पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 10.djvu/४६१

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संगन जज ७०८१ सेहहजारी 1 30 सेशन जज-सज्ञा पु० ग्र०] वह जज जो खून आदि के बडे वडे सेहर--संज्ञा पुं॰ [सं० सन्धि, हिं० सेध] दे० 'सेहा' । मामलो का फैसला करता है दौरा जज । सेहर-व० [फा०] तीन । (हिदी मे यह शब्द फारसी के कुछ यौगिक सेशुम-वि० {फा०] छठा । उ०-सेशुम रात को शहर देखा अजव । शब्दो के साथ ही मिलता है। मकानदार वहाँ के है वीमार सव। दक्खिनी०, पृ० ३०१ । सेहखाना-सा पु० [फा० सेह (- तीन) + खाना ( - घर)] तीन सेश्वर-वि० [२०] १ ईश्वरयुक्त । २ जिसमे ईश्वर को मत्ता मजिल का मकान । तिमजिला मकान । मानी गई हो । जैसे,-न्याय और योग सेश्वर दर्शन हैं । सेहत-सशा स्त्री० [अ० सेह,हत] १ सुख । चैन । राहत । २ रोग से सेष-सज्ञा पु० [सं० शेष] दे० 'शेप'-८ | उ०-तपवल सभु छुटकारा । रोगमुक्ति । वीमारी से ग राम । करहि महारा। तपवल शेप धरइ महि भारा।-तुलसी क्रि० प्र०-चाना ।-मिलना । —होना । (शब्द०)। यौ०-सेहतनामा (१) शुद्धिपन । (२) स्वास्थ्य का प्रमाणपत्र सेष'-सज्ञा पु० [अ० शैख] दे० 'शेख' । उ भूला जोगी और सेप सेहतबख्श-स्वास्थ्यप्रद। पीलिया मुनि जन कोटि अठासी।--रामानद०, पृ० ३५ । सेहतखाना-मञ्ज्ञा पु० [अ० सेहत + फा० खानह] पेशाव आदि करने सेषु-वि० [म०] इषुयुक्त । वाणयुक्त (को०] । और नहाने धोने के लिये जहाज पर बनी एक छोटी सी कोठरी। सेपुक-वि० [स०] इपु सहित । वाण युक्त (को०] । (लश०)। सेसर-सञ्ज्ञा पुं०, वि० [स० शेप, प्रा० सेस] दे० 'शेष' । सेहथना --क्रि० स० [स० सह + हस्त = महस्य + हिं० ना (प्रत्य॰)] १ हाथ से लीपकर साफ करना । सैतना । २ झाडना। (क) सेस छवीहि न कहि सकै अगम कवीहि सुधीर । स्याम सवीहि विलोकि के वाम भई तसवीर ।-शृगार सतसई बुहारना । (शब्द॰) । (ख) तवहिं सेस रहि जात पार नहिं कोऊ पावत। सेहर-मज्ञा पु० [म० शेखर, शिखर, प्रा. सेहर, सिहर] १ दे० या सो जग मै सेस नाम सुर नर मुनि गावत ।-गोपाल 'शिखर' । उ०-पथी एक संदेसडइ, लग ढोलड पहच्वाइ। (शब्द०)। विरह वाघ बनि तनि बसाइ, सेहर माजइ आइ ।-ढोला०, सेमा-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० शेप ( = वचा हुआ)] सीरणी । प्रसाद । उ० दू० १२८ । २ सेहरा । विजयमुकुट । युद्ध मे जाने के पूर्व सूझ हमेस वाटणो सेस।-वॉकी ग्र, भा० ३, पृ० ११० । सिर मे बंधी हुई पगडी । उ०-लर सिर सेहर बांधि सजोर । सेम-सञ्ज्ञा पु० [अ०] कर । टैक्स । जैसे, रोड सेस । ह० रासो, पृ०६२। सेसनाग@--सज्ञा पुं० [स० शेषनाग] दे॰ 'शेषनाग' । सेहरा-सज्ञा पु० [स० शीर्षहार, हिं० सिरहार, सिरहरा] १ फूल की या तार और गोटो की बनी मालायो की पक्ति या जाल सेसरंग-सज्ञा पु० [स० शेप + रग] सफेद रग। (शेष नाग का रग जो दूल्हे के मौर के नीचे लटकता रहता है। उ०--तीन श्वेत माना गया है।) उ०-गहि कर केस हमेस परहि दायक गुनन कलेम को। वेस सेसरॅग वसन तेज मोहत दिनेस को।- के सेहरा दुलह पहिरावहिं हो।-धरम० श०, पृ० ४८ । २ गोपाल (शब्द०)। विवाह का मुकुट । मौर । उ०—(क) लटकत सिर सेहरो सेसर-सज्ञा पुं॰ [फा० सेह (=तीन) + सर ( = बाजी)] १ ताश मनो शिखी शिखड सुभाव।—सूर (शब्द०)। (ख) मानिक सुपन्ना पदिक मोतिन जाल सोहत सेहरा।--रघुराज का एक खेल जिसमे तीन ताश हर एक आदमी को बांटे जाते है और विदियो को जोडकर हारजीत होती है। नौ विंदी (शब्द०)। आने पर 'सेसर' होता है। आठवाले को दांव का दूना और क्रि० प्र०- पहिराना।-बंधना।--वाधना। नौवाले को तिगुना मिलता है। २'जालसाजी 1 ३ जाल । महा०--किसी के सिर सेहरा बँधना= किसी का कृतकार्य होना। उ०~-मदमाती मनोज के आसव सो, “अँग जासु मनो रंग औरो से अधिक यश या कीर्ति होना। श्रेय मिलना। सेहरा केसरि को। सहजै नथ नाक ते खोलि धरी, करचो कौन धो बंधाई = वह नेग जो दूल्हे को सेहरा बाँधने पर दिया जाता है। फद या सेसरि को।-सुदरीसर्वस्व (शब्द॰) । सेहरे के फूल खिलना = विवाह की अवस्था को प्राप्त होना। सेसरिया--वि० [हिं० सेसर+इया (प्रत्य०)] छल कपट करके दूसरो विवाह योग्य होना । सेहरे जलवे की = जो विधिपूर्वक व्याह का माल मारनेवाला।.जालिया। कर आई हो। (मुसल०)। ३ वे मागलिक गीत जो विवाह के अवसर पर वर के यहाँ गाए सेसी--सज्ञा पु० [देश०] एक प्रकार का बहुत ऊंचा पेड जिसकी लकडी के सामान बनते है । पगूर । विशेष-इसकी लकडी भीतर से काली निकलती है। यह आसाम सेहरी 1-सञ्ज्ञा सी० [सं० शरी] छोटी मछली । सहरी। और सिलहट की पूर्वी और दक्षिणपूर्वी पहाडियो मे बहुत सेहवन-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का रोग जो गेहूँ के छोटे छोटे होता है । लकडी से कई तरह की सजावट की और कीमती पौधे को होता है। चीजे तैयार की जाती है 1 इसे आग मे जलाने से बहुत अच्छी सेहहजारी-सज्ञा पुं० [फा०] एक उपाधि जो मुसलमान बादशाहो के गध निकलती है। समय मे सरदारो और दरबारियो को मिलती थी। " जाते हैं।