पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३८

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४८५४ संजल्प सचिर हुप्रा। सुसपन्न । युक्त (को०)। ५ बाधित । अवरुद्ध (को॰) । सछेत्ता-सपा पुं० [म० मन्छेत्तृ] वह जो मशय प्रादि को दूर करता ६ घना । सघन (को०)। या मिटाता हो [को०] । यो०-सचितकर्म = पूर्वजन्म के वे एकत्रित कर्म जो वर्तमान जीवन मछेत्तव्य-वि० [म० छेत्तव्य] जो चंदन के योग्य हो । भद्य [को॰] । मे प्रारब्ध के रूप मे प्राप्त होते हे और जिनका फल भोगना सछेद-पमा पु० [म० मच्छेद] १ काटना । अलग करना। २ पडता है। सचितकोप, सचितनिधि = (१) जमापूजी। (२) दाना । दूर करना 1 को०] । वेतनभोगी कर्मचारियो के वेतन से हर महीने कटकर जमा सछेद्य-सया पु० [म० रा १ छेदने के योग्य । २ दो नदियो का होनेवाली वह निश्चित रकम जो उन्हें नौकरी से अलग होने माय बहना अथवा गगम [को०] । पर मिल जाती है। वेतन देनेवाला सस्थान मी कर्मचारियो को सज' -~गज्ञा पुं० [म० नज] १. शिव का एक नाम | २. ब्रह्मा का उस जमा रकम मे अपनी ओर से उतनी ही रकम मिलाता है। एकनाम। प्राविडेट फड (अ.)। मज'-वि० [फा०] तौलनेवाला । बया (को०] । सचिता-सज्ञा स्त्री० [स० सञ्चिता] एक प्रकार की वनस्पति । सज-मसा पु० झाझ या मजीरा नामक वाद्य : मो०] । सचिति-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० सञ्चिति] १ एक पर एक रणना। तही सजन-ममा पु० [म० सञ्जन] १ बाँधने को किया। २. वधन । लगना। २ सग्रह। सचय (को०)। ३ शतपथ ब्राह्मण के ३ वितरे हुए अगो ग्रादि को मिनाकर एक रना । मघट्टन । नवम खड की आख्या (को॰) । सजनन' -वि॰ [स० सजनन] उत्पादक । उत्पन्न करनेवाला (को०] । सचित्रा-सञ्चा स्त्री० [सं० सञ्चिना] मूपाकर्णी । मूसाकानी । सजनन-सशा पु० १ निर्माण । उत्लान । २ वढाय । विकास को०) । सचु-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० सञ्चु] टीका । व्याख्या [को०] | सजनित-वि० [म० राजनिन] उत्पन्न किया हुआ। निर्मित । सचूनि-सचा पुं० [स० सञ्चूर्णन] अच्छी तरह चूर करना, टुकडे रनित (फो०] टुकडे करना या पीसना [को०] । सजनी-सज्ञा स्त्री० [म०] वैदिक कान का एक प्रकार का अस्त्र सचूर्णित-वि० [स० सञ्चूणित] पिसा हुा । टुकडे टुकडे किया हुप्रा । जिममे वध या हत्या की जाती थी। चूर्ण किया हुआ [को० ॥ सजम - मजा पुं० [सं० सयम] दे० 'सयम' । उ०-राम करह सचेय-वि॰ [म० सञ्चेय] इकट्ठा करने योग्य । सग्रहणीय [फो०] । सब सजम आजू। जी विधि कुमल निबाहइ काजू । मचोदक---सक्षा पुं० [स० सञ्चोदक] १ ललितविस्तर के अनुसार एक --मानस, ।१०। देवपुत्र का नाम । सजमना-कि० स० [स० मयमन] एकत्र करना। बटोरना। सचोदन--सञ्ज्ञा पुं० [स० सञ्चोदन] प्रेरित करना। वढावा देना या सयमित करना। व्यवस्थित करना। उ०-पानटि पट उत्तेजित करना [को०] मजमत केमनि मृदुल अग अंगोछि।-धनानद, पृ० ३०१ । सचोदना-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० सञ्चोदना] १ वह वस्तु जो प्रेरणा वा सजमनी-सला स्त्री॰ [स० सयमनी] यमराज की नगरी । (डिं०) । उत्तेजना प्रदान करती हो । २ उत्तेजना। प्रेरणा [को०] | सजमनीपति-संज्ञा पुं० [म० सयमनीपति] यमगज । यमदेव । (डि०)। सचोदित--वि० [स० सञ्चोदित] उत्तेजित । आदिप्ट । प्रेरित [को०] । सजमी-समा पु० [म० नयमिन्] १ नियम से रहनेवाला। सयमी। सछन्न--वि० [स० सम् + छन्न] १ पूर्णत ढंका हुप्रा। प्रावृत । २. व्रती । ३ जितेदिय । वस्त्राच्छादित । २ छिपा हुया । छन्न । गुप्त । अज्ञात [को०] । सछईन-सञ्ज्ञा पुं० [स० सञ्छर्दन] ग्रहण मे एक प्रकार का मोक्ष । सजय-राजा पुं० [स० मञ्जय] १ धृतराष्ट्र का मन्त्री जो महाभारत के युद्ध के समय धृतराष्ट्र को उस युद्ध का विवरण नुनाता था। विशेष-राहु यदि ग्राह्य मडल मे पूर्व भाग से ग्रसना प्रारभ विशेष-कहते है कि इसे दिव्य दृष्टि प्राप्त थी, अत यह हस्तिना- करके फिर पूर्व दिशा को ही चला आये, तो उसको सछईन पुर मे बैठा हुया कुरुक्षेत्र मे सारी घटनाएं देखता था और मोक्ष कहते है। फलित ज्योतिप के अनुसार इससे ससार उनका वर्णन अघे धृतराष्ट्र को सुनाता था । का मगल और धान्य को वृद्धि होती है। २ सुपार्श्व का पुत्र । ३ राजन्य के पुत्र का नाम । ४ ब्रह्मा । सछादन-सचा पु० [सं० सञ्छादन] आच्छादित करना। छिपाना। ढंकना (को०] । ५ शिव । ६ विजय । जीत (को०)। ७ एक प्रकार का सैनिक व्यूह (को०)। संछादनी-सक्षा सी० [स० सञ्छादनी] १ वह जो सछादन करे। सजर-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] १ एक णिकारी पक्षी। २ बादशाह । २ त्वचा । खाल [को०)। उ०-यक तौ सरपजर कियो अतन तनै सर सूल । दूजे यह सछिदा-सज्ञा स्त्री॰ [स० सञ्छिदा] विध्वस | नाश [को०] । सिसिरी भयो खजर सजर तूल ।-स० सप्तक, पृ० २४६ । सछिन्न-वि० [स० सञ्चिन्न] टुकडे टुकटे किया हुआ । छिन्न । काटा सजल्प-सक्षा पु० [स० साल्प] १ वार्तालाप । वातचीत । २ हुमा [को०] । वकवाद । ऊटपटांग वार्ता | ३ हल्ला गुल्ला [को०] ।