पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५०

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सेत ७०७० सेतुवध सेत-वि० [सं० श्वेत, प्रा० सेय, अप० मेत्त] दे० 'श्वेत' । क्रि० प्र०-बनाना।-चांधना । उ०-मेतु बांधि कपि मेन जिमि उ.--पैन्ह सेत मारी वैठी फानुम के पास प्यारी, कहत विहारी उनी सागर पार-मानम, ॥६७ । प्राणप्यारी धी कितै गई। दूलह (शब्द॰) । ५ नीमा । दादी। ६ मर्यादा । नियम या व्यवस्था। प्रतिबध । सेत-वि० [स० श्वेत, प्रा० सेत] १ स्पष्ट । साफ । उ०-ज्यारी उ० - अतुर मारि थापहि मुन्ह गहिं निज श्रुगिसेतु। जग जीभ न ऊपडे सेणां माही सेत । –बाँकी ग०, भा० २, विस्तारहि विगद जम, रामजनम कर हेतु । --तुलमी (शब्द०)। पृ० १७। २ कीति । यश। मर्यादा । उ०- सबें सेत- ७ प्रणव । प्रोकार। ८ टीका या व्याया। ६ वरुण वृक्ष । बधी रहे सेत मुक्के । गयी हब्बसी रोम साध्रम चुक्के । वरना । १० एक प्राचीन स्थान । ११ दुह्य के एक पुत्र और पृ० रा०, २४ । २५७ । वन के भाई का नाम । १२ मकीर्ण पर्वतीय मार्ग। संकरा यो०-सेतवधी- कीर्तिवाले । यशस्वी। पहाडी रास्ता (को०)। १३ वह मकान जिममे धरने छन के सेता--सज्ञा पु० (म० स्वेद, प्रा० सेन, सेद] दे० 'स्वेद' । माश लोहे की कीलो मे जडी हो। १४ २० 'सेतुबध-४ । सेतकुली -सञ्ज्ञा पुं० [स० श्वेतकुलीय] सों के अष्टकुल मे से एक। सेतुरा--वि० [स० श्वेत, प्रा० मेग्र, अप० मेत्त] २० 'श्वेत' । सफेद जाति के नाग । उ०--मोको तुम अब यज्ञ करावहु । सेतुक'--मज्ञा पुं० । मं०] १ पुल । २ बाँध । स्म । ३. वरुण वृक्ष । तक्षक कुटुंब समेत जरावह । विप्रन सेतकुली जव जारी। तब बरना । ८ दर्ग। तग पर्वतपथ (को०) । राजा तिनसो उच्चारी।--सूर (शब्द॰) । सेतुक -~ग्रव्य ० [हिं० सीतुद्ध] ममुख । मामने । सेतज+--- वि० [सं० स्वेदज, प्रा० सेदज] दे० 'स्वेदज । उ०- सेतुकर- पु० [म०] मेतुनिर्माता । पुल बनानेवाला। उन्मुनि ध्यान न सेतज कीने ।-प्रारण०, पृ० ५८ | सेतुकर्म- सज्ञा पु० [म० सेतुब मन्] सेतु या पुल बनाने का काम । सेतदीप-सहा पु० [स० श्वेतदीप] दे० 'श्वेतद्वीप'। सेतुज-महा पु० [म.] दक्षिणापथ के एक स्थान का नाम । सेतदुति-सज्ञा पु० [सं० श्वेतद्युति] चद्रमा । सेतुपति [-मा पु० त०] रामनद के (जो मद्रास प्रदेश के मदुरा जिले सेतना-क्रि० स० [हिं० सैतना] दे० 'सतना'। के प्रतर्गत है) राजानो की वापरपरागत उपाधि । सेतबद-सञ्ज्ञा पुं० [स० सेतुबन्ध, प्रा० सेतवध] उ०-(क) सेतवद पुन कीन्ह ठिकाना । पुष्कर क्षेत्र प्राय जम थाना । कबीर सेतुपय-सज्ञा पुं० [म०] दुर्गम स्यानो मे जानेवाली नक। अंची सा, पृ० ८०४ । (ख) सेतवद पर जाय पूजि रामेस्वर सेतुप्रद-सज्ञा पुं० [स०] कृष्ण का एक नाम । नीची पहाडी घाटियो मे जानेवाली सटक । नीक ।