पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/८३

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और गुण स्वराष्ट्रमनी ५३६५ स्वस्पी २ प्राचीन सुराष्ट्र नामक देश का एक नाम । ३ तामम मनु के विशेप-इस अर्थ मे यह यौगिक शब्दो के अत मे ही आता है। पिता का नाम जो पुराणानुसार एक सार्वभौम और प्रसिद्ध जैसे,-आधारम्वरूप। राजा थे और जिन्होने बहुत से यज्ञादि किए थे। स्वरूप --मशा पुं० [स० सास्प्य] दे० 'सारूप्य' । उ०—हम सालोक्य स्वराष्ट्रमनी-सज्ञा पु० [स० स्वराष्ट्रमन्त्रिन्] दे० 'स्वराष्ट्रसचिव' । स्वरूप सरोज्यो रहत समीप सहाई। सो तजि कहत और की स्वराष्ट्रसचिव-सञ्ज्ञा पु० [२०] किसी देश की सरकार या मन्त्रिमडल तुम अलि बड़े अदाई ।---सूर (शब्द॰) । का वह सदस्य जिसके अधीन पुलिस, जेलखाने, फौजदारी, स्वरूपक-सज्ञा पुं० [म०] १ अपनी अवस्था, प्राकृति या प्रतिकृति । शासनप्रवध आदि हो । गृहमन्त्री। होम मेवर ।होम मिनिस्टर । २ अपना स्वभाव अथवा विशेषता। होम सेक्रेटरी। स्वरूपगत-वि० [सं०] १. आकृति या प्राकारगत । २. अपने समान स्वराष्ट्रसदस्य-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'स्वराष्ट्रसचिव' । विशेपता से युक्त । अपने सदृश विशेषताग्रोवाला [को०] । स्वरिंगण-सज्ञा पु० [स०स्वरिङ्गण] आँची। तेज हवा । तूफान [को०] । स्वरुपज्ञ-सा पुं० [सं०] वह जो परमात्मा और प्रात्मा का स्वरूप स्वरित'--सज्ञा पु० [सं०] उच्चारण के अनुसार स्वर के तीन भेदो मे पहचानता हो । तत्त्वज्ञ । उ०-- • क्योकि वह अपने स्वरूपज्ञो से एक । वह स्वर जिसमे उदात्त और अनुदात्त दोनो पर किस नाते दत्तचित्त होगा 2-हरिश्चद्र (शब्द॰) । वह स्वर जिसका उच्चारण न बहुत जोर से हो और न बहुत स्वरूपता--राज्ञा ली० [स०] स्वरूप का भाव या धर्म । धीरे से। मध्यम रूप से उच्चरित स्वर । स्वस्पदय--मज्ञा पुं॰ [स०] जैनियो के अनुसार वह दया या जीवरक्षा स्वरित:--वि०१ जिसमे स्वर हो । स्वर से युक्त । २ गूंजता हुआ। जो इहलोक और परलोक मे सुख पाने के लिये लोगो की देखा- देखी की जाय। ध्वनित । ३ जिसका उच्चारण किया गया हो। उच्चरित (को०)। ४ स्वरितबोधक उच्चारणचिह्न से युक्त (को॰) । विशेष-इस प्रकार की जीवरक्षा या दया यद्यपि ऊपर से देखने स्वरितत्व-सज्ञा पुं॰ [स०] स्वरित का भाव या धर्म । मे दया ही जान पडती है, तथापि स्वभाव मे, मन के भाव से नही बल्कि स्वार्थ के विचार से, होती है। स्वर-सबा पुं० [सं०] १. वज्र । २ यज्ञ। ३ वाण । तीर । ४ सूर्य की किरण। ५ एक प्रकार का विच्छू । धूप (को०)। स्वरूपप्रतिष्ठा-मज्ञा