पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२२७

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राम सुकृतज्ञ -क्रि० अ० वर्तमानकालिक क्रिया है का उत्तम पुरुष, एकवचन हूस--सज्ञा सी० [स० हिंस] १ दूसरे की वढती देखकर जलना । हुस्यार हूक हुस्यार-वि० [फा० हुशयार] दे० 'होशियार'। उ०-~-नहिं काहू कयर कॅटाला रुख । प्राके फोगे छांहडी हूँछां भांजइ झूख । का पतियारा । मृग निशदिन रहै हुस्यारा ।-सु दर० ग्र०, --ढोला०, दू० ३६१ । भा० १, पृ० १४१ । हूँवृत्ति -सज्ञा क्षी[ स० उञ्छवृत्ति] खेत मे गिरे हुए दानो को हुस्यारपन--सला पुं० [फा०हुशयार + हिं० पन] होशियार होना । वीनकर जीवन निर्वाह करने का काम । उ०-हूँछ वृत्ति होशियारी । बुद्धिमत्ता । चातुर्य । चालाकी । उ०—ायो सुनि मन मानि सम दृष्टी इच्छा रहित । करत तपस्वी ध्यान कधा कान्ह भूल्यो सकल हुस्यारपन, स्यारपन कस को न कहतु को आसन किए ।-वज० ग्र०, पृ० २३ । सिरातु है। -भिखारी० ग्र०, भा॰ २, पृ० ३३ । 5-वि० [स० अर्द्धचतुर्थ, प्रा० अधुठ्ठ (स० 'अध्युष्ठ कल्पित जान पडता है) ] साढे तीन । हुहव-सज्ञा पुं० [सं० ] एक नरक का नाम । हूँठा'---सझा पुं० [हिं० हूँठ] १ साढे तीन का पहाडा । २ साढे तीन हुहु-सज्ञा पुं० [ स०] एक गधर्व का नाम । हूहू। उ०--वीस हिसो नर आयु वखानी। हूंठा हाथ देहो परमानी । हुहू--सज्ञा पुं॰ [सं०] एक गधर्व (को०] । -कवीर, सा०, पृ० २९२ । हू-अव्य० [सं० हूम् ] क्रोध या वर्जन बोधक अव्यय [को॰] । हूँठा+२-सज्ञा पु० [स० अगुष्ठ] दे० 'अंगूठा' । हूकार--सञ्ज्ञा पुं० [ स० हूकार ] दे० 'हुकार'। -सज्ञा स्त्री० [हिं० होड ] खेतो की सिंचाई मे किसानो की एक हूँ'-अव्य० [अनु०] १. किसी प्रश्न के उत्तर मे स्वीकारसूचक दूसरे को सहायता देने की रीति । शब्द । २ समर्थनसूचक शब्द । ३ एक शब्द जिसके द्वारा हूँण -अव्य० [१०] अव। इस समय । दे० 'हुण' । उ०- सुननेवाला यह सूचित करता है कि मैं कही जाती हुई वात या हूँण तिसनौ कोई क्यो करि पावै जिसदै रूप न रेष ।- प्रसग ध्यान से सुन रहा हूँ। दे० 'हू' । सुदर० ग्र०, भा० १, पृ० २७५ । हूँ'-प्रव्य ० [सं० उप, प्रा. उव, हिं० ऊ ] दे० 'हू' । उ०-- (क) हूँता--वि० [सं० पाहूत ] बुलाया हुआ । पाहूत । उ०—अत को माँ ने मुझे सोई जान फिर हूँत न कराया।-श्यामा०, पृ०७१ । ज्यो सव भाँति कुदेव कुठाकुर सेए वपु बचन हिये हूँ। त्यों न हूँमा-सना सी० [फा० हुमा] एक पक्षी । दे० 'हुमा' । उ०—केवल जे सकुचत सकृत प्रनाम किये हूँ ।-तुलसी ग्र०, हूँमा की हुँकारी की झाँई पर्वत के कदरो मे बोलती है। पृ० ५४४ । (ख) स्याम बलराम बिनु दूसरे देव को, स्वप्न हूँ ---श्यामा०, पृ० ७६ । माहिँ नहिं हृदय ल्याऊँ ।-सूर०, १।१६७ । ईर्ष्या। डाह । २ दूसरे की कोई वस्तु देख कर उसे पाने के का रूप । जैसे-'मैं हूँ। लिये दुखी रहना । आँख गडाना,। ३ बुरी नजर । टोक । हूँ-सर्व० [ स० अहम् ] अस्मद शब्द का उत्तम पुरुष एकवचन जैसे,-बच्चे को हूँस लगी है । सर्वनाम । मैं। अहम् । उ०--(क) हूँ कुंमलाणी कत क्रि० प्र०-लगना। विण जलह वि₹णी वेल ।-ढोला०, दू० १६३ । (ख) हूँ ४ बुरा भला कहते रहने की क्रिया । कोसना । फटकार । बलिहारी मज्जणा सज्जण मो वलिहार । हूँ सज्जण पगपानही जैसे,-दिन रात तुम्हारी हूँस कौन सहा करे ? सज्जण मो गलहार ।--ढोला० दू०, १७६ । हूँस'--सज्ञा स्त्री० [ अ० हवस ] चाह । उ०-कल कदमूं के लगर हूँकना- क्रि० अ० [अनु० ] १ गाय का बछडे की याद मे या भारी कनक की हूँस।-रघु० रू०, पृ० २४० । और कोई दुख सूचित करने के लिये धीरे धीरे वोलना । हूँसना'--त्रि० स० [हिं० हूँस ] नजर लगाना । हुँड कना । उ०--ऊधो । इतनी कहियो जाय । अति कृशगात हूँसना'-क्रि० अ० १ ईर्ष्या से जलना । २ किसी वस्तु पर आँख भई है तुम बिनु बहुत दुखारी गाय । जल समूह वरसत गडाना । ललचाना । ४ भला बुरा कहना। कोसना । ५ अंखियन तेहूँकति लीन्हे नावं । जहाँ जहाँ गो दोहन करते रह रहकर चिढना। ढूंढति सोइ सोइ ठावें ।--सूर (शब्द॰) । २ हुकार शब्द ह--अव्य० [वैदिक स० उप ( = आगे, और), प्रा० उव, हिं० करना । वीरो का ललकारना या दपटना। ३ सिसक कर ऊ] एक अतिरेकबोधक शब्द । उ०--(क) काल हू के काल रोना । कोई बात याद करके रोना । महाभूतन के महाभूत, कर्म हू के करम निदान के निदान है। हूँ@--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० अहम् ] अहभाव । अहता । निजत्व का --तुलसी ग्र०, पृ० २२६ । (ख) तुम हू कान्ह मनो भए अभिमान। उ०--दादू हूँ की ठाहर है कही, तन की ठाहर तू । आजु कालि के दानि ।--बिहारी (शब्द॰) । री को ठाहर जी कही, ज्ञान गुरु का यौ।--दादू०, पृ० १८ । हू-सज्ञा पुं० गीदड के बोलने का शब्द । हूँछ @-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० उञ्छ ] सीला वीनना । दे० 'उछ' । यौ०-हूध्वनि, हू शब्द = हू, हू बोलनेवाला गीदड । स्यार । हूरव । --- सज्ञा स्रो० [ देश० ) राजस्थान मे होनेवाली भुरट नाम की हूक--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० हिक्का ] १ हृदय की पीडा । छाती या कलेजे एक कँटीली घास का बीज । उ० - रि. का दर्द जो रह रहकर उटता है। साल । हिं० श० ११-२७ हूँछा- 1 पर