पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४५७

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सेवा . - से लिया ७०७७. सेलिया'-सञ्ज्ञा पु० [देश०] घोडे की एक जाति । उ०--सिरगा समंदा सेल्ह-सज्ञा पुं० [स० शल्य या शल] दे॰ 'सेल'। उ०-गोलिन तीरन स्याह सेलिया सूर सुरगा। मुसकी पंचकल्यान कुमेदा केहरि की झर लाई। मचो सेल्ह समसेरन घाई। त्यो लच्छे रँगा। -सुजान०, पृ० ८। रावत प्रमु प्रागै । सेल्हन मार करी रिस पाग।-लाल सेलिया-सज्ञा स्त्री० [सं०] विल्ली। कवि (शब्द०)। सेलिस-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सफेद हिरन । सेल्हना -क्रि० अ० [हिं० सेलना] मर जाना । जीवित न रहना । सेलि-समा स्त्री० [हिं० सेल] छोटा भाला। दे० 'सेली' । उ०- (बोल०)। लहलहे जोवन लुहारिनि लुहारी मैं ही सारसी लहलहाति लोहसार सेल्हरा-सञ्ज्ञा पुं० [स० शल्क, हिं० सरहना, सेहरा] मछलियो के सेलि सी । भृकुटी कमान खरी देव दृगन वान भरी जोवन की ऊपर की पर्त । सेहरा। चोई । उ०-सेल्हरो की परो की थी सान धरी धार विष मेलि सी।-देव (शब्द०)। गड्डियाँ |--कुकुर०, पृ० १५७ । सेली'—सञ्चा स्त्री० [हिं० सेल + हिं० ई (प्रत्य)] छोटा भाला । वरछी। सेल्हा-साशा पु० [स० शालि] एक प्रकार का अगहनी धान जिसका चावल बहुत दिनो तक रह सकता है । उ०-सेलियां बांकियां देख अवधूत की जीवत मरै सोइ ठोड पावै ।-राम० धर्म०, पृ० ३८३ । सेल्हा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० सेला) दे० 'सेली' । सेली'—सशा स्त्री० [सं० शूल, हिं० सूली] दे० 'सूली' । उ०--उठे सेल्ही-सज्ञा स्त्री० [हिं० सेला, सेल्हा] १ छोटा दुपट्टा। २ गाँती । ३ कबीर करम किया, बरसे फूल अकास । गरीबदास सेली चले, रेशम, सूत बाल अादि की बद्धी या माला । उ०-अोझरी की चांवर करे रेदास |--कबीर ग्र०, पृ० १२१ । झोरी कांधे, प्रांतनि की सेल्ही बांधे, मूंड के कमडल, खपर किए कोरि के । जोगिनी झुटुग झुड झुड बनी तापसी सी तीर तीर सेली-मज्ञा स्त्री० [हिं० सेला] १ छोटा दुपट्टा। उ०-मगलदास रहे वैठी सो समर सरि खोरि के।-तुलसी (शब्द०)। दे० 'सेली। गुरुभाई। टोपी सेली तेहि पहिराई।-घट०, पृ० १९२ । सेव--सन्हा पुं० [देश॰] एक प्रकार का ऊँचा पेड जिसकी लकडी कुछ २ गाँती। ३. सूत, ऊन, रेशम या वालो की बद्धी या माला पीलापन या ललाई लिए सफेद रंग की, नरम, चिकनी, जिसे योगी यती गले मे डालते या सिर मे लपेटते है। उ०- चमकीली और मजबूत होती है । कुमार । सीस सेली केस, मुद्रा कनक बीरी वीर । विरह भस्म चढाइ विशेष—इसकी आलमारी, मेज, कुरसी और आरायशी चीजें बैठी, सहज कथा चीर ।—सूर (शब्द०)। ४ स्त्रियो का बनती है। बरमा मे इसपर खुदाई का काम अच्छा होता है। एक गहना । उ०-मनि इव्रनील सु पद्मराग कृत सेली इसकी छाल और जड प्रोषध के काम आती है और फल खाया भली ।-रघुराज (शब्द०)। जाता है। इसकी कलम लगती है और बीज भी बोया सेलो'-सज्ञा स्त्री० [सं० शाल्क (= मछली का सेहरा)] एक प्रकार जाता है । यह वृक्ष पहाडो पर तीन हजार फुट की ऊंचाई तक की मछली। मिलता है । यह बरमा, आसाम, अवध, वरार और मध्य प्रात मे सेली-सहा सी० [देश०] दक्षिण भारत का एक छोटा पेड जिसकी . बहुत होता है। लकडी कडी और मजबूत होती है और खेती के औजार बनाने सेवई–सशा सी० [स० सेविका] गुधे हुए मैदे के सूत के लच्छे जो घी के काम मे आती है। मे तलकर और दूध मे पकाकर खाए जाते है। सेलु-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ लिसोडा। श्लेप्मातक । लमेडा । सेरू । सेर्वई-सद्या स्त्री० [स० श्यामक, हिं० सावा] एक प्रकार की लवी २ एक सख्या (बौद्ध)। घास जिसमे सावे की सी वालें लगती हैं जो चारे के काम मे सेलून-सज्ञा पुं० [अ०] १ जहाज का प्रधान कमरा । २ बढिया ग्राती है। कमरे के समान सजा हुआ रेल का वडा लबा डब्बा जिसमे सेवेढी --सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार का धान जो उत्तर प्रदेश मे अत्यत महत्वपूर्ण व्यक्ति और बडे बडे अफसर सफर करते है। होता है। ३ सार्वजनिक प्रामोद प्रमोद का स्थान । ४ अंगरेजी ढग के सेवत--सण पु० [स० सामन्त] एक राग जो हनुमत के अनुसार मेघ वाल बनानेवाले हज्जामो की दुकान । ५ जलपान का स्थान राग का पुत्र है। ६ वह स्थान जहाँ अंगरेजी शराब बिकती है। -७ सेवर@+-सज्ञा पुं० [सं० शिम्बल, हिं० सेमल] दे० 'सेमल'। जगह । (लश०)। उ०--राज कहा सत्य कहु सूत्रा। विनु सत जस सेंवर कर सेलो-सज्ञा पुं॰ [देश॰] सायादार जमीन । भूया।-जायसी (शब्द॰) । सेल्ल-सञ्ज्ञा पुं० [स० शल्य या शल] दे० 'सेल्ला', 'सेल्हा' ।-वर्ण०, सेव'--सपा पु० [सं० सेविका] सूत या डोरी के रूप मे बेसन का एक पकवान। सेल्ला--सझा पुं० [स० शल्य या शल] एक प्रकार का अस्त्र । विशेष--गुधे हुए वेसन को छेददार चौकी या झरने मे दबाते हैं भाला। सेल। जिससे उसके तार से बनकर खोलते घी या तेल की कढ़ाई हिं० २०१०-५६ 8