पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२२८

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हूकना ५५४० क्रि० प्र०-उठना ।-मारना। २ दद । पीडा। कमक । उ०--हिए हूक भरि नैन जल विरह अनल अनि हूम |--माधवान न०, पृ० २०४ । ३ मानसिक वेदना। सताप । दुख । उ०-व्याप पिया यह जानि परी मनमोहन मीत सौ मान किये ते । भूलिहूं चूक पर जो कहूँ तिहि चूक की हूक न जाति हिये ते। -पद्माकर ग्र०, पृ० ११८ । ४ धडक । याशका । खटका। हूकना-कि० अ० [हिं० हूक+ना (प्रत्य॰)] १ सालना। दुखना । दर्द करना। कसकना । २ पीडा से चौक उठना। उ०- -(क) कुच तूंबी अव पीठि गडोऊँ। गहै जो हूकि गाढ रस धोऊँ।- जायसी (शब्द॰) । (ख) त्यो पद्माकर पेखो पलासन, पावक सी मनौ फूंकन लागी। वै ब्रजवारी बेचारी वधू बन वावरी ली हिये हकन लागी ।--पद्माकर (शब्द०)। हूकाल+--सज्ञा पुं० [अ० हुक्कह] दे० 'हुक्का' । उ०-गादी कूटि दावी बैठ का भी भराया ।--शिखर०, पृ० ६० । हूचक--सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] युद्ध । (डि०) । हूटनाg+-क्रि० प्र० [म० हूड् ( = चलना)] १ हटना । टलना। उ०-हथियारनि सूट नेकु न हूटै खलदल कूट', लपटि लरै। --पद्माकर ग्र०, पृ० २७ । २ मुडना । पीठ फेरना । उ०-- जुत्यन सों जूटै नेकु न हूट, फिरि फिरि छूट फेरि लरें।- पद्माकर ग्र०, पृ० २६ । हूठा-सज्ञा पुं० [हिं० अँगूठा] १ किसी को चाही वस्तु न देकर उसे चिढाने के लिये अँगूठा दिखाने की अशिष्ट मुद्रा । ठेंगा । उ०- प्यारे प्रीत वढाय लिया चित चोरि के । हूठ्यौ दै इठलाय चल्या मुख मोर के।--घनानद, पृ० १७५। २ अशिप्टो या गॅवारो की बातचीत या विवाद मे ऐंठ दिखाते हुए हाथ मटकाने की मुद्रा । भद्दी या गॅवार चेप्टा। मुहा०-हूठा देना = ठेगा दिखाना । अशिष्टता से हाथ मटकाना। भद्दी चेष्टा करना। उ०--(क) नागरि विविध विलास तजि वती गवैलिन माहिं । मूढनि मे गनिबी किती हूठौ दै अठिलाहिं । -विहारी (शब्द०)। (ख) गदराने तन गोरटी, ऐपन प्राड लिलार। हठयो दै अठिलाय दृग, करै वारि सु मार । --बिहारी (शब्द०)। हूड-वि० [स० हूण (एक जाति)] १ हड। उजड्ड । अनपढ । २ असा- वधान । बेखवर । ध्यान न रखनेवाला। ३ गावदी। अनाडी। ४ हठी । जिद्दी। हूडा--सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का वास जो पच्छिमी घाट (मलय पर्वत) के पहाडो से लेकर कन्याकुमारी तक होता है । हृढ-वि० [स० हुण्ड ( = ग्राम्य शूकर, मूर्ख राक्षस), प्रा० हुड ( = वेढव अगवाला), देश०, हुड्ड ( = भेडा)] दे० 'हूड' । ७०--राम नाम की छाडि के और भज ते मूढ । सुदर दुख पावै सदा जन्म जन्म वै हूढ ।