पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२०४

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हिम्मती १५१६ हिरण्य हिम्मती--वि० [फा०] १ हिम्मतवाला । साहसी । दृढ । २ पराक्रमी। हियाव- सभा ० [हिं० हिय + प्राव (गाव. प्रत्य॰)] कोई य ठिन काम बहादुर । करने की मानगिक दृढता । साहम । हिम्मत । जीवट । उ०--- हिम्य-वि० [१०] १ वर्फीला । वर्फ से युक्त । २ ठढा । हिम से 'भोर जो मनमा मानगर लीन्ह कंतरस जाय । धुन जो हियान जमा हुअा या ग्रावृत (को०] । न के सका झूर पाठ तम नाय ।-जायमी (शब्द॰) । हिय-सशा पुं० [स० हृदय, प्रा० हिन] १ हृदय । मन । उ०--चले क्रि० प्र०- करना ।--होना । भाट, हिय हरप न थोरा |--तुलसी (शब्द॰) । २ छाती । मुहा०--हियाव एतना = (१) मानगि दृढता पाना । माग हो वक्षस्थल । दे० 'हिया'। श्राना । हिम्मत बंधना । (२) सकोन, हिना या भय न रहना। मुहा०-हिय हारना = हिम्मत छोडना । साहस न रखना। उ०- धडक गुनना । हियाव पटना - हिम्मत होना। साहम होना । तेहि कारन पावत हिय हारे । कामी काफ वलाक बेचारे। हिरगु-सपा पुं० [म० दिन] राहु ग्रह । ---तुलसी (शब्द०)। हिरवर-वि० [२०] निर्विकार । विकाररहिन । गुद । उ०- हियडा@t--सज्ञा पुं० [सं० हृत् या हृदय, प्रा० हिप, हिं० यि + डा जो हीरा घन महै घनेरा । होय हिरवर बहुरि न पेरा।- दरिया० बानी, पृ० ५। (प्रत्य॰)] दे० 'हियरा' । उ०-प्रीतम तोरइ कारणइ, ताता भात न खाहि । हियडा भीतर प्रिय वसइ, दाझरणती डरपाहि । हिरमर-सज्ञा पुं० [सं० हृअम्बर (= हृदयापाश) या देश॰] ढोला०, दू० १६० । हृदयम्पी अाकाश । विकाररहित हृदय । ३०-होग तो हमा पछी नकल मगर । मत्त नाम के जान ये भया हिरमर हियरा-सक्षा पुं० [हिं० हिय + रा(स्वार्थिक प्रत्य०)] १ हृदय । मन । धीर ।--सत० दरिया, पृ०८५। उ०--(क) अाँसु वरपि हियरे हरपि, सीता सुखद सुभाय । निरखि निरखि पिय मुद्रिकहिं वरनति है वह भाय ।- केशव हिर-स पुं० [4] नपडे ग्रादि को पट्टी या मेगना। (शब्द॰) । (ख) नैसुक हेरि हर्यो हियरा मनमोहन मेरो हिरकना पु-पि० प्र० [सं० हिरा( = समीप)] १ पार होना । निकट जाना । २ इतने ममोप हाना कि म्पर्श हो । सटना । अचानक ही।- (शब्द॰) । २ छाती । वक्षस्थल । उ०-- हियरा लगि भामिनि सोइ रही ।--लक्ष्मण ० (शब्द०)। भिडना । जैसे,-हिरप वर बैटना। ३ (बच्चो या पापो ग्रादि का) परचना । हियाँ -अव्य० [हिं० यहां, इहाँ] दे० 'यहाँ' । सयो० कि०-जाना। हिया--सशा पुं० [सं० हृदय, प्रा० हिस] १ हृदय । मन । उ०-- हिरकाना@-त्रि० स० [हिं० हिरकना ] १ पारा करना । नज- (क) अव धौं विनु प्रानप्रिया रहिहैं कहि कौन हितू अवलब दीफ ले जाना । २ इतने समीप ले जाना कि स्पर्श हो जाय । हिये ।--वे शव (शब्द॰) । (स) साथ सखी के नई दुलही को भयो हरि को हियो हेरि हिमचल । प्राय गए मतिराम तहाँ सटाना । भिडाना। ३ (पशुओ या वच्चो प्रादि को)परचाना । घरु जानि इकत अनद ते चचल । -मति० ग्र०, १० २७७ । २ सयो०क्रि०-देना। छाती। वक्षस्थल । उ० -(क) वनमाल हिये अरु विप्रलात। हिरगुनी-सया स्री० [हिं० हीरा+ गुन (= नूत)] एक प्रकार की -केशव (शब्द॰) । (ख) ह्यिा थार, कुच कचन लाडू ।- बढिया पपास जो सिंध मे होती है । जायसी। (शब्द०)। हिरण'-सशा पुं० [स.] १ सोना । म्यणं । २ शुक्र । वीर्य । ३ o---हिये का अधा = अजान । मुर्ख । हिये की फूटना = ज्ञान कोडी । कपदिका । मुहाव न रहना । अज्ञान रहना । बुद्धि न होना । हिया शीतल या ठढा हिरण:--सस, पुं० [सं• हरिण] दे० 'हिरन', 'हरिण' । होना = मन मे सुख शाति होना। मन तृप्त और प्रान दित होना। हिरणाखी-वि० [सं० हरिणाक्षी ] मृगनयनी । हरिरणाक्षी । उ०- हिया जलना = अत्यत क्रोध मे होना । उ०--क्रूर कुठार निहारि हिरगायी हसिनइ कहर, प दिसाउर एक ।--टोला०, तज फल ताकि यहै जो हियो जरई ।--केशव (शब्द॰) । हिये दू० २२१॥ लगना- गले से लगना । छाती से लगना। प्रालिंगन करना । हिरण्मय ---वि० [सं०] १ सुनहरा । स्वरिणम । २ सोने का बना उ०-क्यो हठि मान गहै सजनी उठि वेगि गोपाल हिये किन हुआ । स्वर्णनिर्मित । लाग?--शकर (शब्द० । हिये मे लोन सा लगना = बहुत हिरण्मय'--सझा पुं० १ हिरण्यगर्भ । ब्रह्मा । २ एक ऋषि का बुरा लगना । अत्यत अरुचिकर होना। उ०-सुनत रूखि भई नाम । ३ जबू द्वीप के नौ खडो या वर्षों मे से एक जो श्वेत और रानी, हिये लोन अस लाग।--जायसी (शब्द॰) । हिये पर शृगवान् पर्वतो के बीच कहा गया है। ४ भागवत के अनुसार पत्थर धरना= दे० 'कलेजे पर पत्थर धरना' । हिया फटना = उक्त खड या वर्ष का शासक, अग्नीध्र वा पुत्र । कलेजा फटना। अत्यत शोक या दुख होना। हिया भर आना = हिरण्मय कोश-सज्ञा पुं० [सं०] प्रात्मा के सात आवरणो मे से अतिम कलेजा भर पाना । शोक या दु ख का हृदय मे अत्यत वेग प्रावरण। होना । हिया भर लेना = दुख से लबी सांस लेना। विशेष ३० हिरण्य-सझा पुं० [सं०] १ सोना । स्वर्ण । २ वीर्य । शुत्र । ३ कौडी। मुहा० 'जी' और 'कलेजा। ४ एक मान या तौल । ५ धतूरा । ६ हिरण्मय नामक वर्ष