स्री० [स०] जीव का अपनी स्वाभाविक यज्ञीय स्तम का एक प्रश या भाग (को०)15 वृक्ष के तने से शक्तियो और गुणो से युक्त होना । काटा हुआ काष्ठ का लबा अश, विशेषत यजस्तभ (को०)। स्वरूपमान--सज्ञा पुं० [स. स्वरुपमत] स्वरुपवान् । सुदर । स्वरुचि'-वि० [स०] जो सब काम अपनी रुचि के अनुसार करे । खूबसूरत । उ०-और स्वरूपमान लोगो के सहस्रो लघु-लघु स्वतन्न । स्वाधीन । अाजाद । ममह उडुगणो की भांति यत्न तत्र छिटके हुए थे।-अयोध्या० (शब्द०)। म्वरुचि-सज्ञा ली अपनी रुचि । अपनी पसद । स्वरूपवान्-वि० [सं० स्वरूपवत्] [वि॰ स्त्री० स्वरूपवती] जिसका स्वरुमोचन--सज्ञा पु० [स०] यजीय स्तभ का वह भाग जो नीचे से। स्वरुप अच्छा हो। सु दर । खूबसूरत । उ०-अर्थात् उस परम तीसरे हाय पर तथा ऊपर से पद्रहवे हाथ पर होता हे को अद्भत विशेष स्वरुपवान् परमात्मा के "}--केनोपनिषद् स्वस्प-मज्ञा पुं॰ [म.] १ ग्राकार । आकृति । शक्ल । उ०-अपने (शब्द०)। अश श्राप हरि प्रकटे पुरुषोत्तम निज रूप । नारायण भुव भार स्वरूपसवध-सज्ञा पु० [स० स्वरूपसम्बन्ध] वह सबंध जो किसी के हरो है अति प्रानद स्वरूप |--मूर (शब्द०)। २ किमी व्यक्ति परम्पर ठीक अनुरूप होने के कारण स्थापित होता है । की अपनी प्रतिकृति या मूर्ति । मूर्ति या चिन्न प्रादि । उ०--- स्वरूपात्मक-वि० [स० स्वरूप + प्रात्मक ] स्वल्पवाला । साकार । हिय मे स्वस्प सेवा करि अनुराग भरे ठरे ओर जीवनि की जीवन उ०-~-ता दिन ते यह ब्राह्मन श्रीयमुना जी को स्वस्पात्मक को दीजिए।--नाभा (शब्द०)। ३ देवतानो प्रादि का धारण करि जानन लाग्यो।-दो सौ बावन०, मा० १, पृ० २८० । किया हुआ रूप। ४ वह जो किमी देवता का रूप धारण किए हो।५ पडित । विद्वान् । ६ स्वभाव । ७ अात्मा । ८. स्वरूपाभास-सज्ञा पुं० [स०] कोई वास्तविक स्वरूप न होने पर भी विशिष्ट लक्ष्य या उद्देश्य । उसका प्राभास दिखाई देना। जैसे,-गधर्वनगर, जिसका स्वरूप-वि० १ सुदर । खूबसूरत । २ तुल्य । समान । उ०-इतनि वास्तव मे कोई स्वरूप नहीं होता, पर फिर भी स्वरूपाभास रूप भइ कन्या जेहि स्वरूप नहिं कोय । धन सुदेस रुपवता जहाँ होता है। जनम अस होय ।--जायसी (शब्द०) । ३ पठित । शिक्षित । स्वरूपासिद्ध-वि० [म०] जो स्वयं अपने स्वरूप से ही प्रसिद्ध जान विज्ञ (को०)। पडता हो । कभी सिद्ध न हो मकनेवाला। स्वरूप-अव्य० स्प मे । तोर पर। जैसे,—उन्होंने प्रमाण स्वरूप स्वरूपासिद्धि-सज्ञा सो [स०] प्रसिद्ध के तीन भेदों में से एक का नाम । महाभारत का एक श्लोक कह सुनाया। स्वरूपी-वि० [सं० स्वरूपिन् ] १ स्वर पवाला । स्वस्पयुक्त । हिं० श० ११-६