--सुदर० प्र०, भा॰ २, पृ० ६७७ । हूण-सझा पुं० [देश॰ या सं०] एक प्राचीन मगोल जाति जो पहले चीन की पूरवी सीमा पर लूट मार किया करती थी, पर पीछे अत्यत प्रवल होकर एशिया और योरप के सभ्य देशो पर आक्रमण करती हुई फैली। विशेष-हूणो का इतना भारी दल चलता था कि उस समय के बडे बडे सभ्य साम्राज्य उनका अवरोध नही कर सकते थे। चीन की ओर से हटाए गए हूण लोग तुर्किस्तान पर अधिकार करके सन् ४०० ई० से पहले वक्षु नद -(अावसस नदी) के किनारे या बसे । यहाँ से उनकी एक शाखा ने तो योरप के रोम साम्राज्य की जड हिलाई और शेप पारस साम्राज्य में घुसकर लूटपाट करने लगे । पारसवाले इन्हे 'हेताल' कहते थे । कालिदास के समय मे हूण वक्षु के ही विनारे तक आए थे, भारतवर्ष के भीतर नही घुसे थे, क्योकि रघु के दिग्विजय के वर्णन मे कालिदास ने हूणो का उल्लेख वही पर किया है। कुछ अाधुनिक प्रतियो मे 'वक्षु' के स्थान पर 'सिंधु' पाठ कर दिया गया है, पर वह ठीक नही। प्राचीन मिली हुई रघुवश की प्रतियो मे 'वक्षु' ही पाठ पाया जाता है । वक्षु नद के किनारे से जब हूण लोग फारस मे बहुत उपद्रव करने लगे, तब फारस के प्रसिद्ध बादशाह बहराम गोर ने सन् ४२५ ई० मे उन्हें पूर्ण रूप से परास्त करके वक्षु नद के उस पार भगा दिया। पर बहराम गोर के पौत्र फीरोज के समय मे हूणो का प्रभाव फारस मे वढा । वे धीरे धीरे फारसी सभ्यता ग्रहण कर चुके थे और अपने नाम आदि फारसी ढग के रखने लगे थे। फीरोज को हरानेवाले हूण बादशाह का नाम खुशनेवाज था। जव फारस मे हूण साम्राज्य स्थापित न हो सका, तब हूणो ने भारतवर्ष की ओर रुख किया। पहले उन्होने सीमात प्रदेश कपिशा और गाधार पर अधिकार किया, फिर मध्यदेश की ओर चढाई पर चढाई करने लगे। गुप्त सम्राट् कुमारगुप्त इन्ही चढाइयो मे मारा गया । इन चढाइयो से तत्कालीन गुप्त साम्राज्य निर्बल पड़ने लगा । कुमारगुप्त के पुत्र महाराज स्कदगुप्त बडी योग्यता और वीरता से जीवन भर हूणो से लडते रहे । सन् ४५७ ई० तक अतर्वेद, मगध आदि पर स्कदगुप्त का अधिकार वरावर पाया जाता है। सन् ४६५ के उपरात हूण प्रबल पडने लगे और अत मे स्कदगुप्त हूणो के साथ युद्ध करने में मारे गए । सन् ४६६ ई० मे हूणो के प्रतापी राजा तुरमान शाह (सं० तोरमाण) ने गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर पूर्ण अधिकार कर लिया। इस प्रकार गाधार, काश्मीर, पजाब, राजपूताना, मालवा और काठियावाड उसके शासन मे पाए। तुरमान शाह या तोरमाण का पुत्र मिहिरगुल (सं० मिहिरवुल) बडा ही अत्याचारी और निर्दय हुआ। पहले वह बौद्ध था, पर पीछे कट्टर शैव हुआ । गुप्तवशीय नरसिंहगुप्त और मालव के राजा यशोधर्मन् से उसन सन् ५३२ ई० मे गहरो हार खाई और अपना इधर का सारा राज्य छोडकर वह काश्मीर भाग गया। हूणो मे ये ही दो सम्राट् उल्लेख योग्य हुए । कहने की आवश्यकता नही कि हूण लोग कुछ और प्राचीन जातियो के समान धीरे धीरे भारतीय सभ्यता मे मिल गए। राजपूतो मे एक शाखा हूण भी है। कुछ लोग अनुमान करते है कि राजपूताने और गुजरात के कुनबी भी हूणो के वशज है।