पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१०८

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हसदफरा हंसवाहिनी ५४२० हमेंदफरा--सज्ञा पुं० [?] वे रस्रो जो छोटी नाव मे उसकी मजबूती हसमगला--सएश रती० [सं० हममगता] एक मक, गगिनी जो के लिये बंधे रहते है। शकराभरण, सोरठ और अहानामेन ने उनी है। हसदाहन--सज्ञा पुं० [स०] धूप । गूगल । हसमाला-राशा स्त्री॰ [सं०] १ हो की पत्ति । २ का वर्णन हसद्वार--सज्ञा प० [स०] मानसरोवर के समीप का एक स्थान (को०] । का नाम । गमे समा रागण, ग्गा पोर एक गुरू होता है । हसद्वीप-सज्ञा पुं० [सं०] एक द्वीप का नाम । प्लक्ष द्वीप [को०] । उ०-गुर गौ के महा। जमुना नीर गाई 17 पेरी गुगाना। नसिक हगमाला।-द, पृ० १३६ । हसनाद--सज्ञा पुं० [स०] हस का कूजन । हस का कलरव [को०] । हसनादिनी'--वि० सी० [सं०] सुदर बोलनेवाली। मधुरभापिणी । हसमापा-सा मी. [म.] मापपर्णी (110) हसनादिनी-सशा पी० स्त्रियो का एक विशिष्ट प्रकार (को०] । हसयान'-वि० [ म०] जिनका वारन हग हो कि०] | विशेप-हसनादिनी स्त्रियां सुकुमार, सुदर, क्षीण कटिवाली, हसयान'-समा ५० हम की ग्राम विमान प्रवा रह यान नितबगुर्वी, गजेंद्र के समान मयर गतियुक्त कही गई हैं। जिसका वाहक हम हो। इनका स्वर कोकिल के समान मधुर होता है । हसरथ-सा पुं० [सं०] ब्रह्मा (जिनका वान रग है)। हसनाभ-सपा पुं० [स०] एक पर्वत का नाम (को॰] । हसरव-सा पुं० [सं०] हस की ध्वति। हमनाद । हसनी-सक्षा सी० [हिं० हम+नी (प्रत्य०)] दे० 'हसी'। सराज-मया पुं० [सं०] १ एा बूटी जे पग में चट्टानों मे रगी हसनीलक-सशा पुं० [सं०] कामशास्त्र मे रति का एक प्रकार । दे० हुई मिलती है। समतपत्ती। 'हसकीलक' (को॰] । विशेप-यह एक छोटी घात होती है जिसमे चारो ओर पाठ हसपक्ष-सज्ञा पुं० [सं०] १ हस का पस। २ हाथो को एक विशेष दस प्रगुन के सूत के ने उन पंरते हैं। इन हठनो के दोनो मुद्रा या स्थिति (को०)। पोर वद मुट्ठी के पास की छोटी छोटी कटारदार पत्तियां गुछी होती हैं। यह बूटी देगने में वटी गुम होती है, इससे हसपथ--सामा पुं० [सं०] एक जनपद का नाम । वगीचो मे ककड पत्थर के ढे, राह रहे इगे लगाते है। हसपद--सज्ञा पुं० [स०] १ एक तौल या मान । कर्ष। २. हस को वैद्यक में यह गरम मानी जाती है और ज्वर में दी जानी है। पैर का चिह्न। ३ किसी छूटे हुए शब्द या अक्षर का सूचक कहते हैं, इसमे बवासीर से गून जाना भी बद हो जाता है। चिह्न । छूटे हुए अक्षर या शब्द के लिये पक्ति के नीचे बनाया २ एक प्रकार का अगहनी धान । ३ हमो का राजा। बडा जानेवाला चिह्न।-भा० प्रा० लि०, पृ० १५० । हस (को०)। विशेष--लेखक जब किसी अक्षर या शब्द को भूल से छोड जाता तो वह अक्षर या शब्द या तो पक्ति के ऊपर या नीचे अथवा हसरत-तशा पुं० [सं०] हस की ध्वनि । हसरव । हसनाद हो । हाशिये पर लिखा जाता था और कभी वह अक्षर या शब्द किस हसरोम-सा पुं० [सं०] दे० 'हसतूल' । स्थान पर चाहिए था यह वतलाने के लिये A या x चिह्न भी हसला@-सा पुं० [सं० हस, + अप० वा या ला(प्रत्य॰)] साधु मिलता है जिसको 'काकपद' या 'हसपद' कहते हैं। जिसकी प्रात्मा शूद्ध हो। शुद्ध प्रात्मावाला साधु । उ०-साधु हसपदिका-सहा स्त्री॰ [सं०] दुष्यत की पहिली भार्या का नाम । सदा सजमि रहै, मैला कदे न होइ । नु नि सरोवर मला, दाद हसपदी--संज्ञा स्त्री० [म०] १ एक लता का नाम । २ एक अप्सरा विरला कोई।-दाद् वानी, पृ० ३०४ । का नाम (को०) । ३ एक वृत्त (को०) । हसलिपि 1-सश सी० [सं०] लिखने का एक विशिष्ट प्रकार। एक हसपाद-सधा पुं० [सं०] १ हिंगुल । इंगुर । शिंगरफ। २ सिंदूर प्रकार की लिपि (जा)। (को०) । ३ पारद । पारा (को॰) । हसलील-सझा पुं० [सं०] सगीत मे एक ताल [को०] । हसपादिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] दे॰ 'हसपदी' 'को०] । हसलोमश-सरा पुं० [स०] कसीस । हसणदी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे॰ 'हसपदी' । हसलोहक-सज्ञा पुं० [स०] पीतल [को०] । हसप्रपतन- सञ्चा पुं० [सं०] एक तीर्थ का नाम [को०] । हसवश-सा पुं० [मं०] सूर्यवश । हसबप-सज्ञा पुं० [सं० हमवश] सूर्यवश । उ०-राम कस न हसवक्त्र-सपा पुं० [सं०] स्कद के एक गण का नाम (को०] । तुम्ह कहहु अस हसवस अवतस '-मानस, २।९। हसवती--सज्ञा सी० [सं०] एक लता का नाम । यौ fo-हसबस गुरु = सूर्यवशियो के गुरु । वशिष्ठ ऋपि । उ० ह सवाहे-वि[स०] जो हस द्वारा वहन किया जाय। हम की सवारी हसबस गुरु जनक पुरोधा । जिन्ह जग मग परमारथ सोधा । करनेवाला (को०] । -मानस, २।२७७ । हसवाहन--सशा पुं० [सं०] ब्रह्मा (जिनको मवारी हम है ) । हसवीज-सञ्ज्ञा पुं० [स०] हंस का प्रडा [को० । हसवाहिनी -सशा सी० [०] सरस्वती (जिनकी सवारी हम है)।