पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/७६

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स्वप्नविचारी ५३८८ स्वभावोक्ति स्वप्नविचारी-सज्ञा पुं० [स० स्वप्नविचारिन्] [वि० सी० स्वप्न स्वप्रमितिक---वि० [सं०] जो बिना किसी की महायता के अपना माग विचारिणी] वह व्यक्ति जो स्वप्न के शुभाशुभ फल का काम स्वय करता हो। जैसे,--मूर्य जो आप ही प्रकाश विचार करता हो । स्वप्नशास्त्री। स्वप्नश । शकुनज्ञ (को०] । देता है। स्वप्नविनश्वर--वि० [सं०] स्वप्न के समान नष्ट होनेवाला। क्षरण स्ववरन-सा पुं० [सं० गुवर्ण] ३० 'मुवर्ण'। भगुर [को॰] । स्ववधु--सशा पुं० [सं० स्ववन्धु] अपना मधी । सजातीय किो०] । स्वप्नविपर्यय--सहा पुं० [सं०] स्वप्न या निद्रा के समय का स्ववीज-सा पुं० [सं०] अात्मा । वदलना [को०] । स्वभट-सज्ञा पुं० [सं०] १ अपनी रक्षा म्यय करनेवाला। २ अपना स्वप्नवृत्त- सक्षा पुं० [सं०] स्वप्न मे अन्भूत होनेवाली घटना [को०] । योद्धा । स्व-प्रग-रक्षक [को०) । स्वप्नशील-वि० [सं०] निद्रातुर । नीद से जिसकी प्रांखें भरी हो (फो०] स्वभद्रा-- सश सी० [सं०] गभागे । गमागे वृक्ष । स्वप्नसदर्शन-सज्ञा पुं० [सं० स्वप्नसन्दशन] दे० 'स्वप्नदर्शन' । स्वभाउ-सशा पुं० [सं० स्वभाव] दे० 'स्वभाव' । उ०-शर को स्वप्नसात्--वि० [स०] सोया हुआ । स्वप्न मे लीन (को०] । स्वभाउ विना युद्ध न करे वखान कायर ज्यो कहा घर बैठे शोच स्वप्नसृष्टि----सज्ञा पुं० [सं०] स्वप्न की मृष्टि या निर्माण [फो०] । हरिये ।-हनुमनाटक (शब्द०)। स्वप्नस्थान--सज्ञा पुं० [सं०] सोने का कमरा । शयनगृह । शयनागार। स्वभाग्य--सा पुं० [सं० स्व+भाग्य] अपना भाग्य । स्वप्नात--सज्ञा पुं० [सं० स्वप्नान्त ] १ सपना टूटना । स्वप्न का यौ.--स्वभाग्य निर्णय = अपने बारे मे पद निर्णय करना। समाप्त या खत्म होना । २ स्वप्न या निद्रा की अवस्था । स्वभाजन-सचा पुं० [सं०] प्रसन्नता । माहाद । प्रर्प (को०] । स्वप्नावस्था (को०)। स्वभाव--सपा पुं० [सं०] १ मदा बना रहनेवाला मूल या प्रधान स्वप्नातर--सञ्ज्ञा पुं० [सं० स्वानान्तर] दे० 'स्वप्नात' या 'सुपनतर'। गुण । तासीर । जैसे,-जल का स्वभाव गीतल होता है। यौ०--स्वप्नातरगत = स्वप्नावस्था में घटित। २ मन की प्रवृत्ति । मिजाज । प्रकृति । जमे,--(क) उमका स्वप्नातिक-सज्ञा पुं० [सं० स्वप्नान्तिक] स्वप्न की चेतना या ज्ञान(को०] स्वभाव वडा कठोर है। (ग) पवि स्वभाव से ही सौदर्य- स्वप्नादेश--सक्षा पु० [सं०] स्वप्नसबंधी प्राशा। स्वप्नावस्था का प्रिय होते हैं। (ग) अाजकल उनका स्वभाव कुछ बदल गया आदेश [को०] । है । ३ पादत । टेव । वान | जमे,-उसे लडने का स्वभाव पड स्वप्नाना--क्रि० स० [सं० स्वप्न + हिं० पाना (प्रत्य०)@] सपना गया है। देना । स्वप्न देना । स्वप्न दिखाना । उ०--हारि गयो हीरा नहि क्रि० प्र०-डालना।