पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१०९

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हंसविक्रांतगामिती ५४२१ हंकाई हसविक्रातगामिता--सज्ञा स्त्री० [स० हसविक्रान्तगामिता] हस के सदृश हसुला 2-सज्ञा पु० [स० हस+ अप० ला (प्रत्य॰)] दे० 'हम' । गति । हस जैसी चाल । उ०--देसि परादे हसुला भया उडीणा प्राथि । हस उडारी हसश्रेणी -सज्ञा सौ॰ [स०] हसो को पक्ति । हसमाला [को०] । समली जाय मीलीये सग साथि । --प्राग०, पृ० १०५। हससुता-सज्ञा स्त्री॰ [स०] सूर्य की कन्या। यमुना नदी । उ० हकg-मज्ञा स्त्री० [हिं० हाँक] दे० 'हॉक' । हससुता की सु दर कगगे प्रो कुजन की छाही ।-सूर हँकडना-क्रि० अ० [हिं० हाँक ] १ जोर जोर से चिल्लाना । झगडते (शब्द०)। हुए दर्प के साथ बोलना । ललकारना। हुकारना । २ गाय, हसाध्रि--सचा पुं० [स० हमाइघ्रि] हिंगुल । इंगुर । सिंगरफ । बैल, सांड आदि पशुप्रो का जोर जोर से चिल्लाना । हसाशु-वि० [स०] उज्वल । श्वेत [को०] । हँकडान, हॅकडावा-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० 'हॉक' से व्युत्पन्न हँकडने का हसागमणि --वि० स्त्री० [स० हसगामिनी] हस के तुल्य सु दर एव भाव या जोर जोर से चिल्लाने की क्रिया । धीमी गतिवाली। दे० 'हसगामिनी' । उ०—(क) चदमुखी, हँकनी -सज्ञा स्त्री० [हिं० हॉकना] १ हलवाहो की वैलो को हांकने हसामणि, कोमल दीरघ केस । कचनवरणी कामनी वेगउ की छोटी छडी। पैना। २ हाँकने का काम । हांकने की प्रानि मिलेम।-ढोला०, दू० २०७ । क्रिया । ३ हांकनेवाली स्त्री। हसाधिरूढ-सञ्ज्ञा पुं० [ स० हमाधिरुड ] ब्रह्मा का एक नाम [को०] । हँकरनो-क्रि० प्र० [हिं० हांक] दे॰ 'हँकडना' । हसाधिरूढां-पता मी० [स. हमाधिरूढा] हसारूढा । सरस्वती [को०] । हँकरोना - क्रि० स० [हिं० हांक ] १ हाँक देकर बुलाना। जोर से हसाभिख्य-सञ्ज्ञा पु० [ स० ] चांदी। आवाज लगाकर किसी दूर के मनुष्य को सवोधन करना । २. बुलाना । पुकारना। उ०-मोहन ग्वाल सखा हँकराए। --सूर हमारूड- डा पुं० [३० हाल्ड] ब्रह्मा (जो हस पर सवार होते है)। (शब्द॰) । ३ पुकारने का काम दूसरे से कराना । बुलवाना। हसारुढा-सहा श्री० [स० हसारुढा ] मरस्वती । उ०--(क) राजा सव सेवक हंकराई। भाँति भाँति की वस्तु हसाल-सञ्ज्ञा पुं० [ स० हसालि ] ३७ मात्रामो का एक प्रकार का मंगाई। -विश्राम (शब्द॰) । (ख) राजा छरीदार हॅकराई। छद । दे० 'हसालि' । छद प्रभाकर के अनुमार इसका लक्षण --कवीर म०, पृ० ५००। है 'बीसी सत्रह यति धरि निरसक रची, सर्व या छद हसाल हॅकराव, हॅकरावा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हैकराना] १. बुलाने की क्रिया या भायौ' । उ०-तो सो ही चतुर सुजान परवीन अति, परे जिन पोजरे मोह .ग्रा । पाय उत्तम जनम लायके चपल मन, भाव । बुलाहट । पुकार। २ बुलावा । न्योता । निमन्त्रण । गाय गोविंद गुन जीत जूमा। पाप हो पाप अज्ञान नलिनी हकलाना- क्रि० अ० [ हिं० १ ] अटक पटककर बोलना। रुक बंधो, विना प्रमु भजे कइ बार मुप्रा । दास सु दर कहै परमपद रुककर बोलना। उ०—कटि हलाइ हकलाइ कछु अद्भुत तो लहै, राम हरि राम हरि बोल सूपा ।-छद ०, पृ० ७० तथा ख्याल बनाइ । अस को जा नहि फाग मे परगट दियो हँसाइ । -पद्माकर न०, पृ० १५५ । सु दर० ग्र० (भू.), भा० १, पृ० ५१ । हँकवा -सज्ञा पुं० [हिं० हाँक ] शेर या किसी हिंस्र पशु के शिकार का हसालि -सज्ञा स्त्री० [म० ] ३७ मात्रामो का एक छद जिसमे वीसवीं और सत्रहवी माना पर यति और अत मे यगण होता है। एक ढग। विशेष-इसमे बहुत से लोग ढोल, ताशे प्रादि बजाते और शोर यह मात्रिक छद दडक वृत्त के अंतर्गत है। करते हुए, जिस स्थान पर शेर होता है, उस स्थान के चारो हसावलो-पज्ञा स्त्री॰ [म.] हसो की पक्ति । हसश्रेणी (को०] । ओर से चलते है और इस प्रकार शेर को हॉककर उस मवान हसास्य-सशा पं० [ स०] हाथो की एक विशेष स्थिति [को०] । की ओर ले जाते हे जहाँ शिकारी उसे मारने के लिये बदूक भरे हसिका-सचा स्त्री॰ [म० ] हम की मादा । हसी । बैठे रहते है। हसिनि-मज्ञा स्त्री॰ [ स० हस ] दे० 'हसी'। उ०-जस तुम्हार हँकवाना-क्रि० स० [हिं० हाँकना का प्रेर० रूप ] १ हाँक लगवाना। मानस विमल हसिनि जीहा जासु । मुकृताहल गुन गन चुनइ वुलवाना । दूसरे से पुकारने का काम कराना । २. पशुपो या राम बसहु मन तासु।-मानस, २।१२८ । चौपायो को आवाज देकर हटवाना या किसी ओर भगाना। ३ हसिनी-सज्ञा ली० [म०] एक विशेष प्रकार की गति । रथ, वहली, इक्के आदि मे जुते जानवर को किसी के द्वारा चल- हसिर-सज्ञा ० [सं०] एक प्रकार का भूपक (को०] । वाना या आगे बढने के लिये प्रेरित कराना। हसी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ हस की मादा । स्त्री हस । २ दूध देनेवाली सयो० क्रि०-देना। गाय की एक अच्छी जाति । (पजाव) । ३ वाईस अक्षरो हकवैया@f-सचा पु० [हिं० हाँकना + वैया (प्रत्य॰)] हाँकनेवाला । का एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण मे दो मगण, एक हँकाई--प्रज्ञा स्त्री० [हिं० हॉकना] १ रय, वहली, इक्का, बैलगाडी तगण, तीन नगण, एक सगण और एक गुरु होता है। आदि के पशुओ को हांकने की क्रिया या भाव । २ हाँकने की (sss, sss, ssi, lll lll, ill, 115, 5) i मजदूरी।