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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४४

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संतोप ४८६० संदेश सतोष-सज्ञा पु० [स० सन्तोप] १ मन की वह वृत्ति या अवस्था सतोषी--सशा पुं० [स० सन्तोपित्] १ वह जो मानोर या जिसमे मनुष्य अपनी वर्तमान दशा मे ही पूर्ण सुख का अनुभव हो। जिसे वहत लानपान हा । २ जानेवाला । म ताट करता है, न तो किसी बात की कामना करता है और न रहनेवाला। किसी बात की शिकायत । हर हालत मे प्रसन्न रहना । सतुष्टि । सतोष्य-वि० [स० मतोय तोप करने के योग । सन । कनायत । उ०--गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन सत्य--पक्षा पुं० [मं० मन्त्य] अग्निदेव का ताग जा मा प्रकार के धन खान । जब पावत सतोप धन सब धन धूरि समान । फल देनेवाले माने जाते है। तुलसी (शब्द०)। सत्यक्त ---वि० । स० सम्त्यान] ' पूर्णी पग्न्यिा या छोडा हुया । विशेष--हमारे यहाँ पातजल दर्शन के अनुसार 'सतोप' योग का त्यक्त । २ वचित या रहित किया दृप्रा (को०] । एक अग और उसके नियम के अर्तगत है। इसकी उत्पत्ति सत्यजन--पज्ञा पुं॰ [स० मन्यजन। त्याग करना । छोडना (को०] । सात्विक वृत्ति से मानी गई है, और कहा गया है कि इसके सत्याग--पछा पुं० [स० गन्याग] छोड देना । त्यागना के०] । पैदा हो जाने पर मनुष्य को अनत और अखड सुख मिलता मत्याज्य--व० [म० मन्त्याज्य] परित्याग करने बोन। छोड देने है। पुराणानुसार धर्मानुष्ठान से सदा प्रसन्न रहना और दुख लायक किो०) । मे भी आतुर न होना सतोष कहलाता है। सत्रस्त-वि० [स० मनस्त] अत्यत मनमीत । दर ने कापित (को०] | क्रि० प्र.--करना ।--मानना।--रखना।--होना । यौं०-मनस्तगोचर=जिमे देनार दर तो। २ मन की वह अवस्था जो किसी कामना या आवश्यकता की भली- मत्राए--मचा पु० [स० मदाण] रक्षा । उद्धार (को०] । भांति पूर्ति होने पर होती है। तृप्ति । शाति । इतमीनान । जैसे,--पहले मेरा सतोप करा दीजिए, तब मै आपके साथ सत्रास-पच्छा पुं० [स० मत्वाम] भय । डर । वाम गो०] । चलूंगा। ३ प्रसन्नता । सुख । हर्ष । मानद । जैसे,--हमे यह सत्रासन-सा पुं० [म० सन्तामन] [वि० म वानिा] नयभीत या जानकर वहुत सतोष हुआ कि अब आप किमी से वैमनस्य न आतकित करना (को०] । करेंगे । ४ अगूठा और तर्जनी (को०) । सत्रासित -वि० [स० सन्नामित] बन्न किया हुया। भयभीत किया सतोषक--वि० [स० सन्तोपक] सतोप देनेवाला। सतोपदायक [को॰] । हुया [को०] । सतोषए--सञ्चा पु० [सं० सन्तोषण] सतुष्ट या प्रमन्न करने का भाव । सत्री--सञ्ज्ञा पु० [अ० सेन्ट्री, हिं० म तरी] दे० 'म तरी'। दे० 'सतोप'। सत्वरा--पचा स्त्री० [स० मन्त्वरा] शीव्रता । तत्परता। हडबडी। जल्दबाजी [को०] । सतोषपीय--वि० [स० सन्तोपरणीय] १ सतोष करने योग्य । २ सतोप कराने योग्य। सथा-सा पु० [म० महिना या मस्था] १ चटगार । पाठशाना । २ एक बार में पटापा हमा प्रा । पाठ । नाक । उ०मने सतोषना--वि० श्री० [म० सन्तोपिन्] जो सतोप करती हो । सतोष कहा कि हम लोग धम के मोगिय है ? हम लोग गाने बजाते करनेवाली। उ०--गरोविनी है। अच्छा वोलती बतलाती है नही थे, म था बोयते थे'-दुर्गाप्रसाद मि (ब्द॰) । और मतोपन भी है।--त्याग०, पृ०६०। क्रि० प्र०—देना ।-पाना ।--मिनना।-नेना। सतोषना --क्रि० स० [स० सन्तोष + हिं० ना (प्रत्य॰)] सतोप सथान--पझा पुं० [म० मन्यान] दे० 'म स्थान । उ०-ग्रामोज दिलाना । सतुष्ट करना। तबीयत भरना। उ०-मेघनाद गनिंग राव परखन बेहान । मोशन गितिमा माय मागत ब्रह्मा वर पायो । आहुति अगिनि जिवाइ सतोपी निकस्यो रथ मिवाने ।-पृ० रा०, १२।५४ । वहु रतन वनायो। आयुध धरे समेत कवच सजि गरजि चढयो सथाल-ममा सी० दिश०] १ बिहार का एक गिना। २ वहाँती रणभूमिहि प्रायो । मनो मेघनायक ऋतु पावस वाण वृष्टि करि एक आदिवासी जाति और 31 मनुष्य । सैन खपायो।--सूर० (शब्द०)। मथालो' -वि० [हिं० म थाल + ई० (प्रल०)| न यान जानि, देश या सतोषना--क्रि० अ० स तुष्ट होना । प्रसन्न होना । भापा से स बद्ध । म याल का। सतोषित'--वि० [स० सम्तोपित] प्रसन्न किया हुआ। इतमीनान सथाली-मञ्जा बी० १ स थाल जाति वो स्वी। १मथालो की कराया हुआ । सतोप कराया हुआ। भापा। सतोषित'--वि० [स० सतोप, स० सन्तुष्ट] जिमका म तोप हो गया सदश-पञ्ज्ञा पु० [स० सन्दश] १ मटसी नाम का लोहा औजार । हो। स तुष्ट । उ०-नामदेव कह इतनहिं लैहीं। इतने महं २ न्याय या तर्क के अनुसार प्रपने प्रतिपजी को दोनो ओर स तोपित जैहो ।--रघुराज (शब्द॰) । से उसी प्रकार जकड या वाघ देना जिस कार मडमी मे कोई बरतन पकडते हैं। ३ मुश्रुत के अनुनार संडसी के विशेष-यह रूप अशुद्ध है, शुद्ध रूप स तुष्ट है। पर 'स तोपित' आकार का, प्राचीन काल का एक प्रकार का प्रांगार जिनकी शब्द का भी प्रयोग कही कही हिंदी कविता में पाया जाता है। सहायता से शरीर मे गढा हुना कांटा आदि निकालते थे।