पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१४९

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हरियाल ५४६१ हरिश्चंद्र हरियाल-वि० [हि. हरा ] हरित । हरा भरा । उ०-जन दरिया हरिव-सज्ञा पु० [ सं० ] बौद्धो के अनुसार एक बड़ी संख्या (को० । गुरदेव जी, मोहि ऐसे किया निहाल । जैसे सूखी बेलडी, वरस हरिवर्ष-सज्ञा पुं० [१०] जवू द्वीप के नौ खडो मे से एक खड का नाम । किया हरियाल । -दरिया० वानी, पृ० ३ । विशेष-इसकी स्थिति निपध और हेमकूट पवत के मध्य मे कही हरियाली-सज्ञा स्त्री॰ [स० हरित+प्रालि ( = पक्ति, समूह)] १ हरे गई है । यहाँ भगवान् नरहरि रूप मे स्थित माने गए है । पन का विस्तार । हरे रग का फैलाव । २ हरे हरे पेड़ हरिवल्लभा-सज्ञा स्रो० [स०] १ लक्ष्मी। २ तुलसी । ३. अधिक पौधो या घास का समूह या विस्तार । जैसे,-बरसात मे मास की कृष्णा एकादशी । ४ जया । नाम का पौधा (को॰) । चारो ओर हरियाली छा जाती है । हरिवालुक-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'हरिवालुक' [को०] । मुहा०-हरियाली सूझना = चारो ओर आनद ही आनद दिखाई हरिवास--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अश्वत्य । पीपल । पडना । मौज की बातो की ओर ही ध्यान रहना। आनद मे मग्न रहना । जैसे,—अभी तो हरियाली सूझ रही है, जब हरिवास'--वि० पीला वस्त्र धारण करनेवाला। पीताबरधारी (विष्णु)। रुपये देने पडेगे, तव मालूम होगा। ३ हरा चारा जो हरिवासर-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ सूर्य का दिन । रविवार । २ विष्णु चौपायो के सामने डाला जाता है । ४ दूर्वा । दे० 'दूब' । का दिन । एकादशी। ५ कजली का पर्व । दे० 'हरियाली तीज' । उ०-उसी हरिवासुक-सज्ञा पुं० [स०] दे॰ 'हरिवालुक' [को०] । दिन से कजली अथवा 'हरियाली' की स्थापना होती।- हरिवाहन-सज्ञा पु० [स०] १ गम्ड । २ सूर्य का एक नाम । प्रेमघन०, भा॰ २, पृ० ३४६ । ३ इद्र का एक नाम । हरियाली तीज-सज्ञा स्त्री० [हि• हरियाली + तीज] सावन बदी यौ०-हरिवाहन दिशा- पूर्वदिक् । पूर्व दिशा । तीज जिसे 'कजली' भी कहते है। हरिवीज-सज्ञा पु० [स०] दे॰ 'हरिवीज' [को॰] । हरिया -मला पु० [ देश० ] फसल को एक बँटाई जिसमे ६ भाग हरिवृष-सञ्ज्ञा पुं० [स.] ३० 'हरिवर्प' (को॰] । असामी और ७ भाग जमीदार लेता है। हरिणकर--सज्ञा पुं॰ [स० हरिशङ्कर] १ विष्णु और शिव । २ एक हरियोजन-सञ्चा पुं० [सं०] १ इद्र का एक नाम । २ रथ आदि रसौषध जो पारे और अभ्रक के योग से बनती है और प्रमेह मे घोडे को जोतना या नाधना (को०] । मे दी जाती है। हरिरोमा-वि० [सं० हरिरोमन् ] जिसके शरीर पर नवीन एव विशेष-शुद्ध पारे और अभ्रक को लेकर सात दिन तक आँवले सुदर रोम हो, जो नित्यतरुण हो [को०] । के रस मे घोटते है, फिर सुखाकर एक रत्ती की मात्रा मे हरिला -सज्ञा पुं० [देश० ] दे० 'हारिल' । हरिलोला-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ भगवान् की लीला। ईश्वर की लीला। हरिशयन--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] हरि का शयन । विष्णु का शयन करना। २ चौदह अक्षरो का एक वर्णवृत्त जिसका स्वरूप इस प्रकार हरिशयनी-नचा स्त्री० [सं०] आपाढ शुक्ल एकादशी । है-'साँची कही भरत बात सर्व सुजान' ।-केशव (शब्द०)। विशेष-पुराणो के अनुसार इस दिन विष्णु भगवान् शेप की विशेष-यदि अतिम वर्ण लघु लें तब तो इसे अनग छद कह शय्या पर सोते है और फिर कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी सकते हैं, पर यदि अतिम लघु वर्ण को गुरु के स्थान पर को उठते है। मानें तो यह प्रसिद्ध वसततिलका वृत्त ही है। केशव ने ही हरिशर-सञ्ज्ञा पु० [सं०] शिव ! महादेव । इसका यह नाम दिया है। विशेष-त्रिपुरविनाश के समय शिव ने विष्णु भगवान् को हरिलोक-सज्ञा पुं० [सं०] विष्णुलोक । वैकुठ । अपने धनुष का वाण बनाया था, इसी से इनका यह नाम हरिलोचन'-सज्ञा पुं० [सं०] १ केकडा । २ उलूक । उल्लू । पड़ा है। ३ एक रोग ग्रह किो० । हरिश्चद्र'-वि० [स० हरिश्चन्द्र ] सोने की सी चमकवाला। हरिलोचन-वि० भूरी आँखोवाला। पिगाक्ष (को०] । स्वर्णाभ । (वैदिक)। हरिलोमा-वि० [सं० हरिलोमन् ] जिसके केश पिगलवर्ण के हो । हरिश्चद्र' २-सञ्ज्ञा पु० सूर्यवश का अट्ठाईसवाँ राजा जो त्रिशकु पिगलकेश (को०] । का पुत्र था। हरिवश-सज्ञा पुं० [सं०] १ कृष्ण का कुल । २ एक ग्रथ जो विशेष-पुराणो मे ये बडे ही दानी और सत्यव्रती प्रसिद्ध है। महाभारत का परिशिष्ट माना जाता है और जिसमे कृष्ण मार्कडेय पुराण मे इनकी कया विस्तार से आई है। इद्र ने तथा उनके कुल के यादवो का सविस्तार वृत्तात दिया गया है। ईर्ष्यावश विश्वामित्र को इनकी परीक्षा के लिये भेजा। सतानप्राप्ति के लिये इसका श्रवण विधिपूर्वक किया जाता विश्वामित्र ने इनसे सारी पृथ्वी दान मे ली और फिर ऊपर है। ३ कपि या बदरो का वश (को०] । से दक्षिणा मांगने लगे । अत मे राजा ने रानी सहित अपने देते है।