सुखसागर ६०६२ सुखाश सुखपागर-सद्धा पुं० [स०] १ सुख के सागर। ग्रानंद के समुद्र। सुखाना--नि० अ० दे० 'सम्बना' । २ हिंदी का एक ग्रथ जो भागवत के दशम स्कध का अनुवाद मुखानी-मज्ञा पुं० [अ० सुक्कानी] मांझी । मल्लाह । (लश०) । है । इसके अनुवादक मुशी सदामुखलान्न थे। सुखानुभव-सशा पु० [म०] मुख का अनुभव या अनुभूति [को०)। सुखनाध्य-वि० [सं०] जिसका माधन सुकर हो। जिसके साधन मे सुखाय -वि० [स०] जो मुखपूर्वक प्राप्त या लभ्य हो किो०] । कोई कठिनाई न हो। मुख या सहज मे होनेवाला। सुकर । सहज । २ (रोग ग्रादि) जो सरलता से अच्छा हो सके। सुखाप्नव-वि० [स०] जहां मुखपूर्वक स्नान किया जाय। निशक, सुखसार--सज्ञा पु० [म० सुख + सार] मुक्ति। मोक्ष । उ०-केशव पाराम मे नहाने योग्य किो०) । तिन सौ यो कह्यौ क्यो पाऊँ सुखसारु ।-केशव (शब्द॰) । सुखायत, सुखायन-सशा पु० [सं०] महज मे वश मे पानेवाला घोडा। सोखा और सधा हुअा घोडा । सुखसुप्ति-सज्ञा स्त्री॰ [स०] मुख की नीद। मुखापन्न-वि० [म०] सुखयुक्त । सुखी। सुखसेव्य [- वि० [स०] १ सुख से सेवन या भोग करने योग्य । २ सुखारा -वि० [स० सुख + हिं० पारा (प्रत्य॰)] १ जिसे यथेष्ट सुलभ [को०)। सुख हो । सुखी । ग्रानदित । प्रसन्न । उ०-(क) इहि विधान सुख पर्श--वि० [सं०] १ छूने मे सुखकर । २ तृप्तिकर [को॰] । निसि रहहिं सुखारे । करहिं कूच उठि वडे सकारे ।-गिरधर- सुखस्वप्न-सज्ञा पु० [१०) सुखमय जीवन की कल्पना [को०] । दास (शब्द॰) । (ख) नित ये मगल मोद प्रवध मव विधि सब सुखहस्त-वि० [स०] जिसके हाथ कोमल एव मृदु हो। मुलायम लोग सुखारे। -तुलसी (शब्द॰) । २ सुख देनेवाला । सुबद । हाथोवाला [को०] । उ०-जे भगवान प्रधान अजान समान दरिद्रन ते जन सारा। सुखात-सज्ञा पु० [स० सुखान्त] १ वह जिसका अत सुखमय हो । हेतु विचार हिये जग के भग त्यागि लखू निज रूप सुखारा।- सुखद परिणामवाला । जिसका परिणाम सुखकर हो । २ मित्रता (शब्द०)। पूर्ण। मैत्रीयुक्त किो०] । ३ सुख का नाश या विघात करने सुखारि--वि० [स०] उत्तम हवि भक्षण करनेवाले (देवता आदि) । वाला (को०)। ४ पाश्चात्य नाटको के दो भेदो मे से एक । सुखारी - वि० [म० सुख + हिं० प्रारी] दे० 'सुखारौं'। उ०—(क) वह नाटक जिम्के अत मे कोई सुखपूर्ण घटना (जैसे सयोग, राम सग मिय रहति मुबारी।--मानस, २११४० । (ख) मुवो अभीष्टसिद्धि, राज्यप्राप्ति आदि) हो। दुखात (ट्रेजेडी) का असुर सुर भए मुखारी । —सूर (शब्द०)। (ग) चौरासी उलटा। कॉमेडी। लख के अधकारी। भक्त भए सुनि नाद सुखारी ।- सुखाबु--सज्ञा पु० [स० सुखाम्बु] गरम जल । उष्ण जल । गिरधरदास (शब्द०)। सुखा-संज्ञा स्त्री० [स०] १ वन्ण की पुरी का नाम । २ दयालुता। सुखारो -वि० [सुख + हिं० प्रारो] दे० 'सुम्बारा' । पुष्य (को०)। ३ सगीत की एक मर्छना। ४ शिव की नौ सुखारोह-वि० [स०] सुखपूर्वक प्रारोहण करने या चढने योग्य । शक्तियो मे से एक शक्ति (को०)। ५ मुक्ति प्राप्त करने की सुखार्थी -वि० [म० सुखाथिन्] [वि॰ स्त्री सुखायिनी] सुख चाहने- साधना। मोक्षप्राप्ति की चेप्टा या उपाय (दर्शन)। वाला । सुख की इच्छा करनेवाला । सुखकामी। सुखाकर-नशा पुं० [सं०] १ सुख का आकर या निधि। २ बौद्धो सुखाला-वि० [मं० सुख + हिं० ग्राला (प्रत्य॰)] [वि० सी० सुखाली] के एक लोक का नाम [को०] । सुखदायक । प्रानददायक । उ०—लग सुखाली साँझ दिवस की सुखागत-सज्ञा पु० [स०] स्वागत (को०] । तरनाई से ताप नसै।--सरस्वती (शब्द०)। सुखाजात-सञ्चा पु० [म०] शिव । सुखालुका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] एक प्रकार की जीवती। डोडी। विशेष सुखात्मा-सज्ञा पु० [स० सुखात्मन्] ईश्वर । ब्रह्म । दे० 'जीवती'। सुखाचार'-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्वर्ग । सुखालोक-वि० [स०] मनोहर । सु दर [को०] । सुखाचार-वि० जो सुख का आधार हो। जिसपर सुख अवलवित सुखावत् --वि० [स० सुखवत्] दे० 'सुखवत्' । हो। जैसे-हमारे तो आप ही सुखाधार हैं । सुखावता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] बौद्धो के अनुसार एक स्वर्ग का नाम । सुखाधिष्ठान-सज्ञा पु० [सं०] सुख का स्थान । सुखावत.देव--सञ्चा पु० [सं०] बुद्धदेव जो सुखावती नामक स्वग के अधिष्ठाता माने जाते है। बौद्ध । सुखाना'-क्रि० स० [हिं० सूखना का प्रे० रूप] १ किसी गीली या नम सुखवतोश्वर-सञ्ज्ञा पु० [१०] १ वुद्धदेव । २ बौद्धो के एक देवता। चीज को धूप या हवा मे अथवा आँच पर इस प्रकार रखना सुखावल-सञ्ज्ञा पु० [सं०] पुराणानुसार नृचक्षु राजा के एक पुन या ऐसी ही और कोई क्रिया करना जिससे उसकी आर्द्रता या का नाम। नमी दूर हो या पानी सूख जाय । जैसे,—धोती सुखाना, दाल सुखावह-वि० [स०] सुख देनेवाला । आराम देनेवाला। सुखद । सुखाना, मिर्च सुखाना, जल सुखाना। २ कोई ऐसी क्रिया करना जिससे आर्द्रता दूर हो । जैसे,--इस चिंता ने तो मेरा सारा खून सुखाश-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ सुखपूर्वक खाना। २ वह जो खाने मे बहुत अच्छा जान पडे । ३ तरबूज । ४ वरुण देवता का सुखा दिया। एक नाम।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३४२
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