पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४४९

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सेजिया ७०६६ घाव नेजा ज्यो। हाय नटनागर जू प्राह तो कठै है नीठि, सेठ--सशा पु० [स० श्रष्ठि, प्रा० सिटि] [सेट्टि, स्त्री० सेठानी] १ बडा लोयन बहै हैं दोऊ भरे जल सेजा ज्यो।-नट० वि०, पृ० ७७ । साहूकार । महाजन । कोठीवाल । २ बडा या थोक व्यापारी। सेजिया:--सज्ञा सी० [हिं० सेज + इया] दे० 'सेज'। ३ धनी मनुष्य । मालदार आदमी। लखपती। ४ धनी और सेज्या-मशा श्री० [सं० शय्या] दे० 'शय्या' । उ०-सूर श्याम सुख प्रतिष्ठित वरिणको की उपाधि | ५ खनियो की एक जाति । जानि मुदित मन सेज्या पर सँग लै पौढावति । - सूर (शब्द०)। ६ दलाल। (डि०) । ७ सुनार । सेठन-सा पु० [देश॰] झाडू । वुहारी । सेम-संशा सी० [स० शय्या, हिं० सेज, राज. सेझ] शय्या । सेज । उ०---सुरति शब्द मिल एक एकठा ता विच रही न काण। रोठा--सा पु० [देश॰] दे० 'सेठा' । जन हरिया सुन सेझ का सहजाई सुख मारण।-राम० सेठिया- सज्ञा पु० [स० श्रेष्ठिक, प्रा० सेट्ठिय, गुज० सेठिया] दे० 'सेट'। धर्म०, पृ०, ६३। सेझड़ो-सज्ञा स्त्री० [स० शय्या, प्रा० सेन्ज, राज० सेझ + डी (प्रत्य॰)] सेड़ा-सा पु० [देश॰] भादो मे होनेवाला एक प्रकार का धान । शय्या। सेजरी । सेज । उ०--मुख नीसांसाँ मूंकतो, नयणे नोर सेड़ी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० चेटी, प्रा० चेडि, हिं० चेरी अथवा म० सखि, प्रवाह । सूली सिरखी सेझडी तो विण जाणो नाह। ढोला०, प्रा० सहि + हिं० ली (प्रत्य०), हि० सहेली] सहेली। सखी । दू० १६६। (डिं०)। सेझदादि---संज्ञा पु० [स० सह्याद्रि] दे० 'सह्याद्रि' । उ०-सेझ- सेढ---सज्ञा पु० [अ० मेल] बादवान । पाल । (लश०) । दादि गिरि बहु रहई। गगादिक सरिता बहु बहई।-रघुनाथ मुहा०-सेढ करना = पाल उडाना । जहाज खोलना। सेढ़ दास (शब्द०)। खोलना = पाल उतारना । सेढ दजाना = पाल मे से हवा निका- सेझना-क्रि० अ० [सं० /मिध्, सेधन ( = दूर करना, हटाना)] दूर लना जिसमे वह लपेटा जा सके। सेढ सपटाना = रस्से को होना । हटना । उ०-सो दार किस काम की जाने दरद न खीचकर पाल तानना । (लश०)। जाइ । दादू काटइ रोग को सो दारु ले लाइ । अनुभव काटइ सेढ़खाना-सा पुं० [अ० सेल + फा० खाना] १ जहाज में वह कमरा रोग को अनहद उपजइ प्राइ। सेझे काजर निर्मला पोवइ या कोठरी जिममे पाल भरे रहते है। २ वह कमरा या कोठरी रुचि लव लाइ।--दादू (शब्द०)। जहाँ पाल काटे और बनाए जाते है। (लश०) । सेझा-सञ्ज्ञा पु० [स०/सिध्, सेधन, प्रा० सेझण] प्रवाह । झरना। सेढमसानो-सा स्त्री॰ [स० सिद्ध+ श्मशान] श्मशानवासी देवी। दे० 'सेजा। उ०-जहँ तन मन का मूल है, उपज प्रोकार । काली। उo----(क) खर का सोर भूस कूकर की देखादेखी अनहद सेझा सवद का, प्रातम कर विचार-दादू० बानी, चाली। तैसे कलुमा जाहिर भैरो सेढमसानी काली।-चरण० पृ०८६। वानी, पृ० ७२ । (ख) सेढमसानी के दरबान, नौहबति वाजि सेत्रोफा-नशा पु० [देश॰ तुल० स० शतपुप्पी] दे॰ 'सोफ' ।-वर्ण०, रही।---पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ६२२ । पृ० २। सेढा--संज्ञा पु० [हिं० सेडा] दे० 'सेडा'। सेट-सगा पु० [मं०] एक प्राचीन तीन या मान । सेढा--मका पु० [अ० सेल, हिं० सेढ] १ दे० 'सेढ' । उ०-कही सुबीते से नाव का सेढा नही लगा।-प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ११८ । सेट-मशा म० [देश॰] काँख, नाक, उपस्थ आदि के बाल या रोएँ। २ मिरा। सेट-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] एक ही प्रकार मेल की कई चीजो का समूह। सेढा@--सज्ञा पी० [देश॰] नाक का मैल । उ०—थूक रु लार भरयो जैसे,—किताबो का सेट, खाने के बरतनो का सेट । मुख दीसत आँखि मे गीज रु नाक मे सेढी।-सु दर ग्र०, सेटना--नि० अ० [स० श्रुत (= विश्वास करना)] १ समझना । भा० २, पृ०४३६। मानना । उ०--जो कलिकाल भुजेंगभय मेटत । शरणागत सेण-सका पु० [स० स्वजन, प्रा० सयण] मित्रमडली । प्रात्मीय भवरुज लघु सेटत ।-रघुराज (शब्द०) २ कुछ समझना । जन । स्वजन । उ०-ज्यॉ री जीभ न ऊपडे सेणां माही सेत । महत्व स्वीकार करना । जैमे--अपने प्रागे वह किसी को नही वारों कर किम ऊपर खलां घिरचा विच खेत ।--बांकी० ग्र०, सेटता। भा०२, पृ० १७ सेटिल-वि० [अ० सेटिल्ड] जो निपट गया हो। जो त हो गया हो। सेपिल-संज्ञा स्त्री० [स० श्रेणि, प्रा० सेणि] श्रेणी । कतार । उ०-- जैसे,--उन दोनो का मामला आपस मे सेटिल हो गया। कबीर तेज अनत का मानौं ऊगी सूरज सेणि । पति सँगि सेटिलमेट-ज्ञा पु० [अ० सेटिलमेन्ट] १ खेती के लिये भूमि को जागी सुदरी, कौतिग दीठा तेणि।-कबीर न०, पृ० १२ । नापकर उसका राजकर निर्धारित करने का काम । जमीन सेता--सज्ञा पुं० [स० सेतु] दे० 'सेतु' । उ०--(क) सिला तर जल नापकर उसका लगान नियत करने का काम । बदोवस्त । २ वीच सेत मे कटक उतारी।--पलटू०, पृ०८ । (ख) काज एक देश के लोगो की दूसरे देश मे बसी हुई वस्ती । उपनिवेश । कियो नहि सम पर पछतान फिरि काह । सूखी सरिता सेत सेटु-सज्ञा पु० [स०] १ खेत की ककडी । फूट । २ कचरी । पेहँटा । ज्यो जोवन वित विवाह ।-दीनदयाल (शब्द॰) । हिं० श० १०-५५