पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सब करेगा। हितपणा ५५१२ हिमत हितैपणा-मज्ञा स्त्री० [स०] शुभेच्छा । हितेच्छा (को०] । यौ०-हिनाई कागज = एक प्रकार का कागज । हितपिता-सज्ञा स्त्री० [म०] भलाई चाहने की वृत्ति । खैरखाही । हिनाई?--सञ्ज्ञा पुं० पीलापन लिए हुए सुर्ख रग । हितैपी'--वि० [स० हितैपिन्] [वि॰ स्त्री हितैपिणो] भला चाहनेवाला। हिनाई:--सञ्ज्ञा स्त्री० [१० हीन] क्षुद्रता । हीनता । लघुता । [को०] । खैरखाह । कल्याण मनानेवाला । हिनावदी--सचा सं० [फा०] १ मेंहदी लगाना । २ मुसलमानो मे हितैषी-सज्ञा पु० दोस्त । मित्र । सुहृद् । विवाह के समय की एक रस्म (को०] । हितोक्ति--सज्ञा स्त्री० [सं०] हित के वचन । भलाई का उपदेश। हिपोक्रिट-सञ्ज्ञा पुं० [अ०] १ कपटी । मक्कार । २ पाखडी। कल्याणकारी उपदेश । नेक सलाह । हिपोक्रिसी --मज्ञा स्त्री० [अ०] १ छल । कपट । फरेब । मक्कारी। हितोपदेश--H० पुं० [सं०] १ भलाई का उपदेश । नेक सलाह । २ २ पाखड। विष्णुशर्मा रचित सस्कृत का एक प्रसिद्ध ग्रथ जिसमे व्यवहार- हिप्नोटिज्म-सज्ञा पुं० [अ० हिप्नॉटिज्म] समोहन विद्या। नीति की शिक्षा को लिए हुए उपदेश और कहानियाँ ह । हिप्नोटिज्म के विशेपज्ञ अपनी मोहनविद्या के प्राशु प्रभाव के हितीनाg --क्रि० अ० [हिं० हितवना] दे० 'हिताना' लिये अपने पात्र की ऐसी ही अवस्था की प्रतीक्षा किया करते हित्त-सज्ञा पु० [स० हित] दे० 'हित' । उ०--देह निकट तेरे पडी, हे। सन्यासी, पृ० ५२ । जीव अमर है नित्त । दुइ मे मूवा कौन सा, का सूं तेरा हित्त ।- हिफाजत-सज्जा स्त्री० [अ० हिफाज़त] १ किसी की वस्तु को इस प्रकार सतवाणी०, पृ० १५७ । रखना कि वह नष्ट होने या बिगडने न पावे। रक्षा । जैसे,- हिवg-मज्ञा पु० [स० हित] दे॰ 'हितू' । उ०—पाहन ह्र इस चीज को हिफाजत से रखना। २ बचाव । देखरेख । खवर- गए, बिन भितियन के चित्र । जासो कियो मिताइया, सो धन दारी । सावधानी। जैसे,--वहां लडको की हिफाजत कौन भया न हिन ।-कवीर वी० (शिशु०), पृ० २१५ । हिदायत--सज्ञा स्त्री० [अ०] १ पथ प्रदर्शन । रास्ता दिखाना । २ क्रि० प्र०—करना ।—रखना। सीख । शिक्षा। ३ अधिकारी का आदेश । निर्देश । हुक्म । यौ०-हिफाजते खुदइख्तियारी = आत्मरक्षा। हिफाजते जानो- यौ०--हिदायतनामा = नियमो, निर्देशो की पुस्तक । माल = प्रात्मरक्षा और धन की रक्षा । जीवन और सपत्ति की हिदै--सज्ञा पुं० [सं० हृदय, प्रा० हिंदै] दे० 'हृदय' । उ०—तब कोपि के दुष्ट उछ्छग लीनौ। हिंदै फारि तत्काल सो डारि दीनौ । हिफाजती-वि० [अ० हिफाजती] जो रक्षा के लिये हो । जिससे सुरक्षा पृ० रा०, २ । १८८। हो । हिफाजत करनेवाला (को०] । हिद्दत-- [--सज्ञा स्त्री० [अ०] १ उग्रता । तीव्रता । तेजी। २ उण्णता। हिफ्ज-सज्ञा पु० [अ० हिफ्ज़] १ हिफाजत । रक्षा। २ गरमी । हरारत (को०) । ३ क्रोध । गुस्सा। या मुखाग्र होना । [को०] । हिनक्कना-क्रि० अ० [अनु॰] दे० 'हिनकना' । उ०--भिनकेति हिवा--सज्ञा पुं० [अ० हिबह, ] दे० 'हिव्वा' । पग हिनक्केति ताजी। मिल भूप भूप महावीर गाजी।- यौ०-हिवा कुनिंदा = दान करने या इनाम देनेवाला । पृ० रा०, ८१४१ हिबुक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] जन्मकुडली मे लग्न से चौथा स्थान या भवन । हिनकाना-क्रि० अ० [अनु॰ हिनहिन + करना] घोडे का वोलना। पाताल (को०] । हिनहिनाना। हिव्वा--मज्ञा पुं० [अ० हिब्बह,] १ दाना। २ दो जो की एक तौल । हिनती@---सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० हीनता] हीनता । तुच्छता । छोटापन । मुहा०-हिब्बा भर = जरा सा । थोडा। हिनवाना-पञ्चा पुं० [फा० हिंदुप्रानह, > हिंदुआना] दे० 'हिंदवाना'। ३ दान । उ०—फिर अपना सारा कारोबार उन्हें सौंपा और कुछ हिनहिनाना [-क्रि० अ० [अनु० हिन हिन] घोड का बोलना । हीसना । दिनो के उपरात यह गाँव उन्ही के नाम हिब्बा कर दिया।- हिनहिनाहट--सधा स्त्री॰ [हिं० हिनहिनाना] घोडे के हीसने की आवाज । मान०, भा०५,१.० २६४ । ४ पारितोपिक । पुरस्कार (को०)। घोडे की बोली। यौ०-हिवानामा। हिना -सज्ञा स्त्री० [अ०] मेहदी । उ०-उसके कदमो से लगी रहती हिब्वानामा-सञ्ज्ञा पु० [अ० हिव्वह + फा० नामह ] दानपत्र । है दिन रात हिना । खूब दुनिया मे वसर करती है औकात हिमचल--सञ्ज्ञा पुं० [सं० हिमाचल] दे० 'हिमाचल' । उ०—(क) हिना ।-० को०, भा० ४, पृ० ४२ । साथ सखी के नई दुलही को भयो हरि को हियो हेरि हिमत्तल ।- मतिराम ग्र०, पृ० २७७ । (ख) हिमचल राह सती अवतरिया। यौ०-हिना का चोर = हथेली का वह अश जहाँ मेहदी न लगी हो। गण दीन्ह नाम पारवती धरिया ।-कवीर सा०, प० ३३ । हिनावद = मेहदी लगानेवाला । हिमत-सज्ञा पु० [स० हेमन्त] दे० 'हेमत' । उ०--खुली न कठिन हिनाई-वि० [अ० हिना+आई (प्रत्य॰)] मेंहदी के रंग का । हिना समाधि ऋषि, चली हिमत सुहारि । सिसिर परस मन बरनि के रग का। करि, उठी सुकाम जुहारि।-ह. रासो, पृ० २२ । रक्षा। कठस्थ