पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/१५६

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हलदी हलका' ५४६८ हलका-सज्ञा पुं० [अनु॰ 'हल हल' या 'हिलना'] पानी की हिलोर। हलगोलक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का कीडा । तरग। लहर। हलग्राही'--वि० [सं० हलग्राहिन्] हल पकडनेवाला । हल की मूंठ हलका-सज्ञा पुं० [अ० हलकह] १ वृत्त । मडल। गोलाई । २ पकडकर खेत जोतनेवाला। घेग। परिधि । उ०-जुल्फ के हलके मे देखा जब से दाना विशेष-हल पकडना बहुत स्थानो मे ब्राह्मणो और क्षत्रियो खाल का। मुर्ग दिल आशिक का तब से सैद है इस के लिये निषिद्ध समझा जाता है । जाल का |--कविता की०, भा० ४, पृ० २३ । ३ मडली। झुड । दल । उ०-~ी वाहत्या श्राफलै, कुजर हलका काय। हलग्राही- सज्ञा पुं० खेती करनेवाला । किसान । वाँकी० ग्र०, भा० १, पृ० २६ । ४ हाथियो का झड । उ० हलचल'-सज्ञा स्त्री० [हिं० हलना+ चलना] १ लोगो के बीच फैली सत्ता के सपूत भाऊ तेरे दिए हलकनि वरनी ऊंचाई कविराजन हुई अधीरता, घबराहट, दौड धूप, शोरगुल आदि । खलबली । की मति मैं। मधुकर कुल करटनि के कपोलन तें उडि उडि पियत घूम । जैसे,—सिपाहियो के शहर मे घुसते ही हलचल मच गई। अमृत उडुपति मैं। मतिराम (शब्द॰) । ५ कई गांवो या क्रि० प्र०-डालना । जैसे,--शिवाजी ने मुगलो की सेना मे हल- कस्वो का समूह जो किसी काम के लिये नियत हो । इलाका । चल डाल दी। पडना ।-मचना।--मचाना। क्षेत्र । जैसे,—थाने का हलका । पटवारियो का हलका । ६ गले २ उपद्रव । दगा।३ हिलना । डोलना। कप | विचलन । का पट्टा । ७ लोहे का वद जो पहिए के घेरे मे जड़ा रहता है। हलचल'--वि० इधर उधर हिलता डोलता हुआ। डगमगाता हुआ । हाल ।८ लोहे या लकडी का गोलाकार कुडा (को०) । कपायमान । हलकाई-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० हलका+ ई (प्रत्य॰)] १ हलकापन । हलजीवी-वि० [सं० हलजीविन्] हल चलाकर अर्थात् खेती करके लघुता । २ अोछापन । नीचता । ३ अप्रतिष्ठा । हेठी । निर्वाह करनेवाला । किसान । हलकाना-वि० [हिं० हलका ( = हिलना, कपन ?) अ० हलाकत या हैरान] दे० 'हैरान' । उ०--गिरह माहि धधा घना, भेस माहि हलजुता-समा पुं० [हिं० हल + जोतना] १ तुच्छ कृषक । मामूली किसान । २ गॅवार। हलकान । जन दरिया कैसे भजू, पूरन ब्रह्म निदान ।--दरिया० वानी, पृ० ४०। हलडा--सचा पुं० [हिं० आरा] दे० 'हलरा'। हलकाना-क्रि० अ० [हिं० हलका+ना (प्रत्य॰)] हलका होना। हलदड-सं० पुं० [सं० हलदण्ड] हल का लबा लट्ठा। हरिस । उ०- बोझ कम होना। गिरि कदर सम नासा अत । हल दड से वड्डे दत ।-नद० ग्र०, पृ० २३६॥ हलकाना--त्रि० स० हलका करना । गुरुत्व या वजन कम करना । हलदा-सा स्त्री० [हिं०] दे० 'हलदी' । उ०--मुशाजा मुस्तरी होकर हलकाना--क्रि० स० [हिं० हलकना] १ किसी वस्तु मे भरे हुए पानी को हिलाना या हिलाकर आवाज पैदा करना या बुलाना। २ हलद सूरज लगाया है ।-अली आदिल०, पृ० २७ । हिलोरा देना। हलद हात-सज्ञा स्त्री० [हिं० हलदी+ हाथ] विवाह के तीन या पांच हलकाना --क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'हिलगाना' । दिन पहले वर और कन्या के शरीर मे हल्दी और तेल लगाने हलकानी --सज्ञा स्त्री० [हिं० हलकान + ई] लकान होने की क्रिया की रस्म । हल्दी चढना। या भाव । हैरानी। हलदिया'...सधा पुं० [हिं० हलदी] १ एक पित्त रोग जिसमे शरीर हलकापन-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० हलका + पन (प्रत्य॰)] १ हलका होने का पीला पड़ जाता है। पीलिया रोग। विशेष--दे० 'कामल'। भाव । भार का प्रभाव । लघुता। २ अोछापन । नीचता। तुच्छता २ एक प्रकार का जहर । एक विष का नाम । बुद्धिक्षुद्रता । खोटाई । ३ अप्रतिष्ठा । हेठी। इज्जत की कमी। हलदिया-वि• हलदी के रग का । पोला। हलकार-सञ्ज्ञा पु० [हिं० हरकारा] दृत । चर। उ०—प्रणधि, दून, हलदी- --सज्ञा स्त्री॰ [स० हरिद्रा] ३ डेढ दो हाथ ऊंचा एक पौधा जिसमे जासूस ए छवि पावत हलकार ।-नद० ग्र०, पृ०1०८। चारो घोर टहनियाँ नही निकलती, काड के चारो हाथ पौन हलकारा-सज्ञा पुं० [हिं०] दे॰ 'हरकारा'। हाय लवे और तीन चार अगुल चौडे पत्ते निकलते हैं। हलकारी'-सज्ञा स्त्री० [हिं० हड + कारो] कपज रँगने के पहले विशेष—इसकी जड, जो गांठ के रूप मे होती है, व्यापार की एक उसमे फ्टिकरी, हड या तेजाव आदि का पुट देना जिसमे रग प्रसिद्ध वस्तु है, क्योकि वह मसाले के रूप मे नित्य के व्यवहार पक्का हो। की भी वस्तु है और रेंगाई तया औषध के काम मे भी आती है। हलकारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० हलकह (= घेरा)] हलदी के योग से बने गांठ पीसने पर विलकुल पीली हो जाती है । इससे दाल , तर- हुए रग के द्वारा कपडो के किनारे पर की छपाई । कारी आदि मे भी यह डाली जाती है और इसका रग भी बनता हलकोरा-सज्ञा पुं० [अनु० हल हल] हिलोरा । तरग । लहर। है । इसकी खेती हिंदुस्तान मे प्राय. सब जगह होती है । हलदी उ०-धाम के हलकोरो ने रग की लहरै ला ला कर की कई जातियां होती हैं। साधारणत दो प्रकार की हलदी -प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १२। देखने मे पाती है--एक विलकुल पीली, दूसरी लाल या ललाई