-ह. रासो, पृ० १६३ । सेतवधा-सण पु० [सं० सेतुबन्ध] दे० 'सेतुवघ' । सेतुवघ-सज्ञा पु० [स० सेतुबन्ध] १ पुल की वैधाई । २ वह पुल जो सेतवा-सज्ञा पुं० [स० शुक्ति, हिं० सितुही] पतले लोहे की करछी लका पर चढाई के समय रामचंद्र जी ने समुद्र पर बंधवाया जिससे अफीम काछते हैं। था। उ०-नेतुबध भइ भीर अति कपि नभ पय उडाहिँ।- मानम, ६।४। सेतवारी -सज्ञा स्त्री० [स० सिकता (= वालू)+ हिं० वारी (प्रत्य॰)] हरापन लिए हुए बलुई चिकनी मिट्टी। विगेप---नल नील ने वदरो की सहायता से शिलाएँ पाटकर यह सेतवाल-सञ्ज्ञा पु० [श०] वैश्यो की एक जाति । पुल बनाना था। वाल्मीकि ने यहाँ शिव की स्थापना का कोई उल्लेख नहीं किया है। केवल लका से लौटते समय रामचद्र सेतवाह-सज्ञा पुं॰ [स० श्वेतवाहन] १ अर्जुन । २ चद्रमा (डि०)। ने सीता से कहा है –'यहाँ पर मेतु बांधने के पहले शिव ने सेतव्य-वि० [सं०] साथ रखने योग्य । सह वधन योग्य [को०) । मेरे ऊपर अनुग्रह किया था (युद्ध काड, १२५वां अध्याय) । सेतिका-सज्ञा सी० [सं०] साकेत । अयोध्या । पर अध्यात्म आदि पिछली रामायणो मे शिव की स्थापना का सेती+-प्रत्य० [हिं०] से । साथ । उ०-(क) नारी सेती नेह वणन है। इस स्थान पर रामेश्वर महादेव का दर्शन करने के लगायौ ।-रामानद०, पृ०६ । (ख) कर सेती माला जपे लिये ताखो यानी जाया करते है। 'सेतुबध रामेश्वर' हिंदुओं हिरदै बहै डॅडूल । पग तो पाला मैं गिल्या, भाजण लागी सूल । के चार मुख्य धामो मे से एक है। आजकल कन्याकुमारी -कवीर न०, पृ० ४५ । (ग) जैसे भूखे प्रीत अनाजा । तृण- और सिंहत के बीच के छिछले समुद्र मे स्थान स्थान पर जो वत जल सेती काजा ।-दक्खिनी०, पृ० ४४ । चट्टाने निकली है, वे ही उस प्राचीन सेतु के चिह्न वतलाई सेतु'--सशा पुं० [स०] १ बधन । बँधाव । २ मिट्टी का ऊँचा पटाव जो कुछ दूर तक चला गया हो । बाँध । धुस्स । ३ मेड । टाँड । ३ बाँध या पुरा (को०)। ४ नहर । ४ किसी नदी, जलाशय, गड्ढे, खाईं आदि के पार पार जाने विशेष--नौटिल्य मे नहरें दो प्रकार की कही है-पाहार्योदक और का गस्ता जो लकडी, वांस, लोहे आदि बिछाकर या पक्की महोदक । 'प्राहार्योदक वह है जिसमे पानी नदी, ताल आदि जोडाई करके बना हो । पुल । उ०-यावत जानि भानुकुल से खीचकर लाया जाता है। सहोदक मे करने से पानी आता केतू । मन्तिन्ह जनक बँधाए सेतू ।--तुलसी (शब्द॰) । रहता है । इनमे से दूसरे प्रकार की नहर अच्छी कही गई है। जानी है।