पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२४०

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नाम । हेमदुग्धी हेमव्याकरण हेमदुग्धी २-सज्ञा स्त्री० स्वर्णक्षीरी [को०] । हेममाक्षिक--शा पु० [40] एक गनिज द्रव्य । मोनामाग्यो । ग्वण- हेमधन्वा -सशा पुं० [सं० हेमधन्वन् ] ११ वे मनु के एक पुत्र का माक्षिा, जिगरा प्रयाग प्रापधि में भी होता है । मे पधातु माना गया ह(10) हेमधान्य-सज्ञा पुं० [सं०] तिल (को०) । हेममालिका--!! [म.] गोन की माना। गोपिनी [40] । हेमधान्यक-सज्ञा पुं० [सं०] एक तोल जो डेढ माशे के बरा- हेममाला' -- समा यु० [सं० इममानिन्) १ गय । २ एम गारग जो गरगा गजापति था। वर होती थी [को०] । जो धारण हेमधारण- सधा पुं० [सं०] पाठ पल ये वगवर सोने की एक हेगमानी --१० १ जो ग्यभूषण में गाना। तौल (को०] । frए हुए हा । माती माता पांगाना (१०) । हेमनाभि-सझा पुं० [सं०] १ सोने की नाभि, पिरिका या मध्यवर्ती हेममुद्रा---गा पी० [म.] गोगिया [०) । भाग । २ वह जिमफा मध्यवर्ती भाग, नाभि या पिडिगा हममृग--70 to {{०] गान रा मृग। मान या रग्गि । यसमग । सोने की हो यो०] 1 विणेप-यामीति गमावण मी मी प्रमग म मिलता है। यह मावामृग गरा गया। जामारीन गया हेमनेत्र-समा पुं० [सं०] एक यक्ष का नाम फिो०) । गक्षा था। हेमपर्वत-सज्ञा ५० [म०] १ सुमेरु पयत जो सोने का माना जाता हेमयूयिका---पमा पी० [.] मधिरा । मोनरी । है । २ दान के लिये मोने की राशि । हेमरागिणी, हेमरागिनी--Tri० [40] हरिदा। हती। विशेप--यह महादानो मे है । हेमरेण-समा ५० [40] गण। हेमपुष्प-सम्रा पुं० [सं०] १ सोनजुही । २ गुटहर । ३ अशोक मा हेमलव-या पु० [40 मिन्ययसम्पनि ने माठ गमागे में मे ३१यो वृक्ष (को०] । ४ लोध्र का वृक्ष (फो०)। ५ चपा का वृक्ष या गयत्मर। उलम्पति यी गति में च मे नप्तम (पित) पुष्प । उ०-चपक चपक सुरभि पुनि हेमपुप्प सुनुमार |--प्रो. युग का प्रथम वप रेमच।--यहन्त, १०५२। कार्थ ०, पृ० ३१ । ६ अशोक पुष्प (फो०)। ७ नागकेसर (फो०)। हेमलवका--गरा पु० [सं० हमाम्म] २० 'दमन'। हेमपुष्पक-सज्ञा पुं० [सं०] १ चपा का वृक्ष या पुप्प । लोध्र का वृक्ष । हेमल-सरा पुं० [40] १ गणार । मोगार । २ सपपट्टिा । दे० 'हेमपुप्प' (को०)। कमाटी। ३ पलाम । गिरगिट । र गहनोधिा।हिनी। हेमपुष्पिका-मशा स्त्री० [सं०] सोनजही । स्वर्णयूथिका [को०)। हेमनता--रया झी० [सं०] मोने के वरणं गोन्नता । वरांजोरती (०) । हेमपुष्पी--सशा ती० [सं०] १ मजिष्ठा । मजीठ। २ मूगलीकद । ३ हेमवत 2-सया ० [सं० हेमात या हेम+ यन्न< पत्] दे० 'हमत' । कटकारी। ४ स्वर्णयूथिका । पीली जूही (फो०)। ५ म्वर्ण- उ.-समिर बाल तप करहि पमा दम्य गु बदन पुप्पा । स्वर्णली (को०)। ६ इद्रवारुणी । इद्रायण (को०)। अलि । हेमवन या दगि दलिझ जा रण गुप्प मिनि ।-१० हेमपृष्ठ-वि० [स०] जो स्वर्ण मे मडित या रजित हो । गोने या मुल रा०, २।३०७ म्मा किया हुआ (को०)। हेमवती--वि० [४० हेमात्] हेमाभ । परिणम । सुाला । उ०- हेमप्रतिभ-वि० [सं०] स्वरणदीप्त । हेमप्रभ । ग्रालोमयी मित चेतनता पाई गह हेमवती छाया । तदा हेमप्रतिमा-सचा मो[१०] सोने की प्रतिमा या मूर्ति । स्वप्न तिरोहित थे विखरी पेवल उजली माया ।-गामायनी, हेमप्रभ-वि० [स०] जिसकी काति या प्रमा सोने की तरह दीप्त हो । पृ०१६६। हेमफरद -सञ्ज्ञा पुं० [सं० हेम + फा० फर्द] स्वर्णिम चादर अयया हेमवत्-वि० [२०] त्वम । स्वणिम । सोने की तरह कातियुक्त (फो०)। स्वर्णिम कागज का एक टुकडा । उ०-कहं पदमाकर त्यो किधी हेमवर्ण'- मशा ० [#०] १ एक बुद्ध । २ गरट के एक पुत्र का काम कारीगर नुकता दियो है हेमफरद सुहाई में पद्माकर नाम (को० । ग्र०, पृ० ३१३ । हेमवर्ण-वि० सोने से सदृश रगवाला । म्वर्णाभ । त्यरिणम [२० । हेमफला-सला सी० [सं०] एक प्रकार का केला। स्वणकदली। हेमवल-सपा पुं० [सं०] मोती। मुक्ता । हेमवल-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'हेमवल' (फो०] । विशेप-इस प्रथ में हिमयल' शब्द मधिक उपयुक्त है पर राज- हेमभस्त्रा--सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] सोने की भस्ना अर्थात् थैली (को०)। निघटु आदि मे 'हेमवल' या 'हेमवल' ही मान्य है। हेममय--वि० [H०] सुनहरा। हेमव्याकरण-समा पु० [सं०] हेमचद्र द्वारा निर्मित व्याकरण का प्रथ। हेममाला--सबा श्री० [०] यम की पत्नी का नाम । विशेष दे० 'हेमचद्र'। 1