पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/४४

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9 ५३५६ स्थूलचूड' स्थूललक्ष्य स्थूलचूड'--सज्ञा पु० [सं०] किरात । स्थूलपिंडा-- T--सजा सी० [सं० म्यूलपिण्डा] पिट गर । स्थूलचूड'--वि० जिसकी चूदा या शिर के बाल बडे बडे हो |यो०] । स्थूलपुप्प-मया पुं० [सं०] १ यक या अगम्न नामक वृक्ष। २ गृ7. मगमली। भटुक। स्थूलजघा-सज्ञा स्त्री० [पुं० स्थूलजम्घा] गृह्यसूव के अनुसार नो ममि- धामो मे से एक। स्थूलपुष्पा-ममा सी० [मं०] पारफोना । रापन्गाली। स्थूलजिह्व-वि• [0] जिसकी जीभ बहुत वडी या मोटी हो । स्थूलपुप्पी -सा मो० [सं०] शसिनी । यतिवता । स्थूलजिह्व-सहा पुं० एक प्रकार के भूत । स्थूलप्रपच-मश ५० [सं० स्थूलप्रपञ्च गृष्टि । गगार । स्थूलजीरक-सज्ञा पुं० [स०] मैंगरेला। स्थूलप्रियगु--सझा मी० [सं० न्यूलप्रिय ज] पर धान्य । ना। स्थूलतडुल-सज्ञा पुं॰ [स० स्यूनतण्डन] एक प्रकार का मोटा धान । स्थूलफत-सया पं० [मं०] १ मत। शामली। २ वडा नी । स्थूलता-सज्ञा स्त्री० [मं०] १ स्थल होने का भाव । स्थूलत्व। २ ३ मोटे तौर पर निवाना गया निणर्ग या फत (को०)। मोटापन । मोटाई। ३ भारीपन । स्थूलफना--मशा स्त्री॰ [म.] १ शगपुरपी। यानगई। २ मेमल स्थूलताल-सगा पुं० [स०] श्रीताल । हिताल । का वृक्ष । शाल्मती। स्थूलतिंदुक-सज्ञा पुं॰ [सं० स्थूलतिन्दुक] गावन स । मकरतेंदग्रा । स्थूलवर्व रिका-सश म्रो० [सं०] वन का पेट। स्थूलतिक्ता-मशा स्री० [मं०] दार हनदी। स्थूलवालुका--गमा प्री० [सं०] एक प्राचीन नदी या नाम जिसका स्थूलतोमरी -मज्ञा पुं० [स० म्यूततोगग्नि] वह जिसका माला नवा या उरने] महाभारत में है। स्थूल हो। मोटा या लवा माता रखनेवाला योद्धा [को०)। स्यूलवुद्वि-वि० [सं०] मर्ग । मदाद्धि (को०] । स्थूलत्व-सज्ञा पुं० [म०] दे० 'स्थूतना' । स्थूलभटा-सग पं० [सं० स्यून+हि० मटा] » 'बन मटा'। स्थूलत्वचा-सज्ञा स्त्री॰ [म०] गभारी। काश्मरी वृक्ष । स्थूलभद्र-सरा पुं० [सं०] एक प्रकार के जैन गो ‘श्रुनोलिक' भी स्थूलदड-सज्ञा पुं० [म० स्थूलदण्ड] महानल । वडा नरकट । कहनाते हैं। स्थूलदर्भ-सज्ञा पुं० [सं०] मूंज नामक तृण । स्थूलभाव-सशा पुं० [#०] मूक्ष्म ने म्यूलत्व की प्राप्ति । उत्पत्ति । स्थूलदर्भा-मज्ञा स्त्री॰ [म०] मूंज नामक तृण । स्थूलदर्भ । समव । जन्म (को०)। स्थूलदर्शक- h-सज्ञा पुं० [स०] वह यत्र जिसकी सहायता से सूक्ष्म वस्तु स्थूलभुज--सशा पुं० [सं०] एक विद्याधर । स्पष्ट पीर वडी दिखाई दे । मूक्ष्मदर्शक यत्न । स्थूलभूत-सरा पुं० [सं०] मात्य दर्शन के अनुसार क्षिति, जन प्रादि स्थूलदला-मला स्त्री० [म०] 'पीकुगार । ग्वारपाठा । पच तत्व (को०] । स्थूलदेही--वि० [स० स्यूलदहिन्] मोटे शरीरवाला [को०] । स्थूलमजरी--मज्ञा पी० [सं० स्थूलमञ्जरी] अपामार्ग । चिचहा । स्थूलधी-वि० [सं०] अज्ञ । मदबुद्धि (को० । स्थूलमध्य-वि० [सं०] जिसका मध्य भाग म्यूरा या मोटा हो (को॰] । स्थूलनाल-मज्ञा पुं० [प०] देवनल । वडा नरकट । स्थूलमरिच--सहा पुं० [म.] गीतलनीनी । कबाबचीनी । करकोल । स्थूलनास--सञ्ज्ञा पु० [सं०] मूअर । शृकर । स्थूलमान-- सपा पुं० [सं०] मोटा या लममम हिसार [को० । स्थूलनास-वि० जिराकी नाक वटी या लबी हो । स्थूलमूल-सा पु० [सं०] पटी मूली। स्थूलनामिक---मज्ञा पुं०, वि० [v] २० 'स्थूलनाम' । स्थूलमूलक-सज्ञा पुं० [मं०] दे० 'स्यूलमूल' । स्थूलनिंबू-सज्ञा पु० [भ० स्थूलनिम्ब] महानिवू । बडा नीबू । स्थूलस्हा-सा ली० [सं०] स्थलपद्म । स्थूलनील-सज्ञा पुं० [म०] वाज नामक पक्षी । श्येन । स्थूलरोग-मशा पुं० [सं०] मोटे होने या मोटारा होने का रोग । मोटाई की व्याधि। स्थूलपट-सज्ञा पु० [सं०] मोटा कपटा [को॰] । स्थूलपट्ट-सहा पुं० [सं०] १ कपास । २ मोटा कपडा (को॰) । स्थूललक्ष -सज्ञा पुं॰ [सं०] १ वह जो वहुन दान करता हो। स्थूलपट्टाक-सज्ञा पुं० [म०] मोटा म्थूल वस्त्र (को०] । बहुत वडा दानी। २ वडा पडित । विद्वान् । ३ कृतज्ञ। ४ स्थूलपत्र-सज्ञा पु० [स०] १ दगनक । दौना नामक क्षुप । २ सप्त- वह जो नाभ और हानि दोनो का ध्यान रखता हो। ५ वह जो लक्ष्यसधान के प्रति लापरवाह हो। पर्ण। छितिवन । सतिवन । स्थूलपर्णी -सज्ञा खी० [म०] सप्तपणं । छतिवन । स्थूललक्षिता-ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ दानशीलता। २ पाडित्य । विद्वत्ता । स्थूलपाद'-पशा पृ० [स०] १ हायी। २. वह जिमे फीलपार्वं रोग स्थूल नक्ष्य-सशा पुं० [स०] १ वह जो बहुत अधिक दान करता हो। ६ कृतज्ञता। हो। श्लीपद रोग से युक्त स्थूलपाद--१० मोटें परोवाला । जिसके पर सूजे हुए हो [को॰] । वहुत वडा दाता । २ विसी विपर्य की ऊपरी या मोटी मोटी बातें बताना। ६. दे० 'स्थूललक्ष' । 1 व्यक्ति ।