पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/३५

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स्थलदुर्ग स्थविर ५३४७ स्थलदुर्ग --सज्ञा पुं॰ [सं०] मैदान का किला। स्थलस्थ-वि० [सं०] सूखी धरती पर खडा होनेवाला । भूस्थित [को०] । स्थलदेवता-सचा पु० [सं०] १ लोक के देवता। ग्रामदेवता या स्थान स्थलातर-सज्ञा पुं॰ [स० स्थलान्तर] अन्य स्थान। दूसरी जगह [को॰] । देवता । २ भूमि के देवता । भूसुर । स्थला-सज्ञा प्री० [स०] जलशून्य भूभाग । खुश्क जमीन । स्थलनलिनी--सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'स्थलकमलिनी' । स्थलारविद-सज्ञा पुं० [स० स्थलारविन्द] दे० 'स्थलकमल' । स्थलनीरज-सज्ञा पुं० [स०] स्थलकमल । स्थलारूढ-वि० [स०] जो घोडे, रथ आदि सवारी से भूमि पर उतरकर स्थलपत्तन-सज्ञा पु० [स.] सूखी जमीन पर बसा हुआ नगर [को॰] । खडा हो [को०] । स्थलपथ-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] भूमार्ग । भूमिपथ । स्थलमार्ग । स्थली-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ जलशून्य भूभाग । खुश्क जमीन । भूमि । यौल-स्थलपथभोग = वह भूभाग जो उत्तम पथ या मार्ग से युक्त हो। २ ऊँची सम भूमि । ३ स्थान | जगह । जैसे,--वहाँ एक सुदर वनस्थली है। ४ दे० 'स्थलीदेवता' (को०)। ५ उपत्यका स्थलपथभोग-मञ्ज्ञा पुं० [म०] कौटिल्य के अनुसार वह उपनिवेश या (को०)। ६ शरीर का निकला हुप्रा कोई भाग या अश (को०) । राष्ट्र जिसमे अच्छी अच्छी सडके मौजूद हो। स्थलीदेवता-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] ग्राम्य देवता । स्थलपद्म-सज्ञा पुं० [सं०] १ स्थलकमल । २ मानकच्चू । मानक । स्थलीभता--वि० [स०] ऊँचे या उच्च स्तर पर स्थित। जैसे कोई विशेष दे० 'मानकद'। ३ दे० 'छत्रपत्न'। ४ सेवती गुलाव भूभाग या देश (को०] । आदि । शतपन्न। स्थलीय-वि० [स०] १ स्थल या भूमि सवधी । स्थल का भूमि का। स्थलपद्मिनी- --सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'स्थलकमलिनी'। जमीन का । जैसे,--जिसे कभी स्थलीय अथवा जलीय सग्राम से स्थलपिंडा-सज्ञा स्त्री० [स० स्थलपिण्डा] पिंड खजूर। पिंडी। भय उत्पादन नही हुआ।-अयोध्यासिंह (शब्द०)। २ किसी खर्जूरिका। स्थान का । स्थानीय । ३ विणेप स्थिति या विपय से सवद्ध । स्थलपुष्पा--सञ्ज्ञा ची० [स०] गुल मखमल नाम का पौधा । झडूक स्थलीशायी-वि० [स० स्थलीशायिन्] बिछावन आदि से रहित धरती नामक क्षुप । गुल मखमली। पर ही सोनेवाला (को०] । स्थलभडा-सज्ञा स्त्री० [सं० स्थलभण्डा] बनभटा । वृहती। स्थलेजात--वि० [स०] स्थल पर पैदा होनेवाला। जो पृथिवी पर स्थलमजरी--सज्ञा स्त्री० [स० स्थलमञ्जरी] लटजीरा । अपामार्ग । उत्पन्न हो। स्थलमर्कट--सज्ञा पुं० [स०] करीदा। करमर्दक । स्थलेजात'--सज्ञा पुं० मधुयष्टिका । मुलेठी । स्थलजा (को॰] । स्थलमार्ग-सज्ञा पु० [स०] जमीन पर होकर जानेवाला पथ। खुश्की स्थनेयु–सचा पु० [स०] हरिवंश के अनुसार रौद्राश्व के एक पुत्र का रास्ता या सडक [को०)। स्थलेरुहा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ घीकुमार । घृतकुमारी। २ कुरुही। स्थलयुद्ध-सज्ञा पुं॰ [म०] वह युद्ध या सग्राम जो स्थल या भूभाग पर दग्धा वृक्ष। होता है। खुश्की की लडाई । मैदानी लडाई । स्थलयोधी-सक्षा पु० [स० स्थलयोधिन्] जमीन पर लडाई करने- स्थलेशय-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] स्थल अर्थात् भूमि पर सोनेवाले कुरग, कस्तूरीमृग आदि। वाला योद्धा। स्थलेशय-वि० भूमि पर शयन करनेवाला [को०] । स्थलरुहा - सज्ञा स्त्री॰ [स०] स्थलकमल । स्थलोक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० स्थलोकस्] स्थल पर रहनेवाला पशु । स्थलवर्त्म-सहा पु० [स० स्थलवमन्] दे० 'स्थलमार्ग' । स्थलचर जीव। स्थलविग्रह-सबा पुं० [स०] वह लडाई या युद्ध जो स्थल या भूभाग स्थव-मजा पुं० [स०] छाग । बकरा [को०] । पर होता है । खुश्की की लडाई । स्थवि-सशा पुं० [स०] १ थैला। थैली। २ स्वर्ग। ३ जुलाहा । स्थलविहग-महा पु० [म० स्थलविहङ्ग] स्थल पर विचरण करनेवाले ततुवाय । ४ अग्नि । प्राग। ५ कोढी या उसका शरीर। ६ मोर आदि पक्षी। स्थलविहगम-सज्ञा पुं० [स० स्थलविहङ्गम] दे० 'स्थलविहग'। स्थविका-पक्षा श्री० [स०] एक प्रकार की मक्खी। स्थलविहग-सज्ञा पुं० [स०] स्थलचारी पक्षी। स्थलविहगम । स्थविर'-सज्ञा पुं० [स०] १ वृद्ध । वुड्ढा । जैसे,—उनका प्रभाव स्थलशुद्धि-सशा स्त्री० [स०] जमीन की सफाई या परिष्कार (को०] । स्थविर और युवा सब पर समान हुआ।-अयोध्यासिंह स्थलवेतस-सञ्ज्ञा पुं० [स०] भूमि पर पैदा होनेवाला वेत (को॰] । (शब्द०)। २ ब्रह्मा। ३ वृद्ध और पूज्य बौद्ध भिक्षु । ४ छरीला। शैलेय । ५ विधारा । वृद्धदारक । ६ कदव । कदम । ७ स्थलशृगाट-सक्षा पृ० [सं० स्थलशृङ्गाट] गोखरू । गोक्षुर। वौद्धोका एक सप्रदाय । स्थलशृगाटक-मञ्ज्ञा पुं० [सं० स्थलशृङ्गाटक दे० 'स्थलशृगाट'। स्थविर-वि० १ वृद्ध और पूज्य । २ स्थिर । दृढ। अचल (को०)। स्थलसीमा--सज्ञा स्त्री॰ [स० स्थलसीमन्] देश की सीमा । सरहद । ३ पुरातन । प्राचीन (को०)। हिं० श० ११-३ का नाम। फल । ७ जगमा