पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५२

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सेनाधिपति सेन ७०७२ सेनप-मज्ञा पु० [स० मेना+प ( = पति)] सेनापनि । उ०—मूर छोटी टुकडी जिसमे ३ हाथी, ३ रथ, ६ अश्व और १५ पदाति सचिव सेनप बहुतेरे । नृपगृह सरिस मदन मब केरे।-तुमी रहते हैं (को०)। (शब्द०)। सेना--क्रि० स० [स० सेवन। १ मेवा करना। खिदमत करना । किसी को पाराम देना या उसका काम करना। नौकरी वजाना। सेनपति-संज्ञा पु० [स० सेनापति] दे० 'मेनापति'। उ० --कपि टहल करना । उ०-सेइय ऐसे स्वामि को जो राखै निज मान । पुनि उपवन वारिहु तोरी। पच सेनपति सेन मरोगे।-- -कवीर (शब्द०)। पद्माकर (शब्द०)। मुहा०-चरण सेना = तुच्छ मे तुच्छ चाकरी वजाना । सेनयार-नज्ञा पुं० [इटा०] [बी० सेनयोरा, इटली मे नाम के आगे २ अाराधना करना। पूजना। उपासना करना। उ०—(क) लगाया जानेवाला आदरसूचक शब्द । अँगरेजी 'मर' या 'मिस्टर' ताते सइय श्री जदुराई। (ख) सेवत सुलभ उदार कल्पतरु शब्द का समानार्थवाची शब्द । महाशय । महोदय । पारवतीपति परम सुजान ।—तुलसी (शब्द०)। ३ नियम- सेनवश--सज्ञा पु० [स०] वगाल का एक हिंदू राजवश जिमने ११ वी पूर्वक व्यवहार करना । काम मे लाना । इस्तेमाल करना । नियम शताब्दी से १४ वी शताब्दी तक राज्य किया था। इसे 'सेन- के साथ खाना पीना या लगाना। उ०-(क) पासव सेइ कुल' भी कहा जाता है। मिखाए सजीन के सुदरि मदिर मे सुख सोवै ।-देव (शब्द०)। सेनस्कघ-वि० पुं० [सं० सेनस्कन्ध] हरिवश मे शबर का एक नाम । (ख) निपट लजीली नवल तिय वहकि बारुनी सेड। त्योत्यो अति सेनहा-संज्ञा पुं० [स० सेनाहन्] शवर का एक पुत्र (को०] । मीठी लग ज्यो ज्यो ढीठो देइ ।-विहारी (शब्द०)। ४ किसी सेनाग-सज्ञा पुं॰ [स० सेनादग] १ सेना का कोई एक अग । जैसे, स्थान को लगातार न छोडना । पड़ा रहना निरतर वास करना। पैदल, हाथी, घोडे, रथ। जैसे,—चारपाई सेना, कोठरी सेना, तीर्थ सेना। उ०-(क) २ फौज का हिस्सा। सिपाहियो का दल या टुकडी। सेइय सहित सनेह देह भरि कामधेनु कलि कामी।--तुलसी (शब्द०)। (ख) उत्तम थल सेवं सुजन, नीच नीच के बस । यौ०-सेनागपति = सिपाहियो की टुकडी का अधिकारी। सेवत गीध मसान को, मानसरोवर हस ।--दीनदयाल (शब्द०)। सेना-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ युद्ध की शिक्षा पाए हुए और अस्त्र ५ लिए वैठे रहना। दूर न करना। जैसे,- फोडा सेना। ६ शस्त्र से सजे मनुष्यो का वडा समूह । सिपाहियो का गरोह मादा चिडिया का गरमी पहुँचाने के लिये अपने अडो पर बैठना। फौज । पलटन। सेनाकक्ष--मशा पु० [स०] सेना का पार्श्व । फौज का बाजू। विशेष-भारतीय युद्धकला मे सेना के चार अग माने जाते ये-- सेनाकम-~-सञ्ज्ञा पु० [स० सेनाकर्मन्] १. सेना का संचालन या व्यव- पदाति, अश्व, गज और रथ। इन अगो से पूर्ण समूह सेना स्था। २ सेना का काम । कहलाता था। सैनिको या सिपाहियो को समय पर वेतन देने सेनाकल्प-सज्ञा पु० [स०] शिव का एक नाम (को०] । की व्यवस्था आजकल के समान ही थी। यह वेतन कुछ तो सेनागोप--सञ्ज्ञा पु० [स०] सेना का सरक्षक । सेना का एक विशेष भत्ते या अनाज के रूप मे दिया जाता था और कुछ नकद । अधिकारी। महाभारत के सभापर्व मे नारद ने युधिष्ठिर को उपदेश दिया है कि 'कच्चिद्वलस्य भक्त च वेतन च यथोचितम् । मम्प्रा- सेनान-मज्ञा पु० [स०] सेना का अग्रभाग । फौज का अगला हिस्सा। सेनाग्रग-सज्ञा पुं० सेना का प्रधान । सेनापति । प्तकाले दातव्य ददासि न विकर्पसि' । चतुरग दल के गतिरिक्त सेना के और चार विभाग होते थे--विष्टि, नौका, चर और सेनाचर-सज्ञा पुं॰ [स०] सेना के साथ जानेवाला सैनिक । योद्धा । देशिक । सब प्रकार के सामान लादने और पहुँचाने का प्रबंध सिपाही। 'विप्टि' कहलाता था। 'नौका' का भी लडाई मे काम पडता सेनाजीव-सञ्ज्ञा पु० [स०] दे० 'सेनाजीवी' । था। 'चरो' के द्वारा प्रतिपक्ष के समाचार मिलते थे। 'देशिक' सेनाजीवी-सज्ञा पुं० [स० सेनाजीविन्] वह जो सेना मे रहकर स्थानीय सहायक हुआ करते थे जो अपने स्थान पर पहुंचने पर अपनी जीविका चलावे । सैनिक । सिपाही । योद्धा । सहायता पहुँचाया करते थे। सेना के छोटे छोट दलो को 'गुल्म' सेनादार-सशा पु० [स० सेना+ फा० दार सेनानायक । फौजदार। कहते थे। उ.-मल्हारराव हुल्कर भाग्य के वल से पेशवा बहादुर की पर्या०-चतुरग। बल । ध्वजिनी। वाहिनी। पृतना । चमू । सेना का सेनादार हो गया।-शिवप्रसाद (शब्द०)। अनीकिनी। सैन्य । वरुथिनी। अनीक । चक। वाहना। सेनाधिकारी-सञ्ज्ञा पु० [स० सेनाधिकारिन्] सेनानायक। फौज का गुल्मिनी । वरचक्षु । अफसर । २ भाला । वरछी । शक्ति । साँग। ३ इद्र का वज्र । ४ इद्राणी। सेनाधिनाथ-सशा पु० [स०] सेनापति । फौज का अफसर । ५ वर्तमान अवसपिणी के तीसरे ग्रहत् शमव की माता का सिपहसालार। नाम (जन)। ६ एक उपाधि जो पहले अधिकतर वेश्यानो सेनाधिप---सज्ञा पु० [स०] दे० 'सेनाधिपति' । के नामो मे लगी रहती थी। जैसे,--बसतसेना। ७ सेना की सेनाधिपति-सज्ञा पु० [सं०] फौज का अफसर । सेनापति । - 1