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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४४७

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बरतन । 1 से भरी ७०६७ सेक्रेटरी से मरी-सज्ञा स्त्री० [हिं० सेवई] दे० 'सेवई'। उ०--घर घर ढूढे सेई सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० सेर] अनाज नापने का काठ का एक गहरा अम्मा मेरी से मरी जी, राजा पायौ तीजन को त्यौहार । -पोद्दार अभि० ग्र०,६४४ । सेउ@t--सज्ञा पु० [हिं० सेव] दे० 'सेव' । उ०-किसिमिसि सेउ से मुष-वि० [सं० सम्मुख] अनुकूल। अभिमुख । उपयुक्त । उ०- फरे नउ पाता। दारिउ दाख देखि मन राता ।--जायसी से मुप धनि धनि उच्चरै भल छोरथो चहुबान । -पृ० रा०, (शब्द०)। ६६।४०६॥ सेकड'-सञ्ज्ञा पु० [अ० सेकन्ड] एक मिनट का ६० वाँ भाग । सें लोटना-क्रि० अ० [स० स० + लुठन] घराशायी होना । ढहना । सेकड-वि० दूसरा । जैसे,--सेकड पार्ट । सेकड हैड । लोट जाना। उ०-गढन कोट से लोट धममि, धम धम्म सेक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ जलसिंचन । सिंचाव । २ जलप्रक्षेप। अरिनि पुर।-पृ० रा०, ११७१६ । सेचन । छिडकाव । छीटा। मार्जन । तर करना । उ०--- सेवई--मञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० सेविका] मैदे के सुखाए हुए सूत के लच्छे जो और जु अनुसयना कही, तिनके बिमल विवेक। बरनत कवि घी मे तलकर और दूध मे पकाकर खाए जाते है। मतिराम यह रस सिंगार को सेक ।--मतिराम ग्र०, पृ० २८६ । ३ अमिपेक । उ०-बोली ना नवेली कछू बोल सतराय वह, मुहा०-सेंवई पूरना या बटना = गुधे हए मैदे को हथेलियो से से रगड रगडकर सूत के आकार मे वढाते जाना। मनसिज अोज को सुहानी कछु सेक है।--मतिराम न०, पु० ३३७ । ४ तैल सेचन या मर्दन । तेल लगाना या मलना । सें वर-सञ्ज्ञा पु० [हिं० सेवल] दे० 'सेमल' । उ० - (क) वार बार (वैद्यक) । ५ एक प्राचीन जाति का नाम । ६ (वीर्य का) निशि दिन अति आतुर फिरत दशो दिशि धाए । ज्यो शुक पतन या स्राव (को०)। ७ स्नान करने का फुहारा (को०)। सेवर फूल विलोकत जात नही बिन खाए।-सूर (शब्द॰) । ८ किसी भी द्रव पदार्थ की बूंद (को॰) । (ख) राज कहा सत्य कहु सूत्रा। विनु सत जस सेवर कर भूया ।-जायसी (शब्द॰) । सेकट्टर --संज्ञा पुं० [अ० सेक्रेटरी] दे॰ 'सेक्रटरी' । उ०--सेकट्टर साहब बोलटा है ।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ४५५ । से ही-सज्ञा स्त्री० [हिं० सेंध] दे० 'सेंध' । सेकड़ा--सज्ञा पुं॰ [देश॰] वह चाबुक या छडी जिससे हलवाहे बल सेहा--मज्ञा पु० [हिं० सेंध] कूआँ खोदनेवाला । कुइहाँ । हाँकते है। पैना। सेहा-सक्षा पु० [देश०] दे० 'सेधि' । सेकतव्या-वि० [सं० सेक्तव्य] १ सीचने योग्य । २ जिसे सीचना या से ही-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे० 'सेंध' । तर करना हो। से हुआ-सज्ञा पुं० [हिं० सेहुाँ] दे० 'सेहुना'। सेकपात्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सीचने का बरतन । डोल । डोलची। सें हुड-मज्ञा पुं० [स० सेहुण्ड] थूहर । वि० दे० 'थूहर'। उ०-छत सेकभाजन-सज्ञा पुं० [म०] ३० सेकपान' । नेह कागद हिये भई लखाइ न कि । विरह तचे उघरयो सु अब सेकमिश्रान-सज्ञा पु० [स०] वह खाद्य पदार्थ जिसमे दही पडा हो । से हुड को सो आँक ।--विहारी (शब्द॰) । सेकिम-वि० [सं०] १ सीचा हुआ। तर किया हुआ। २ ढाला से'-प्रत्य० [प्रा० सुतो, पु०हिं० सेंति करण और अपादान कारक हुआ (लोहा)। का चिह्न । तृतीया और पचमी की विभक्ति । जैसे-(क) सेकिम:--सज्ञा पुं॰ [स•] मूली । मूलक । गाजर । मैंने अपनी आँखो से देखा । (ख) पेड से फल गिरा। (ग) वह सेकुवा-सञ्चा पुं० [देश०] काठ के दस्ते का लवा करछा या डौवा तुमसे बढ जायगा। जिससे हलवाई दूध औटाते है । से-वि० [हिं० 'सा' का बहुवचन] समान । सदृश । सम । जैसे,- सेकूरी --सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] धान । (सुनार)। इसमे अनार से फल लगते है। उ०-नासिका सरोज गधवाह सेक्त-य-वि० [सं०] १ सोचने योग्य । २ जिसे सीचना या तर से सुगधवाह, दारयो से दसन, कैसे वीजुरो सो हास है ।- करना हो। केशव (शब्द०)। सेक्ता-वि० [स० सेक्तृ] [वि० सी० सेक्नी] १. सीचनेवाला। २ वर- सेर-सर्व० [हिं० 'सो' का बहुवचन] वे । उ०-अवलोकिही सोच दानेवाला। जो गाय, घोडी आदि को वरदाता है। ३ जल विमोचन को ठगि सी रही, जो न ठगे धिक से।-तुलसी लानेवाला (को०)। (शब्द०)। सेक्ता--सज्ञा पु० १ पति । शौहर । २ जलवाहक व्यक्ति (को॰) । से-सज्ञा स्त्री० [स०] १ सेवा। खिदमत । चाकरी। २ कामदेव की ३ वह जो सेक करता हो (को०)। पत्नी का नाम । सेक्त्र--सज्ञा पुं० [स०] सोचने का वरतन । जल उलीचने का वरतन । से--वि० [फा० सेह] तीन । उ०-उन्हे से चहार दिन हो जजवे डोल । डोलची। वहोश । प्रापस के जात कू कर कर फरामोश ।-दक्खिनी०, सेक्रेटरी--सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १ वह उच्च कर्मचारी या अफसर पृ० १६६ । जिसके अधीन सरकार या शासन का कोई विभाग हो। मत्री