पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/११२

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परकिया २८२१ परगनी . अकुलाने ।-नंद० ०, पृ० १४२ । परकिया-सच्चा स्त्री० [सं० परकीय] दे० 'परकीया'। उ०—निघरक भई कहति इमि लहिये। सा परकिया लच्छिता कहिए। -नद० प्र०, पृ०१४६ । परकीय-वि० [स०] पराया । दूसरे का । बेगाना। परकीया-सञ्ज्ञा श्री० [स०] पति के अतिरिक्त परपुरुष की प्रेमपात्रा या पर पुरुष से प्रीति सवधरखनेवाली स्त्री। नायिकामो के दो प्रधान भेदो मे से एक । विशेष-परकीया दो प्रकार की कही गई हैं। अनूढा ( अविवा- हित ) और ऊढा ( विवाहित )। स्वेच्छापूर्वक परपुरुष से प्रेम करनेवाली परकीया को 'उबुद्धा' और परपुरुष की चतुराई या प्रयत्न से उसके प्रेम में फंसनेवाली को 'उद्यो- धिता' कहते हैं। परकीया के छह और भेद किए गए हैं- गुप्ता, विदग्धा, लक्षिता, कुलटा, अनुशयाना और मुदिता । ( इनके विवरण प्रत्येक शब्द के प्रतर्गत देखो।) परकीरति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० प्रकृति ] दे० 'प्रकृति' । परकीर्ति-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दूसरे का यश । उ०-हमारा उच्चपद का आदरणीय स्वभाव उस परकीति सहन न कर सका -भारतेंदु ग्रं०, भा० १, पृ० २६८ । परकृति-प्रज्ञा स्त्री० [स०] १ दूसरे की कृति । दूसरे का किया हुआ काम । २ दूसरे की कृति का वर्णन । ३ कर्मकाड मे दो परस्पर विरुद्ध वाक्यो की स्थिति । परकाटा-सञ्चा पु० [ परिकोट ] १ किसी गढ या स्थान की रक्षा के लिये चारों ओर उठाई दुई दीवार । बचाव या सुरक्षा के लिये मिट्टी या पत्थर आदि की दीवार । ५ पानी आदि की रोक के लिये खडा किया हुआ घुस । बाँध । चह । परक्खना-क्रि० स० [हिं० परखना ] दे० 'परखना' । उ०- गुणी परक्खवा गया उचार बारण अोपमा। प्रल क ज्वाल पस्सरे, अनत जीभ प्रातरे। -रा० रू०, पृ० ८४ । परक्रमण-सचा पु० [सं० परिक्रमण ] परिक्रमा । प्रदक्षिणा। उ०-परक्रमण तिण दे पग परसे, जस यम जीह अपार जपे।-रघु० रू०, पृ० १४१ । परक्षेत्र-सशा पुं० [सं०] १ पराया खेत । २ दूसरे का शरीर । ३ पराई स्त्री । दूसरे की भार्या । परख-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० परीक्षा, प्रा० परिक्ख] १ गुणदोष स्थिर करने के लिये अच्छी तरह देखभाल । जाँच । परीक्षा। जैसे,- अभी उस सोने की परख हो रही है । २ गुणदोष का ठीक ठीक पता लगानेवाली दृष्टि । गुणदोष का विवेचन करने- वाली अतःकरण वृत्ति । कोई वस्तु भली है या बुरी यह जान लेने की शक्ति । पहचान । जैसे,—(क) तुम्हें सोने की परख नही है। (ख) उसे आदमी की परख नहीं है। क्रि० प्र०-होना। परखचा-सज्ञा पु० [हिं०] खड । टुकहा। विभाग । जैसे, परखचे उडाना = धज्जियाँ उडाना। परखना'-क्रि० स० [स० परीक्षण, प्रा० परीक्षण ] १ गुणदोप स्थिर करने के लिये अच्छी तरह देखना भालना। परीक्षा करना । जाँच करना । जैसे, रत्न परखना, सोना परखना। सयो० कि०--देना ।-लेना। २ अच्छी तरह देख भालकर गुणदोष का पता लगाना । भला और बुरा पहचानना। कौन वस्तु कैसी है यह ताडना। जैसे,—मैं देखते ही परख लेता हूँ कि कौन कैसा है। परखनारे-क्रि० स० [म० पर+इक्षण, हिं० परेखना ] प्रतीक्षा करना । इतजार करना । पासरा देखना। परखवाना-क्रि० स० [हिं० ] द० 'परखाना' । परखवैया-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० परख+वैया (प्रत्य॰)] परखनेवाला । जाँचनेवाला । पहचाननेवाला। परखाई-मज्ञा स्त्री॰ [हिं० परख+आई (प्रत्य॰)]१ परखने का काम । २ परखने की मजदूरी। परखाना, परखावना-क्रि० स० [हिं० परखना का प्र०रूप] परखने का काम दूसरे से कराना। परीक्षा कराना। जंच- वाना। उ०-कहि ठाकुर पौगुन छोडि सवै परवीनन के परखावने हैं। -ठाकुर०, पृ० २५ । २ कोई वस्तु देते या सौंपते समय उसे गिनकर या उलट पलटकर दिखा देना। सहेजवाना । सँभलवाना। परखी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० परख+ई ( प्रत्यय०)] लोहे का बना हुआ नालीदार और नुकीला एक उपकरण जिससे बद वोरो मे से गेहूँ, चावल आदि परखने के लिये निकाला जाता है। परखुरी -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश॰] दे० 'पखडी' । परखैया-सञ्ज्ञा पु० [हिं० परख+ऐया(प्रत्य॰)] परखनेवाला। उ०- विन परखैया चतुरजौहरी किसको इते दिग्वाऊँ।-प्रेमघन०, भा०१, पृ० १८६ । परग-सबा पुं० [सं० पदक ] पग। डग ! कदम । उ०-तीनि परग तीनो पुर भयऊ ।-कवीर सा० ० ४०८ । परगटा-वि० [सं० प्रकट ] दे० 'प्रगट' । परगटना२-क्रि० अ० [हिं० परगट ] प्रगट होना । खुलना । जाहिर होना। परगटना--क्रि० स० प्रकट करना । जाहिर करना । परगन्-सज्ञा पुं॰ [फा० परगनह ] ६० 'परगना' । उ०--ब्रज परगन सरदार महरि तू ताकी करत नन्हाई । —सूर (शब्द०)। परगना-सज्ञा पुं० [फा० । मि० सं० परिगण (= घर) ] एक भू- भाग जिसके अंतर्गत बहुत से ग्राम हो। जमीन का वह हिस्सा जिसमें कई गाँव हो। विशेष-माजकल एक तहसील के प्रतर्गत कई परगने होते हैं । बड़े परगने कई टप्पों में बंटे होते हैं। यौ०-परगनाधीश । परगनाहाकिम = परगनेकी देखभाल करने- वाला प्रधान अधिकारी । परगनेदार =परगने का अधिकारी। परगनी-मशा स्त्री॰ [ स० प्रग्रहण ] दे० 'परगहनी'।