पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२०५

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हिरण्य ५५१७ या खड । ७ एक दैत्य । ८ नित्य वस्तु या तत्व । ६ ज्ञान । हिरण्यगर्भ-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह ज्योतिर्मय अड जिमसे ब्रह्मा और १० ज्योति । तेज । प्रकाश । ११ अमृत । १२ स्वर्णपात्र । सारी सष्टि की उत्पत्ति हुई । २ ब्रह्मा । उ०--सृष्टि की सोने का वर्तन ।(को०) १३ रजत । चाँदी (को०) । १४ कोई समस्या के सुलझाव के लिये स्वभावत एक स्रष्टा की कल्पना मूल्यवान् धातु (को०)। १५ भावप्रकाश के अनुसार एक प्रकार हुई और उसे पुरुष, विश्वकर्मा, हिरण्यगर्भ और प्रजापति को का गुग्गुल (को०) । १६. मरुत् । १७ धन । सपत्ति (को॰) । सज्ञाएँ दी गई ।--सत० दरिया (भू०), पृ० ५४ । १८ अग्नीध्र का एक पुत्र (को॰) । विशेप-ब्रह्मा ने जल या समुद्र की सृष्टि करके उसमे अपना वीप हिरण्य-वि० हिरण्यनिर्मित । स्वर्णनिर्मित । डाला, जिससे एक अत्यत देदीप्यमान ज्योतिर्मय या स्वर्णमय प्रक हिरण्यकठ--वि० [म० हिरण्यकण्ठ] जिसका कठ स्वर्णिम हो [को॰] । की उत्पत्ति हुई । यह अड सूर्य से भी अधिक प्रकाशमान् था । हिरण्यक-सझा ० [सं०] स्वर्ण की आकाक्षा या मनोरथ [को०] । इसी अड से सृष्टिनिर्माता ब्रह्मा प्रकट हुए जो ब्रह्म के व्यक्त या सगुण रूप हुए। वेदात को व्याख्या के अनुसार ब्रह्म की हिरण्यकक्ष वि० [१०] सोने को मेखला पहननेवाला । जो सोने का शक्ति या प्रकृति पहले रजोगुण की प्रवृत्ति से दो रूपो मे विभ- कमरवद पहने हुए हो (को] । क्त होती है-सत्वप्रधान और तम प्रधान । सत्वप्रधान के भी हिरण्यकर्ता-सञ्ज्ञा पुं० [सं० हिरण्यकर्तृ] स्वर्णकार । सुनार (को०) । दो रूप हो जाते है--शुद्ध मत्व (जिसमे सत्वगुण पूर्ण होता है) हिरण्यकवच' - सज्ञा पुं॰ [स०] शिव का एक नाम । और अशुद्ध सत्व ( जिसमे सत्व अशत रहता है) । प्रकृति के हिरण्यकवच'--वि० स्वणनिर्मित कवचवाला 'को०] । इन्ही भेदो मे प्रतिबिंबित होने के कारण ब्रह्म कभी ईश्वर या --हिरण्यकशिपु 1-वि० [स०] सोने के तकिए या गद्दीवाला । हिरण्यगर्भ और कमो जीव कहलाता है । जब शक्ति याप्रकृति के हिरण्यकशिपु: --पडा पु० एक प्रसिद्ध विष्णु विरोधी दैत्य राजा का तोन गुणो मे से शुद्ध सत्व का उत्कर्ष होता है तब उसे 'माया' कहते है, और उस माया मे प्रतिविवित होनवाले ब्रह्म को सगुप नाम जो प्रह्लाद का पिता था । या व्यक्त ईश्वर, हिरण्यगर्भ प्रादि कहते है । अशुद्ध सत्व को विशेष-यह कश्यप और दिति का पुत्र था और भगवान् का वडा प्रधानता को 'अविद्या' सत्व कहते है और उसमे प्रतिबिंबित होने- भारी विरोधी था । इसे ब्रह्मा से यह वर मिला था कि वाले