा] ढेरी लगाया हुआ । गधा हुआ हो (को०)। राशीकृत [को०] । सघट्टितपाणि-सञ्ज्ञा पुं० [सं० सपट्टितपाणी] वर और वधू के सघटन-सहा पु० [स० सडघटन] [खो० सघटना] १ मेल । सयोग । आपम मे जुड़े हुए हाथ (को॰] । २ सघर्प । सघर्षण। ३ साहित्य मे नायक नायिका का सयोग। सधट्टी-सज्ञा ० [स० सटघट्टिन] वह जो साथ लगा रहे । अनुगामी । मिलाप । ४ उपकरणो के द्वारा किसी पदार्थ का निर्माण । माननेवाला । जैसे, कृष्णसघट्टी, रामसघट्टी (को०] । रचना | ५ वनावट । दे० 'सगठन' । संघटना-सज्ञा खो॰ [स० सङघटना] १ दे० सघटन' । २ स्वरो या सघतल-सञ्ज्ञा पुं० [स० सडघतल] अजलि (को०] । शब्दो का सयोजन को०] । सघती-सज्ञा पुं० [स० सड, हि० सग, मघाती, सँगाती] साथी । संघटबिधाई-वि० [हिं० सघट+विधान] समूहबद्ध करनेवाला । सहचर। उ०-तुम्ह अस हित सघती पियारी। जियत जो समूह या दलवद्ध करे। उ०-जयति सौमिनि रघुनदनानंद जीउ नहि करौ निनारी ।-जायसी (शब्द०)। कर रिच्छ कपि कटक सघटविधाई।-तुलसी ग्र०, पृ० ४३७ । सघपति-सशा पुं० [स० सडघपति] वह जो किसी सघ या समूह का संघटित-वि० [स० सडघटित] १ एक जगह किया हुआ । एकत्रित । प्रधान हो । दलपति । नायक । मिला या जुडा हुमा (को०)। २ (वाद्य आदि) जो बजाया हुआ हो । अभिधातित। वादित (को०) । ३ टकराया हुआ। सघपुरुष-सज्ञा पु० [स० सङघपुरुप | बौद्ध सघ का परिचारक सघ का सेवक [को०] । सघट्टित । उ०-सुर विमान हिमभानु भानु सघटित परस्पर । -तुलसी ग्र०, पृ० १५७ । सधपुष्पी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सडघपुष्पी] धातकी। धव । धौ। सघट्ट-सज्ञा पुं॰ [स० सङघट्ट] १ रचना । वनावट । गठन । २ सघर्प । सघभेद-सचा पुं० [स० सडधभेद] बौद्ध संघ मे मतभेद पैदा करना जो ३ मुठभेड । स्पर्धा (को०)।४ आघात । चोट । ५ सघर्पण । पाँच प्रकार के अक्षम्य अपराधो मे एक माना गया है को०] । रगड (को०)। ६ आलिंगन (को०)। ७ मिलन । सयोग (को॰) । सघभेदक-वि० [स० सयभेदक] सघ मे फूट पैदा करनेवाला (को०)।