पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२३८

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FO / हेतुव्यत्यय ५५५० हैमकर हेतुव्यत्यय-सज्ञा पु० [ स० ] कारण उलट देना । हेतु का परिवर्तन । से शब्द को अनित्य भी सिद्ध करता है। (२) जो हेतु उ०--क्सिी उक्ति के कारण को वदल देना हेतुव्यत्यय हे । प्रतिज्ञा के ही विरुद्ध पड़े वह 'विरुद्ध' कहलाता ह । जैसे,-- -~मपूर्णानद अभि० ग्र०, पृ० २६३ । घट उत्पत्ति धर्मवाला है, क्योकि वह नित्य है। (३) जिम हेतु हेतुशास्त्र -सन्ना पु० [स० ] तर्कशास्त्र। हतुविद्या । मे जिज्ञास्य विपय (प्रश्न) ज्यो का त्यो बना रहता है, वह हेतुशून्य-वि० [ स०] अकारण । जो कारण या हेतु से रहित हो । 'प्रकरणसम' कहलाता है। जैसे,- शन्द अनित्य है, उसमे अहतुक । नित्यता नहीं है। (४) जिस हेतु को साध्य के नमान ही सिद्ध करने की आवश्यकता हो, उसे 'साध्यमम' कहते हैं । हेतुहानि --मता स्त्री० [ स०] वह जिसमे या जिसका तर्क न दिया जैसे,-- छाया द्रव्य है क्योकि उसमे गति है। यहा छाया मे जाय । हेतु के कारण का न दिया जाना । म्वत गति है, इसे साबित करने की आवश्यकता है। (५) यदि हेतुहिल--सज्ञा पुं० [ ] एक बहुत बडी सय्या। (बौद्ध)। हेतु ऐमा दिया जाय जो कालक्रम के विचार से माध्ध पर हेतुहेतुमद्भाव--सज्ञा पुं० [ स० ] कार्य-कारण-भाव । कारण और न घटे, तो वह 'कालातीत' कहलाता है। जैम,-शब्द नित्य कार्य का सबध । है, क्योकि उसकी अभिव्यक्ति सयोग से-होती है। जैसे,- हे तुहेतुमद्भूतकाल- सज्ञा पुं० [ स०] व्याकरण मे क्रिया के भूतकाल घट के रूप की। यहाँ घट का स्प दीपक के सयोग के का वह भेद जिसमे ऐसी दो बातो का होना सूचित होता है पहले भी था, पर ढोल का शब्द लनडी के सयोग के पहले जिनमे दूसरी पहली पर निर्भर होती है। जैसे,--यदि तुम नही था। मुझमे माँगते तो मै अवश्य देता। हेना--मज्ञा पुं० [अ० हिना] मेहँदी । मेधिका । हिनका [को०] हेतूत्प्रेक्षा--संज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] अर्थालकार मे उत्प्रेक्षा का एक भेद हेमत--सञ्ज्ञा पु० [स० हेमन्त] छह ऋतुओ मे से पाचवी ऋतु जिसमे जिसमे जिस वस्तु का जो हेतु नहीं है उमको उस वस्तु का अगहन और पूस के महीने पडते है । जाडे का मौमिम । हेतु मानकर उत्प्रेक्षा करते है । विशेप दे० 'उत्प्रेक्षा'-२ । शीतकाल। हेतूपक्षेप-सञ्चा पु० [ स० ] कारण को उपस्थित करना । तर्क हेमतकाल--मज्ञा पु० [स० हेमन्तकाल] हेमत ऋतु । जाडे का मौसिम । प्रस्तुत करना (को०] । हेमतनाथ-सज्ञा पुं॰ [स० हेमन्तनाथ ] कपित्य । कथ । हेतूपन्यास--सहा पुं० [ सं० ] दे० 'हेतूपक्षेप' [को०) । हेमतमेघ-सञ्ज्ञा पुं० [स० हेमन्तमेघ] हेमत ऋतु के मेघ । जाडे का हेतूपमा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] वह उपमा जो तक या हेतु से युक्त हो । वादल (को०] । विशेप दे० 'उत्प्रेक्षा-२'। हेमतसमय--सज्ञा पुं॰ [स० हेमन्तसमय] हेमत ऋतु । शीतकाल । हेत्वपदेश-सज्ञा पु० [ स० ] न्याय मे हेतु का अपदेश या निर्देश हेम--सज्ञा पुं॰ [सं० हेमन्] १ हिम। पाला । वर्फ । उ०--ऊधो अव यह करना । तर्क मे हेतु का उल्लेख करना [को०] । समुझि भई | नंदनदन के अग अग प्रति उपमा न्याय दई। हेत्वपह्न ति--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] वह अपह्नति प्रलकार जिममे प्रकृति के श्रानन इदु बरन नमुख तजि करपे ते न नई । निरमोही नहि नेह, निषेध का कुछ कारण भी दिया जाय । विशेप दे० 'अपह्न ति' । कुमुदिनी प्रतहि हेम हई ।--सूर (शब्द॰) । २ स्वर्णखट । हेत्ववधारण-सझा पु० [ स० ] हेतु का अवधारण करना या तर्क सोने का टुकडा। ३ सोना । सुवर्ण । स्वर्ण । कारण (नाटक)। कथ । ५ नागकेसर । ६ एक मासे की तौल। ७ वादामी रग का घोडा। हेत्वाक्षेप-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० ] काव्यगत एक अलकार। वह आक्षेप ८ जल । पानी। सलिल [को०] । ६ बुध ग्रह जो कारण या हेतु के साथ किया जाय । का एक नाम। हेत्वाभास-सज्ञा पुं० [ ] न्याय मे किसी बात को सिद्ध करने हेम-पंज्ञा पुं० [सं० हेमन् ( हिम = वफ)] दे० 'हिमालय' । के लिये उपस्थित किया हुआ वह कारण जो कारण सा प्रतीत ७०--हेम सेत औ गौर गाजन वश तिलग सब लेन । सातौ होता हुआ भी ठीक कारण न हो। असत्हेतु । दीप नवौ खंड जुरे प्राइ एक खेत । -पदमावत, पृ० ५२४ । जव जग हेत्वाभास मात्र है, तब फिर मेरा सपना। क्यो न रहे हेमकदल-सज्ञा पुं॰ [सं० हेमकन्दल ] मूंगा । मेरे जीवन मे होकर मेरा अपना । -अपलक, पृ० ३६ । हेमक-सज्ञा पुं० [स०] १ हिरण्य । २ सोने का टुकडा । हेमखड । विशेप--सव्यभिचार, विरुद्ध, प्रकरणसम, साध्यसम और काला ३ इस नाम का एक राक्षस । ४ एक वन का नाम [को॰] । तीत भेद से हेत्वा भास पाँच प्रकार का कहा गया है--(१) जो हेतु और दूसरी बात भी उसी प्रकार सिद्ध करे अर्थात् हेमकक्ष 1-सञ्ज्ञा पुं० [ मं० ] स्वर्ण निर्मित मेखला । ऐकातिक न हो, वह 'सव्यभिचार' कहलाता है। जैसे,--शब्द हमकक्ष-वि० जिसकी भित्ति स्वणिम या स्वर्णयुक्त हो [को॰] । नित्य है क्योकि वह अमूर्त है, जैसे,—परमाणु । यहाँ अमूर्त हेमकर'-सज्ञा पुं० [ स० ] शिव । होना जो भेद दिया गया है, वह बुद्धि का उदाहरण लेने हेमकर-सबा पुं० स्वर्णकार (फो०] । कपित्थ। SO