ब्रह्म को जीव या प्राज्ञ कहते हैं । मनुष्य, देवता और किसी प्राणी से तुम्हारा वध नहीं हो ३ सूक्ष्म शरीर से युक्त आत्मा । ४ एक मत्रकार ऋषि । ५ एक सकता। इससे यह अत्यत प्रबल और,अजेय हो गया । शिवलिंग । ६ विष्णु । ७. पोडश महादान के अतर्गत द्वितीय जब इसने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान् की भक्ति करने के कारण बहुत सताया और एक दिन उसे खभे से वाँध और हिरण्यगर्भ'--'वि० ब्रह्मा से सवद्ध । ब्रह्मा सबधी (को०] । महादान (को॰) । तलवार खीचकर वार वार कहने लगा कि 'बता । अव तेरा भग- वान् कहाँ है ? आकर तुझे वचावे । तब भगवान् नृसिंह (प्राधा हिरण्यगर्भा--नचा 'ग्ली० [४०] एक नदो का नाम (फो०] । सिंह और आधा मनुष्य) का रूप धारण करके खभा फाडकर हिरण्यद'--पञ्चा पुं० [स०] समुद्र (को॰] । प्रकट हुए और उसे फाड डाला । भगवान् का चौथा नृसिंह हिरण्यद'- वि० सोना देनवाना । स्वर्णदान करनेवाला (को०] । अवतार इसी दैत्य को मारने के लिये हुआ था। हिरण्यदा-नशा जी० [सं०] १ पृथ्यो। २ एक नदो का नाम (को०] । हिरण्यकश्यप-सञ्चा पु० [स० हिरण्यकशिपु] दे० 'हिरण्यकशिपु' । हिरण्यनाभ-मञ्ज्ञा पुं० [४०] १ विष्णु । २ मनाक पर्वत । ३ हिरण्यकामधेनु--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] दान देने के निमित्त बनी हुई सोने बृहत्सहिता क अनुसार वह मकान जिसमे तान बडी शालाएँ की कामधेनु गाय । (कमरे) पूर्व,पश्चिम और उत्तर की ओर हो और दक्षिण की विशेष-स्वर्णनिर्मित ऐसी गाय का दान १६ महादानो मे है । पार कोई शाला न हो। हिरण्यकार-सञ्ज्ञा पु० [स०] स्वर्णकार । सुनार । हिरण्यपर्वत-सज्ञा पुं० [स०] सुमेरु पर्वत (को॰] । हिरण्यकृत्---सञ्ज्ञा पु० [स०] अग्नि [को० । हिरण्यपुर-सञ्ज्ञा पु० [३०] हरिवश मे वरिणत असुरो का एक नगर जो हिरण्यकृतचूड-सज्ञा पुं० [स०] शिव का एक नाम [को०] । समुद्र के पार वायुमडल मे स्थित कहा गया है । हिरण्यकेश-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ विष्णु का एक नाम । २ वह जिसके हिरण्यपुरुष-सञ्चा ५० [४०] स्वणनिर्मित पुरुष की प्रतिमा या केश सुनहले वर्ण के हो। मूर्ति [को॰] । हिरण्यकेशी-सज्ञा पुं० [सं० हिरण्यकेशिन्] १ एक गृह्यसूत्रकार हिरण्यपुष्पी-पचा स्त्री॰ [सं०] एक प्रकार पौधा । ऋषि का नाम । २ उक्त नाम का एक गृह्यसूत्र ।-हिंदु० हिरण्यवाहु-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ शिव का एक नाम । २ सोन नव। सभ्यता, पृ० १४४ । ३ एक नाग का नाम । हिरण्यकोश-सज्ञा पुं० [०] तपाया हुप्रा सोना अथवा चाँदी [को०] । हिरण्यविंदु--सज्ञा पुं० [सं० हिरण्यविन्दु] १ अग्नि । आग । २ एक हिरण्यखादि-वि० [सं०] स्वर्णनिर्मित । पर्वत । ३ एक तीर्थ ।