पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१२६

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परमेश २८३५ परनौ परमेश-सज्ञा पुं॰ [स०] दे० 'परमेश्वर'। जो विदेशी मामलो की देखरेख करता है । परराष्ट्र विभाग = परमेश्वर-सञ्चा पुं० [सं०] १ ससार का कर्ता और परिचालक वह विभाग जो परराष्ट्र सवधी मामलो की देखरेख सगुण ब्रह्म । २ विष्णु । ३ शिव । ४ ब्रह्मा (को०)। ५ इद्र करता है। का नाम (को०)। ६ चक्रवर्ती नरेश (को॰) । पररु-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] नील भृगराज । नीली भंगरैया । परमेश्वरी-सञ्ज्ञा सी० [स० ] दुर्गा या देवी का नाम । परल-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक जगली पेड जिसकी जड और छाल दवा के काम में आती है और लकडी इमारतों में लगती है। परमेष्ठ-सचा पुं० [ स०] चतुर्मुख ब्रह्मा। प्रजापति (शुक्ल यजु०) । परताल। परमेष्ठिनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ परमेष्ठी की शक्ति । देवी। २ श्री । ३, वाग्देवी । ४. ब्राह्मी जडी। परल-सज्ञा पु० [स० प्रलय ] दे० 'प्रलय'। परलय-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० प्रलय ] प्रलय । सृष्टि का नाश वा परमेष्ठी-सज्ञा पुं० [स० परमेष्टिन् ] १, ब्रह्मा, अग्नि, आदि देवता । , प्रत । उ०-पल में परलय होयगी बहुरि करोगे कव्व ?- २ विष्णु । ३ शिव । ४ एक जिन का नाम । ५. शालिग्राम कबीर (शब्द०)। का एक विशेष भेद । ६ विराट् पुरुष । ७ चाक्षुष मनु । ८. गरुड । ए आध्यात्मिक शिक्षक । गुरु (को०) । परला-वि० [ स० पर ( = उघर का. दूसरा ) + ला (प्रत्य॰)] परमेसर -सज्ञा पु० [ स० परमेश्वर ] दे० 'परमेश्वर'। [वि॰ स्त्री० परली ] उस ओर का। दूसरी तरफ का। उरला का उलटा। उ०-आंगन के सामने कमरे के परली परमेसरी -सज्ञा स्त्री॰ [सं० परमेश्वरी ] दे० 'परमेश्वरी' । उ०- ओर बरामदे से झांककर मिसेज शुक्ला ने उत्तर दिया। एइ कविलास इद्र के प्रहरी। की कहूं ते पाई परमेसरी। -अभिशप्त, पृ० २१ । -जायसी पं०, पृ०८२ । मुहा०-परले दरजे का= दे० 'परले सिरे का' । परले सिरे का परमेसुर ---सशा पुं० [स० परमेश्वर] दे० 'परमेश्वर' । उ०-बहुरयो दरजे का । अत्यत । बहुत अधिक । परले पार होना = आनि सिला पर नाख्यो। तब यह सिसु परमेसुर राख्यो। (१) अत तक पहुंचना । बहुत दूर तक जाना । (२) -नद० ग्र०, पु० २५६ । समाप्त होना। परमेस्वर-सञ्ज्ञा पु० [सं० परमेश्वर ] दे० 'परमेश्वर' । उ०-जज्ञ दान अर्बुद अवनि परमेस्वर पावन सुध्रुव । --प० रासो, परलाप-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० प्रलाप ] दे० 'प्रलाप'। उ०-भीखा मन परलाप बडा कहि साँच बजावत गाला की।-भीखा०या०, पृ०१३ । पृ०२८ । परमोद-सञ्ज्ञा पुं० [स० प्रमोद ] दे० 'प्रमोद' । परल-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० प्रलय] दे० 'प्रलय' । उ०-मरजाद छोड़ि परमोध-सचा पु० [सं० प्रबोध ] दे० 'प्रबोध' । सागर चले कहि हमीर परले करन ।-हम्मीर०, पृ० १३ । परमोधना-क्रि० स० [सं० प्रबोधन ] दे० 'प्रबोधना' । उ० - परलोक-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ दूसरा लोक । वह स्थान जो शरीर छोडने सहज धार हरिघ्यान ज्ञान से मन परमोधे ।-पलटू०, पर आत्मा को प्राप्त होता है । जैसे, स्वर्ग, वैकु ठ आदि । पृ०१००। यौ०-परलोकगमन, परलोकप्राप्ति, परलोकयान, परलोकवास = परयंक-सच्चा पु० [ म० पर्यत ] दे० 'पर्यंक' । मृत्यु । मौत । परलोकवासी = मृत । मरा हुआ (आदरार्थ)। परयंत-अव्य० [ स० पर्यन्त ] दे० 'पर्यंत' । उ०-पकड समसेर सग्राम मे पैसिवे, देह परयत कर जुद्ध भाई । -कबीर श०, मुहा०-परलोकगामी होना = मरना । परलोक वनाना = मरने के बाद अच्छा लोक प्राप्त करना । सद्गति होना। परलोक पृ०६८। बिगड़ना = मृत्यु के अनतर अच्छे लोक का न मिलना। परलोक परयस्तापह्न,ति-सज्ञा स्त्री० [स० पर्यस्तापह नुति ] दे० 'पर्यस्ताप सँवारना = जीवन में उस प्रकार के काम करना जिससे मृत्यु ह्न.ति'। के अनतर अच्छे लोकप्राप्ति की सभावना हो । उ-पाइन परयाय-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० पर्याय ] दे० 'पर्याय' (अलकार )। जेहि परलोक संवारा।-मानस, ७।२७ । परलोक सिधारना = उ०-ताहि कहत परयाय हैं भूषन सुकवि विवेक । -भूषण मरना। ग्र०, पृ०५३। २ मृत्यु के उपरात प्रात्मा की दूसरी स्थिति की प्राप्ति । जैसे, परयुग-सज्ञा पुं॰ [ स० ] परवर्ती युग। परवर्ती काल (को॰) । जो ईश्वर और परलोक में विश्वास नहीं करते वे नास्तिक पररमण-सञ्ज्ञा पु० [स०] परकीया स्त्री के साथ रमण करनेवाला। कहलाते हैं। (शब्द ) । जार । उपपति [को॰] । परलोकगमन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] मृत्यु । परराष्ट्र-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ शत्रु का राज्य । २, स्वराष्ट्र के प्रति- परलोकप्राप्ति-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] मृत्यु । रिक्त अन्य राष्ट्र जिसमें मित्र, शत्रु और तटस्थ राष्ट्र प्राते परलौल-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० प्रलय, हि० परलउ] दे० 'प्रलय' । उ०- है । स्वराष्ट्र का उलटा। मा परलो निगराएन्हि जवही । मरे सो ताकर 'परली यौ०-परराष्ट्रमंत्री- शासनविधान में वह सर्वोच्च अधिकारी तबही।--जायसी न (गुप्त), पृ० २२५ ।