पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/३९

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सजानो विद्या मगजी। संजवन ४८५५ सजवन-सम्मा पु० [म० मञ्जवन] १ चार अट्टानिकानो को वह गभीरता हो । गनीर । शान । २ समझदार । बुद्धिमान् । २०, विशिष्ट चतुष्कोण स्थिति जिससे उनके बोन मे प्रांगन वन महिष्णु (को०) । ४ मतुनिन । तौला हुता (को०) । जाय । २ मार्गदर्शक चिह्न को०] । सजीव'-मज्ञा पु० मि० सजीव] १ मरे हुए को फिर से जिनाना । सजा-पचा मी० [स० सखा वकरो। पुन जीवन देना । • वह जो मरे हा वो जिनाये । फिर से सजा-सक्षा पृ० [फा० सजह ] बाट । तीलने का वटवरा को०] । जीवन दान करनेवाला। ३ बौद्रो के अनुसार एक नरक का नाम। सजात' -वि॰ [म० सजात] १ उत्पन्न । २ प्राप्त । ३ व्यतो।। बीता हुया (को०)। यौ०-मजीवकरण = फिर मे जीवित करना । पुनर्जीवन देना। यौ०-मजातकोप = कुपित । सजीवकरणी। क्रुद्ध। मजातकोतुक = विस्मित । चकित । सजातनिर्वेद = विरक्त । उदासोन। सजा विभ मजीव-वि० जीवित । प्राणवान् (को०] । आश्वस्त । सतुष्ट । सजातवेपथु = कापनेवाला। कॉपता हुआ । सजीवक-स्या पु० [स० मजीवक] वह जो मरे हुए को जीवनदान कपित। देता हो । मुर्दे को जिलानेवाला। मजात'-सञ्ज्ञा पुं० पुराणानुसार एक जाति का नाम । सजीवकरणो-पज्ञा जी० [म० मञ्जीवकरणो] १ एक प्रकार को सजाफ'-सहा स्त्री० [फा० सजफ या सजाफ] १ भातर । किनारा । विद्या जिसके प्रभाव मे मृत मनुष्य जीवित हो जाता है। (महा- कोर । २ चौडी और पाडी गोट जो प्राय रजाइयो और भारत मे लिखा है कि शुक्राचार्य यह विद्या जानते थे) । २ लिहाफो प्रादि के किनारे किनारे लगाई जाती है। गोट । एक प्रकार को कल्पित ओपधि जिमके मेवन मे मृत व्यक्ति का जीवित होना माना जाता है। क्रि० प्र०-लगना।—लगाना । सजीवन-सज्ञा पु० [स० सजोवन] [वि० सजोविन] १ भलोभानि सजाफ-सज्ञा पु० एक प्रकार का घोडा जिसका रग या तो प्राधा लाल, जीवन व्यतीत करने की क्रिया । २ जोवन दान करना । पुन आधा सफेद होता हे या प्राधा लाल, आधा हरा। जिलाना। ३ मनु के अनुमार मोन नरको मे से एक नरक का नाम । ४ दे० 'सजयन' (को०) । सजाको'-वि० [हिं० सजाफ+ ई (प्रत्य॰)] जिसमे सजाफ लगो हो । सजोवन'-वि० जिलानेवाला । जीवन देनेवाला को०] । किनारेदार । झालरदार। यौ०-सजाफी गंजा = खल्वाट व्यक्ति जिसकी खोपडी के किनारे संजोवनी'-वि० सी० [स० सञ्जोवनी] जीवनप्रदायिनी। जीवन- दायिनी । जोवन देनेवाली। पर बाल हो। सजाफी-मज्ञा पुं० वह घोडा जिसका रग सजाफो हो। प्राधा सजोवना-सञ्ज्ञा स्त्री० १ एक प्रकार को कलित योग धि। कहते है लाल ग्राधा हरा घोडा। कि इसके सेवन से मरा हुप्रा मनुष्य जो उठना है। २. वैद्यक के अनुसार एक औपध का नाम । सजाव'-सया पुं० [फा० सजाफ] १ एक प्रकार का घोडा । दे० 'सजाफ'। उ०-पचकल्यान सजाब वखानी। महि सायर विशेष-इसके लिये पहले वायविडग, सोठ, पिप्पली, हर का सब चुन चुन पानी ।—जायसी (शब्द०)। २ एक छिलका, अॉवला, बहेडा, वच, गिलोय, भिलावां, सशोधित सिंगी मोहरा इन सबके चूर्ण को एक दिन गोमूत्र मे सरल प्रकार का चमडा । सजाव'-सज्ञा पुं० [फा०] चूहे के आकार का एक जतु जो प्राय करके एक रत्तो को गोलियाँ बनाते है। कहते हैं कि इसी तुर्किस्तान मे होता है। एक गोली अदरक के रस के साथ खिलाने से अजीर्ण, दो गोलियाँ खिलाने से विसूचिका, तीन गोलियाँ खिलाने से विशेप-इस जतु का मास वक्षस्थल की पीटा, कास और जण सप विप और चार गोलियाँ खिलाने से सन्निपात नष्ट के लिये उपकारक माना जाता है। इसकी चाल पर बहुत होता है। मुलायम रोएँ होते हैं, और उससे पोस्तीन बनाते हैं। ३ अन्न। पाय वत्तु (को०)। ४ कालिदास के महाकाव्य कुमार- सजावन-सा पुं० [स०] जमाने के लिये गरम दूध मे जामन समय पर मल्लिनाय मूरि को टोका का नाम । डालना (को०] । सजोवनी विद्या-संग सी० [स० सजीवनी विद्या] एक प्रकार की सजिदा-वि० [फा० सजिदह] तौलनेवाला । बयाई करनेवाला [को०] । फल्पित विद्या। सजिहानि-वि० [सं० सजिहानि} (शय्या) त्याग करनेवाला । (विन्तर) विशेप-कहते है कि म विद्या के द्वारा मरे हुए पति को छोडनेवाला [को॰] । जिलाया जा नाना है। महाभारत में लिखा है कि दैत्यो के सजी-मया सी० [फा०] तराजू पर तौलना । वजन करना। गुरु शुक्राचार्य यह निया जानते थे, और इमो के द्वारा वे उन सजीदगी-मशा झी० [फा०] १ विचार या व्यवहार आदि की दैत्या को फिर मे जिना देते ये नो देवताया के सार युटयने गमीरता। २ सहिष्णुता । शिष्टता । ३ सजीदा होना (को॰) । मे मारे जाते थे। दवतानो के गहने से इम्पति के पुत्र कन सजीदा-वि० [फा० सजीदह.] १ जिसके व्यवहार या विचारो मे वह विद्या सोजने के लिय शुराचार्य के पास जाकर रहन लगे,