पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५

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सदशक ४८६१ संदाह ककमुख । ४ स्वर वा व्यजन आदि के उच्चारण के लिये जोर सर्शित -वि० [सं० सन्दर्शित] दिखाया हुआ । व्यक्त किया हुआ । से दाँतो का स वरण, स पीडन या भोचना (को०)। ५ नरक- सदल- सझा पुं० [फा०] श्रीखड । चदन । विशेष दे० 'चदन'। विशेप का नाम (को०)। ६ पुस्तक का कोई परिच्छेद (को०)। सदलित-वि० [स० सन्दलित] विद्ध । निभिन्न । छिद्रित, कुचला या ७ गाँव का किनारा या पार्श्व (को०)। ८ शरीर के उन प्रगो दला हुअा । दलित किो०)। का नाम जिनसे कोई वस्तु पकटने का काम लेते हे (को०) । सदली'-वि० [फा० सदल] सदल के रग का । हलका पीना (रग) । सदशक-सञ्ज्ञा पुं० [स० सन्दशक] १ सँडसी । २ चिमटा (को०] । २ सदल का । चदन का । जैसे,—सदली कलमदान । सदशिका-ममा पु० [स० सन्दशिका] १ सँडसी। २ चिमटी । ३ सदली- सज्ञा स्त्री० १ तिपाई । कुर्सी। चौघडिया । २ सदल की कंची। ४ (चोच से) काटना, नोचना या पकडना (०) । बनी हुई वस्तु [को०] । सदशित-वि० [स० सन्दशित] जो कवच धारण किए हो। कवच सदली-सञ्ज्ञा पु० १ एक प्रकार का हलका पीला रंग। युक्त। विशेष-यह रग कपडे को चंदन के बुरादे के साथ उबालने से सदा-सज्ञा १० [स० सन्धि] दरार । छेद । बिल । आता है। इससे कपडे मे सुगधि भी आ जाती है। आजकल संद-सञ्ज्ञा पु० [स० (उप०) सम् + /दश्, दश् (= दबाना) अथवा कई तरह की बुकनियो से भी यह रग तैयार किया जाता है । सन्दान ( = एक साथ बाँधना ?)] दवाव । उ०-बोलि लिए २ एक प्रकार का हाथी जिसे दाँत नहीं होते। ३ घोडे की यशुमति यदनदहि । पीत झगलिया की छवि छाजति एक जाति । विजुलता सोहति मनी कदहि। वाजापति अग्रज अवाते सदप्ट'-वि० [म० सन्दष्ट] १ आपस में मिलाकर दवाया हुआ । २ अरजथान सुत माला गदहि । मनो सुरग्रह ते मुरिरपु कन्या जिसे दांतो से काटा गया हो । ३ चर्वित । चबाया हुअा [को०] । सीत प्रावति ठुरि सदहि । —सूर (शब्द॰) । सदप्ट -मक्षा पु० उच्चारण सवधी एक प्रकार का विशेष दोप जो सदर-सञ्ज्ञा पु० [स० सनन्दन] एक ऋपि । सनदन ऋपि । दांतो को दबाकर बोलने से होता है (को०] | सदप-सञ्ज्ञा पुं० [स० सन्दर्प] घमड । गस्र [को॰] । सदाता-वि० [स० सन्दात] वाँधनेवाला [को०)। सदर्भ-सञ्ज्ञा पुं० [स० सन्दर्भ] १ रचना । बनावट । २. साहित्यिक सदान'-सज्ञा पु० [फा०] एक प्रकार की निहाई जिसका एक कोना रचना या ग्रथ । प्रवध | निबंध । लेख । ३ वह अथ जिसमे नुकीला और दूसरा चौडा होता है । अहरन । घन । किसी और ग्रथ के गूढ वाक्यो अादि का अर्थ या स्पष्टीकरण सदान' - सज्ञा पु० [स० सन्दान] १ बधन । रस्सी। २ बांधने की पादि ४ कोई छोटो पुस्तक । ५ वह पुस्तक जिसमे सिकडी आदि। ३ वाँधने की क्रिया। ४ हाथी का गंडस्थल अनेक प्रकार की बातो का संग्रह हो । ६ विस्तार । फैलाव । जहाँ से उसका मद बहता है। ५ हाथी के पैरका वह भाग ७ एक माथ क्रमवद्ध करना नत्यी करना। गूंथना (को॰) । जिसमे सांकल बाँधी जातो हे (को०)। ६ काटना। विभक्त ८ प्रसग । संवध । जैमे-इस बात का सदम क्या है ? इस करना (को०)। सदर्भ मे हमे कुछ नही कहना है । ९ सगीत । निरतरता सदानक-सज्ञा पु० [म० सन्दानक कबूतर का घोसला को०] । (को०)। १० वुनना (को॰) । सदानिका-सञ्ज्ञा सी० [म० सन्दानिका] १ दुर्ग घ खैर । विट खदिर। यौ०-सदर्भविरुद्ध = असबद्ध । प्रसगरहित । सदर्भशुद्ध = जिसका वबुरी । २ एक प्रकार की मिठाई (को॰) । सदर्भ या सवध ठीक हो। सदर्भशुद्धि = काव्यनिर्माण मे सदानित-वि० [स० सन्दानित] १ बाँधा हुआ। बद्ध । २ पाशवद्ध । पूर्वापर क्रम से सबध निर्वाह की शुद्धता । निगडित [को०] | सदर्श-सज्ञा पु० [स० सन्दर्श झलक । दृश्य [को०] । सदानितक--सञ्ज्ञा पृ० [स० सन्दानितक] एक वाक्य मे निबद्ध तीन सदर्शन-सच्चा पुं० [स० सन्दर्शन] १ अच्छी तरह देखने की क्रिया। ग्लोको यः पद्यो का नाम । अवलोकन । २ घूरना । अपलक देखना। टकटकी लगाकर सदानिनी--सना श्री० [स० सन्दानिनी] गौत्रो के रहने का स्थान । देखना (को०) । ३ दृष्टि । निगाह । नजर (को०) । ४ परीक्षा । इम्तहान। जॉच। पयवेक्षण। ५ ज्ञान । ६ प्राकृति। सदाय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० सन्दाय प्रग्रह । पगहा | वल्गा [को०] । सूरत । शक्ल । ७ रामायण के अनुसार एक द्वीप का नाम । सदाव-सहा पु० [म० सन्दाव] भागने की क्रिया। पलायन । ८ व्यवहार (को०) । ९ दिखाना । प्रदर्शित करना (को॰) । सदास-सञ्ज्ञा पु० [देश॰] सफेद डामर धूप । मरहम । कहरुवा । यौ०-सदनद्वीप = एक द्वीप का नाम । सदर्शनपथ = दृष्टिपय । विशेष-इसका वृक्ष प्राय पच्छिमो घाट मे पाया जाता है। यह ग्राख । सदा हरा रहता है। मदर्शयिता-वि० [स० सन्दर्शयित] दिखाने या व्यक्त करने सदाह-सञ्ज्ञा पु० [स० सन्दाह] १ वैद्यक के अनुसार मुख, तालु पौर वाला कोना होठो की जलन । २ जलना (को०)। हिं० श० १०-४ 1 । गोशाला।