-पडना। पायो । तव प्रगद को हरि स्वप्नायो ।--रघुराज (शब्द०)। ४. अपनी स्थिति या स्थान। अपना राष्ट्र या देश [को०] । स्वप्नालु--वि० [स] सोनेवाला । निद्राशील । निद्रालु । स्वभावकृत्--वि० [सं०] स्वाभाविक । प्राकृतिक [को॰] । स्वप्नावस्था-सचा खी० [स०] स्वप्न की अवस्था या स्थिति । सपने स्वभावकृपण-सज्ञा पुं० [०] १ ब्रह्मा का एक नाम । २ वह व्यक्ति की अवस्था (को॰] । जो स्वभावत कजूस हो। कृपण व्यक्ति । स्वप्नाविष्ट-वि० [स० स्वप्न + प्राविष्ट] १ उनीदा। २ मोहा- स्वभावज-वि० [सं.] जो स्वभाव या प्रकृति से उत्पन्न हुआ हो । विष्ट । ३ कल्पनालोक मे विचरण करता हुमा। ४ स्वप्न प्राकृतिक । स्वाभाविक । सहज । देखता हुअा। उ०~मेरी यह सोयी अवस्था फिर लौट आई है, स्वभावजनित-वि० [सं०] दे० 'स्वभावज' । पर वैसी जड नही-मैं मानो स्वप्नाविष्ट हूँ।-नदी०, स्वभावत-अव्य० [सं० स्वभावतस्] स्वभाव से । प्राकृतिक रूप से । पृ०२१२। सहज ही । जैसे,—कोई अन्याय होता हुआ देखकर मनुष्य को स्वप्निल-वि० [सं० स्वप्न + हि० इल (प्रत्य॰)] १ स्वप्न सबधी। स्वभावत' क्रोध या जाता है। स्वप्न का। सपनोवाला। उ०--सुप्ति की ये स्वप्निल मुस्कान । स्वभावद्वेष-सज्ञा पुं० [सं०] स्वाभाविक या प्रकृतिजन्य द्वेषभाव । -पल्लव, पृ० । २ अर्धसुप्त । उनीदा। जैसे, सर्प और नकुल का। स्वप्नोपम-वि० [स०] १ सपने के समान । स्वप्न सदृश । २ जो स्वभावप्रभव-वि० [स०] दे० 'स्वभावज' । स्वभावसिद्ध-वि० [सं०] स्वभाव से हो होनेवाला । सहज । प्राकृतिक। असत्य हो । अवास्तविक । तथ्य रहित [को०] । स्वप्रकाश-वि० [सं०] १ जो आप ही प्रकाशमान् हो । २ जो अपने स्वाभाविक । उ०-भ्रमपूर्ण बातो का सशोधन करने की योग्यता मनुष्य मे स्वभावसिद्ध है। -द्विवेदी (शब्द०) । आप स्पष्ट या व्यक्त हो । २ जो अपने ही तेज से प्रकाशमान् स्वभाविक-वि० [सं० स्वाभाविक दे० 'स्वाभाविक'। हो । जो स्वय ही के तेज से दीप्त हो। स्वभावोक्ति-सशा स्त्री० [स०] एक प्रकार का अर्थालकार जिसमे स्वप्रकृतिक-वि० [स०] जो बिना किसी कारण के स्वय अपनी प्रकृति किसी का जाति या अवस्था आदि के अनुसार यथावत् और से ही हो । प्राकृतिक रूप से होनेवाला। प्राकृतिक स्वरूप का वर्णन किया जाय ।