पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/२५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

होस ५५६६ हीरा होसg+--सचा पुं० [फा० होश] दे० 'होश' । हौजा'-सज्ञा पुं० [फा० हौजा हाथी की 'अम्मारी । हीदा [को०] । होस:--सचा पुं० [अ० हवस] दे० 'होस । हौजा-सज्ञा पुं० [अ० हौजह] १ छोटा हाद। २ औरतो की होसलेमद-वि० [अ० हौसलह, + फा० मद] दे० 'हौसलामद' । उ०- मूनेद्रिय । भग। ३ राज्य का केंद्रस्थान । राजधानी । ४ तट । मिस्टर रसल नील का एक होसलेमद सोदागर है।-श्रीनिवास किनारा [को०)। ग्र०, पृ० १६४ ॥ होडg-- सम्रा स्त्री० [हिं० होड] लागडाट । दे० 'होड' । होसाजासी-सज्ञा स्त्री० [हिं०] किसी कार्य का स्मरण रहने पर भी हौतभुजा--सशा पुं० [सं०] कृत्तिका नामक तृतीय नक्षत्र (को॰) । अाजकल करते हुए रहना। हौतभुज'---वि० हुतभुज् या अग्निसबधी [को॰] । होसा होसी 1-सज्ञा स्त्री० [हिं०] लाग डाँट । स्पर्धा । होडा होडी। हौताशन-वि[सं०] अग्नि सवधी । हुनाशन सववी। होसी--क्रि० अ० [राज०] 'होना' क्रिया का भविष्यत् काल का हौताशनकोण-मशा पुं० [सं०] पूर्व दक्षिण का कोना । अग्नि कोण । एकवचनात रूप । होगा। उ०-परा रही जी इसी कूड छै थांसू [को०] 1 होसी भेलौ ।-घनानद०, पृ० ४४५ । होताशनलोक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अग्नि का लोक [को०) । होस्टल--सञ्ज्ञा पु० [अ० होस्टेल] १ छात्रावास । २ निवासस्थान । होस्टेल --सच्चा ० [अ०] १ स्कूल या कालेज से सबद्ध छात्रो के रहने हौताशनि--सझा पुं० [सं०] १ कार्तिकेय । स्कद । २ रामायण मे वरिणत नील नाम का बदर [को०] । का स्थान । छात्रावास । २ रहने का स्थान । होतृक'- होहल्ला--सज्ञा पुं० [हिं० शोरगुल । चिल्लपो । हुल्लड । १--वि० [सं०] होता सवधी। होता से सवद्ध [को०] । हो ?--सर्व० [स० अहम्] व्रजभापा का उत्तम पुरुष एकवचन होतृका-सञ्ज्ञा पुं॰ होता का सहायक या सहयोगी। सर्वनाम । मै । उ०—(क) ही इक बात नई सुनि आई।- हौन--वि० सज्ञा पु० [सं०] दे० 'होतृक' (को०] । सूर०, १०।२० । (ख) ही मारिही भूप द्वौ भाई ।-मानस, हौत्रिक--वि० [सं०] होता के कार्य से संबंध रखनेवाला । होता ६७ । सवधी। हौ--क्रि० अ० 'होना' क्रिया का वर्तमानकालिक उत्तम पुरुष एक- हौद-सज्ञा पुं० [अ० होल] १ बँधा हुअा बहुत छोटा जलाशय । कुड। वचन रूप । हूँ। उ०—(क) हौद भरा जहाँ प्रेम का, तहां लेत हिलोरा दाम:-- दरिया०, पृ० १४ । (ख) कहर को क्रोध किधौं कालिका को हौ कनाg --क्रि० अ० [हिं० हुकार] १ गरजना । हुकार करना। कोलाहल हलाहल हौद लहरात लवालब को। -पद्माकर न०, २ हॉफना। प० ३०५ । २ कटोरे के आकार का मिट्टी का बहुत बडा हौं नी-वि० [हिं० होना] होनेवाली । उ०-नददास प्रभु बेगि वरतन जिसमे चौपाए खाते पीते है तथा रंगरेज, धोवी आदि चलो किन, भई कहा औ आगे हो नी । नद० ग्र०, पृ० ३७३। कपडे डुबाते है । नांद। हौंस-मज्ञा स्त्री० [अ० हवस] दे० 'हौस' । -सञ्ज्ञा पुं० [फा० हौजह.] हाथी की पीठ पर कसा जानेवाला हौल-अव्य० [हिं० हाँ] स्वीकृतिसूचक शब्द । हाँ। (मध्यप्रदेश)। आसन जिसके चारो ओर रोक रहती है मौर पीठ टिकाने के हौर-क्रि०अ० १ होना क्रिया का मध्यम पुरुष एकवचन का वर्तमान- लिये गद्दी रहती है। उ०—(क) हाथिन के होदा उकसाने कालिक रूप । हो । २ होना का भूतकाल । था। दे० 'हो' । कुभ कुजर के, भौन को भजाने अलि छूटे लट केस के ।-भूषण ग्र०, पृ० १२७ । (ख) वह हौदन सो सव छन कस्यो नृप -सक्षा पुं० [अनु० हौ, हाऊ ] लडको को डराने के लिये एक गजगन अवरेखिए। -भारतेंदु ग्र०, भा० १, पृ० २३३ । कल्पित भयानक वस्तु का नाम । हाऊ । भकाऊँ। क्रि० प्र०-कसना। होगा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [फा० हौवा] दे॰ 'हौवा' । हौदा २-~-सज्ञा पं० [अ० होचा, हिं० हौद] [अल्पा० सी० हौदी] कटोरे के होका--सज्ञा पु० [अनु॰ हाव ( = मुंह बाने का शब्द)] १ मरभुखापन । आकार का मिट्टी, पत्थर आदि का बहुत बडा वरतन जिसमे खाने का गहरा लालच । २ प्रबल लोभ । तृष्णा । ३ हडबडी चौपायो को चारा दिया जाता है। नांद। या घवराहट । होलदिली । उ०--रुस्तम अली की अम्मा अपने हौन-सज्ञा पुं० [देश॰] अपनत्व । प्रात्मीयता । अपनापन । जी के होने मे मरी जा रही थी।-शतरज०, पृ०१६ । होमीय-वि० [सं०] होम सबधी या हवन के उपयुक्त किो०] । हौज'-- १-सक्षा पु० [अ० हीज] १ पानी जमा रहने का चहबच्चा। कुड होम्य-सज्ञा पुं॰ [स०] घृत । घी । दे० 'होम्य' [को०] । हौद । उ०--अठएं लोक के पार भरा इक हौज है ।--पलटू०, हौम्यधान्य-सबा पुं० [स०] हवन का अन्न । दे० 'होमधान्य' [को॰] । पृ. ६५ २ कटोरे के आकार का मिट्टी का बहुत बड़ा हौर-अव्य० [देश॰] दे० 'और' । उ०-न माने प्यास हौर भूख वरतन । नांद। नाले के सुख दुख ।-दक्खिनी०, पृ० ५२ । हौजर-सञ्ज्ञा मी० [अ०] १ अज्ञता । नासमझी। २ अधीरता। हौरा-सझा पुं० [अनु० हाव हाव] शोर गुल । हल्ला । कोलाहल । आतुरता (को०] । उ०--सुनि सर्वत्र सब हौरा किरना ।--कबीर सा०, पृ० ४४० । हौदा'- होना