पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/५५

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स्फीतता । स्प्रिचुअलिज्म प्रचुप्रलिज्म-सक्षा पु० [अ०] प्रात्माविद्या। भूतविद्या। दे. स्पिरिनुअलिज्म ।' स्प्लट-सज्ञा पु० [अ०] पाश्चात्य चिकित्सा मे चिपटी लकडी का वह टुकडा जो शरीर की किसी टूट हुइ हड्डी आदि को फिर ययास्थान बैठाकर, उस अंग को सीधा या ठीक स्थिति मे रखने के लिये उसपर वाधा जाता है । पट्टी। पटरी। स्फट-सज्ञा पु० [म०] १ फट फ्ट शब्द । २ साप का फन । स्फटा-सज्ञा स्त्री॰ [म०] १ साँप का फन । २ फिटकिरी (को० । स्फटिक-- सज्ञा पुं० [स०] १ एक प्रकार का सफेद बहुमूल्य पत्थर या रत्न । बित्लौर। विशेष--स्पटिक काँच के समान पारदर्शी होता है और इसका व्यवहार मालाएँ, मूर्तियाँ तथा दस्ते आदि वनाने मे हाता है। इसके कई भेद और रग होते है । २ सूर्यकात मरिण। ३ शीशा। काँच । ४ कपूर । कर्पूर। ५ फिटकरी। | स्फटिककुड्य--सज्ञा पुं० [सं०] विल्लौर की दीवार । | स्फटिकपात्र--सशा पुं० [स०] स्फटिक का बरतन [को०] । | स्फटिकप्रभ-वि० [स०] स्फटिक के समान चमकीला या दीप्त [को०] । स्फटिकर्भाित्त-सञ्ज्ञा स्त्रो० [स०] दे॰ 'स्फटिककुड्य' । स्फटिकमरिण--सज्ञा पु० स० विल्लौर पत्थर [को॰] । स्फटिकविष--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दारुमोच नाम का विप । स्फटिकशिखरी--पज्ञा पु० [सं० स्फटिकशिखरिन्] कैलाश पर्वत । स्फटिकशिला--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] स्फटिक की शिला। बिल्लौर । स्फटिकस्कभ-सज्ञा पु० [स० स्फटिकस्कम्भ) स्फटिक का सभा। स्फटिकहर्म्य--सज्ञा पु० [स०] स्फटिक का बना भवन । स्फटिका--मज्ञा स्त्री॰ [स०] १ फिटकिरी । २ कपूर (को॰) । स्फटिकाख्या-सज्ञा सी० [स०] फिटकिरी। स्फटिकाचल-सज्ञा पु० [स०] कैलाश पर्वत जो दूर से देखने मे स्फटिक के समान जान पडता है । स्फटिकात्मा-मज्ञा पुं० [म० स्फटिकात्मन्] विल्लौर । स्फटिकमणि । स्फटिकाद्रि-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'स्फटिकाचल' [को०] । यौ०--स्फटिकाद्रिभिद् = कपूर । कर्पूर । स्फटिकाभ्र--सज्ञा पु० [स० कपूर । स्फटिकारि, स्फटिकारिका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] फिटकिरी [को०] । स्फटिकारी-सज्ञा स्त्री० [स०] फिटकिरी । स्फटिकाश्मा- सज्ञा पुं० स० स्फटिकाश्मन् ] फिटकिरी (को०] । स्फटिकी--सज्ञा स्त्री० [सं०] फिटकिरी। स्फटिकोपम-सज्ञा पु० [म०] १ कपूर २ जस्ता नाम की धातु । ३ चद्रकात मणि। स्फटिकोपल--सज्ञा पु० [स०] विल्लौर । स्फटिक । स्फटित-वि० [स०] फटा हुआ। विदीर्ण (को०] । स्फटी--सशा सी० [सं०] फिटकिरी । स्फर, स्फरक--सज्ञा पुं० [स] चर्म । ढाल के स्फरण--माया पु० [म०] १ कॉपना। थरथराना। फडकना । २ प्रवेश करना को० । स्फाटक--पला पु० म०] १ स्फटिक । विल्लौर । २ पानी की बूंद । स्फाटकी-मशा स्त्री॰ [म०] फिटकिरी (को०) । स्फाटिक'-- सज्ञा पुं० [१०] १ एक प्रकार का श्वेत रत्न । विल्लौर। विशेप दे० स्फटिक'। २ एक प्रकार का चदन (को०) । स्फाटिक-वि० [१०] [वि० श्री. स्फाटिको] स्फटिक या विल्लौर सवधी। विल्लौर का। स्फाटिकोपल-सज्ञा पुं० [स०] स्फटिक । विल्लौर । स्फाटित -वि० [म०] फटा या फाडा हा । विदीर्ण [को०] । स्फाटीक--सबा पु० [सं०] दे० 'स्फटिक' । स्फात-वि० [स०] १ वढा हुआ । २ फूला हुआ (को० । स्फाति-सच्चा स्त्री॰ [स.] १ वृद्धि । बढती । २ सूजन । शोथ [को०] । स्फार'--वि॰ [स०] १ प्रचुर । विपुल । बहुत। २ विकट । ३ विस्तृत । वडा । बढा हुआ (को०) । ४ ऊँचा । तार । उच्च । जैसे, स्वर (को०) ! ५ अविरल । निविड । घना (को०) । स्फार'-सज्ञा पुं॰ [म०] १ सूजन | वृद्धि । २ (सोने मे पडी हुई) फुटकी । ३ उभार । गिल्टी। ४ धकधकी । थरथरी । ५ टकार । ६ प्राचुर्य । अधिकता (को०) । स्फारण-मज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'स्फुरण' । स्फारित-वि० [स.] विस्तृत किया हुप्रा । फैलाया हुआ [को॰] । स्फाल--सञ्ज्ञा पु० [स०] १ ३० 'स्फूति' । २ धडकन । कॅपकंपी (को॰) । स्फालन-सक्षा पु० [अ०] १ हिलाना । डुलाना। २ रगडना । घिसना। ३ घोडे आदि को यपथपाना। सहलाना। ४ स्पदन । धकधकी (को०। स्फिक्--सज्ञा स्त्री॰ [स० स्फिच्] चूतड । स्फिक्स्राव---सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक रोग (को॰] । स्फिग्घातक--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] कट्फल [को॰] । स्फिग्दघ्न -वि० [स०] कूल्हे या चूतड तक पहुँचनेवाला [को॰] । स्फिच-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] चूतड । स्फिर--वि० [म.] १ अायत । विशाल । विस्तृत । २ अधिक। प्रचुर । बहुत । ३ असय्य [को०] । स्फीत-वि॰ [स०] १ वढा हुअा । वर्धित । २ फूला हुआ। ३ समृद्धि । ४ मोटा । पीन । स्थूल (को०)। ५ बहुत । प्रचुर (को०)। ६ पूत । पवित्र । शुद्ध (को०)। ७ जो पैतृक रोग से ग्रस्त हो (को०)। ८ अानदित । खुश । प्रसन्न (को०) । स्फीतता--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ स्फीत होने का भाव या धर्म । २. वृद्धि । ३ पीनता । मोटाई । ४ समृद्धि ।