पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४०४

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वाली महिला। सुवर्णसूत्र ७०२४ सुवाना सुवर्णसूत्र --सञ्ज्ञा पुं० [स०] सोने का तार 1 सोने की जजीर या सुवल्लरी--सज्ञा स्त्री० [सं०] पुत्रदानी लता। सिकडी [को०] । सुवल्लि--सज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'सुवल्लिका' । सुवर्णस्तेय-सज्ञा पु० [स०] सोने की चोरी । विशेष--मनु के अनुसार सोने की चोरी पाँच महापातको मे से सुवल्लिका-सशा स्त्री॰ [सं०] १ जतुका नाम की लता । २ सोमराजी। सुवल्लिज--सज्ञा पु० [स०] १ मूंगा । प्रवाल । २ जमीकद (यो० । एक है। सुवल्ली--सया स्त्री० [स.] १ बकुची। सोमगजी। २ चुटकी । सुवर्णलोपी--सज्ञा पु० [सं० सुवर्णलोपिन्] सोना चुरानेवाला जो मनु कनकी । ३ पुत्रदानी लता। के अनुसार महापातकी होता है। सुवर्णरथान-सशा पु० [स०] १ एक प्राचीन जनपद का नाम। २ सुवश्य-~-वि० [म.] सुगमता से वश मे करने योग्य [को०) । सुमात्रा द्वीप का एक प्राचीन नाम । सुवसत--सज्ञा पु० [स० सुवमन] १ चैत्र पूणिमा। चत्रावली । २ सुवर्णहलि-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार का वृक्ष । मदनोत्सव जो चैन्न पूर्णिमा को होता था। ३ मुदर वमत- सुवर्णा'--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ अग्नि की सात जिह्वाग्रो मे से एक का ऋतु (को०)। नाम। २ इक्ष्वाकु की पुत्री और सुहोत्र की पत्नी का नाम । सुवसतक-~-म] पुं० [म० सुवमन्तक] १ मदनोत्सव जो प्राचीन काल ३ हलदी। हरिद्रा । ४ काला अगर । कृपणागुरु । ५ खिरंटी। मे चैत्र पूर्णिमा को होता था।२ वामती । नेवारी। बरियारा । बला। ६ कटेरी। सत्यानासी । स्वर्णक्षीरी। ७ सुवसता--मज्ञा स्रो० [मं०] १ माधवीलता। २ चमेली । जातीपुष्प । इद्रायन । इद्रवारुणी। ८ कटुतु वो । तितलीकी (को०)। सुवस@-वि० [स० स्व + वश] जो अपन वश या अधिकार मे हो । सुवर्णा'--वि० सी० सु दर वर्णवाली। दे० 'सुवर्ण" । उ०-वरुण कुबेर अग्नि यम मारुत सुवस कियो क्षण मायें । सुवर्णाकर-सज्ञा पु० [स०] सोने की खान जिससे सोना निकलता है। -सूर (शब्द०)। सुवर्णाक्ष---सञ्ज्ञा पु० [स०] शिव का एक नाम । सुवस्त्रा-सा सां० [०] १ एक नदी का नाम । २ सु दर वस्त्रो- सुवर्णाख्य---सज्ञा पुं॰ [स०] १ नागकेसर। २ धतूरा। धुस्तूर । ३ एक प्राचीन तीर्थ का नाम । सुवह'--वि० [म०] १ सहज मे वहन करने या उठाने योग्य । जो सुवर्णाभ'--सज्ञा पुं० [स०] १ शखपद के एक पुत्र का नाम । २ सहज मे उठाया जा सके। २ धैर्यवान् । धीर । ३ अच्छी रेवटी । राजावर्तमणि । तरह उठाने या वहन करनेवाला (को०)। सुवर्णाभा-वि० सुनहला । स्वणिम । दीप्त [को०] । सुवहर--सबा पुं० एक प्रकार की वायु । सुवर्णाभिषेक--सज्ञा पु० [स०] सोने का टुकडा डालकर वरवधू के सुवहा--सज्ञा सी० [सं०] १ वीणा । वीन । २ शेफालिका । ३, ऊपर जल छिडकने की क्रिया [को०)। रासन । रास्ना। ४ सँभालू । नील सिंधुवार। ५ रुद्रजटा । सुवार-सज्ञा पु० [सं०] कचनार । रक्तकाचन वृक्ष । ६ हसपदी । ७ मूसली। तालमूली। ८ सलई। शल्लकी। ६ गधनाकुली । नकुलकद। १० निसोथ । त्रिवृत्ता। सुवर्णालु- --सज्ञा पुं० [40] एक कद का नाम [को॰] । सुवाँग--सज्ञा पुं० [म० सु+ अडग या स्व + अडग] दे० 'स्वाँग' । सुवर्णावभासा--सज्ञा स्त्री० [स०] एक गधर्वी का नाम । सुवांगी--सशा पुं० [हिं० सुवग] दे० 'स्वांगी'। सुवर्णाह्व-सज्ञा स्त्री० [स०] पीली जूही। सोनजूही । स्वणयूयिका । सुवा-मज्ञा पु० [स० शुक, प्रा० सुग्र] दे० 'सुया'। उ०--सुवा सुपिका-संज्ञा स्त्री० [स०] पीली जीवती । स्वर्णजीवती। चलि ता वन को रस पीजै। जा बन राम नाम अमृतरस सुवर्णम-वि० [स०] दे० 'स्वणिम' [को०] । श्रवणपान भरि लीजै ।-सूर (शब्द॰) । सुवर्णी-सझा स्रो॰ [स०] मूसाकानी । पाखुपर्णी । सुवाक्य-वि० [सं०] सु दर वचन बोलनेवाला । मिष्ठभापी। मधुर- सुवर्तित -वि॰ [स०] १ अच्छी तरह गोलाकार घुमाया हुआ। २ भापी। सुवाग्मी । जो सुव्यवस्थित हो (को०)। सुवाक्य --सज्ञा पु० [सं०] १ सु दर वचन [को०] । सुवर्तुल'-सज्ञा [स०] तरबूज । सुवाग्मी-० [स० सुवाग्मिन्] बहुत सु दर बोलनेवाला। व्याख्यान- सुवतुल-वि० पूर्णत गोलाकार [को०] । पटु । सुवक्ता। सुवर्मा'-सञ्ज्ञा पु० [स० सुवर्मन्] धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । सुवाच्य-वि० [म०] सरलता से पढा जाने योग्य । सुवर्मा-वि० उत्तम कवच से युक्त । जिसके पास उत्तम कवच हो। सुवाजी--वि० [स० सुवाजिन्] सु दर पखो से युक्त (तीर)। सुवर्प-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ धृतराष्ट्र के एक पुत्र का नाम । २ एक सुवादिक--सञ्ज्ञा पुं० [स०] उत्तम वाद्य । अच्छा बाजा (को॰) । बौद्ध प्राचाय का नाम । सुवाना-क्रि० स० [स० शयन] दे० 'सुलाना'। उ०-पाडव सुवर्ण-सञ्चा स्त्री॰ [स०] १ मोतिया । मल्लिका का पुष्प । २ अच्छी न्योते अधसुत घर के बीच सुवाय । अर्ध रानि चहुँ ओर ते बरसात (को०)। दीनी पाग लगाय। लल्लूलाल (शब्द०) ।