पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१४१

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परिच्छेदक २८५० परिणति विलगाना । परिभाषा द्वारा दो वस्तुमों या भावों का अंतर परिजपित -वि० [सं०] ( पार्थना, जप आदि ) जो मंद स्वर से स्पष्ट कर देना। जैसे, सत्यासत्य का परिच्छेद, धर्माधर्म का उच्चरित हो [को०] । परिच्छेद । ५ निर्णय । निश्चय । फैसला। ६. विभाग । परिजप्त-वि० [सं०] १ मुग्घ । मोहित । २ ८० 'परिजपित' । बंटवारा। परिजय्य--सज्ञा पुं॰ [ म०] वह जो चारो ओर जय करने मे नमर्थ परिच्छेदक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ सीमा या इयत्ता निर्धारित करने हो । सव मोर जीत सकनेवाला। वाला। हद मुकर्रर करनेवाला। २ विलगानेवाला। पृथक् परिजल्पित-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ चित्रजल्प का दूसरा भेद । दे० करनेवाला। ३. सीमा। हद । ४ परिमाण, गिनती, नाप चित्रजल्प' । २. अपने मालिक के दुगुणो का कथन करते या तोल। हुए सेवक द्वारा भव्यक्त रूप में अपने कौशल, उत्कर्प पादि परिच्छेदकर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] एक प्रकार की समाधि । की अभिव्यक्ति (को०)। परिच्छेदन-पशा पुं० [ स०] १ विभाजन । बंटवारा। २ पुस्तक परिजा-सञ्चा स्त्री॰ [मं०] प्रादि जन्मभूमि । उद्गम । निकास । का अध्याय । ३ अवधारण। विवेचन [को०] । परिजात-वि० [म०] १ उत्पन्न । जन्मा हुमा । २ पूर्ण विकसित । परिच्छेदातीत-वि० [सं०] जिसका परिच्छेद न हो सके । जिसकी परिज्ञप्ति-ना स्त्री॰ [स०] १. वातचीत । कथोपकथन । २ सीमा, विभाग, इयत्ता, अवधि आदि की परिभाषा या पहचान या पहचानना। निर्धारण न हो सके। परिज्ञा-संज्ञा स्त्री० [सं०] १ ज्ञान । २ सूक्ष्म शान । निश्चयात्मक परिच्छेध-वि० [ स०] १ गिनने, नापने या तोलने योग्य । परि ज्ञान । स शयरहित ज्ञान । मेय । २ अलग करने योग्य । विलगाने योग्य । विभाज्य । परिज्ञात-वि० [सं०] १. जाना हुआ। विशेष या सम्यक् रूप से परिच्युत-वि० [ स०] १ सब भांति गिरा हुमा । सर्वथा भ्रष्ट जाना हुमा । २ निश्चित रूप से जाना हुमा। या पतित । ३ जाति या पक्ति से बहिष्कृत । विरादरी से परिज्ञाता-वि०, सज्ञा पुं॰ [म० परिज्ञातृ] अच्छी तरह जानने बुझने निकाला हुप्रा। और पहचाननेवाला (को०] । परिच्युति-यज्ञा स्रो॰ [ स०] गिरना । पतन । स्खलन । भ्रंश । परिज्ञान-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ किसी वस्तु का भली भांति ज्ञान । परिछन-मज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'परछन'। उ०-( क ) कवन पूर्ण ज्ञान । सम्यक ज्ञान । २ निश्चयात्मक ज्ञान । ऐसा थार सोह वर पानी। परिछन चली हरहि हरपानी। ज्ञान जिसपर पूरा भरोसा हो । उ०-तुम्हे इतनी भी मानस, १९६ । ( ख ) को जान केहि प्रान'द बस सव ब्रह्म समझ या परिज्ञान नहीं। -प्रमघन०, भा॰ २, पृ०४६ । वर परिछन चली।-मानस, ११३१८ । ३ सूक्ष्म ज्ञान । भेद अथवा मतर का ज्ञान । किसी वस्तु के परिछना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'परछना' उ०-वधुन्ह सहित सूक्ष्म से सूक्ष्म गुण दोषो का ज्ञान । सुत परिछि सव चली लवाइ निकेत ।-मानस, १२३४६ । परिज्या-सशा पुं० [स० परिज्वन् ] १ चद्रमा । २ अग्नि । ३ सेवक । ४ यश करनेवाला । ५ इद्र । परिछनारे-क्रि० स० [मं० परीक्षा, हिं० परिच्छा, परीछा] परीक्षा अथवा लेना । परखना। जाँचना। उ०-कहिए अब लो ठहरयो परिठनाल-वि० [सं० परिस्थिति, प्रा० परिव्यि, कौन । सोई माग्यो तुव साम्हे सो गयो परिधधौ जौन ।- स० प्रतिष्ठित, प्रा. परिहिन ] पूर्णत स्थित या स्थापित भारतेंदु न०, भा॰ २, पृ० २६८ । होना । उ०-भुमुहाँ ऊपर सोहली परिठिउ जाणि क चग । ढोला एही माझवी नव नेही नव रग। -डोला०, २०४६५ । परिछाही-प्रज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] दे॰ 'परछाई' । उ०-मन थिर करहु देव डर नाहीं। भरतहि जान राम परियाही।- परिडीन-देश० पुं० [सं०] किसी पक्षी की वृत्ताकार गति मे उडान । तुलमी ( शब्द०)। किसी पक्षी का चक्कर काटते हुए उडना। परिछिन्न-वि० [स० परिच्छिन्न ] दे॰ 'परिच्छिन्न' । परिणत-वि० [सं०] [स्त्री० परिणति] १ बिलकुल या बहुत मुका परिजक-सज्ञा पुं॰ [ मं० पर्य] दे० 'पयंक' । हुप्रा । प्रति नम्र या नत । २ जिसका परिणाम हुआ हो। जो बदलकर और का और हो गया हो। बदला हुमा। परिजटन-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० परिश्रटन>पर्यटन ] दे॰ 'पर्यटन' । विकारयुक्त। रूपातरित। अवस्थातरित । जैसे, दूध का परिजन-सज्ञा पुं० [सं०] १ परिवार । आश्रित या पोष्य वर्ग। दही के रूप में परिणत होना। ३ पका हुआ। पक्का । वे लोग जो अपने भरण पोषण के लिये किसी एक व्यक्ति जैसे, परिणत फल । ४ पचा हुा। रसादि में परिवर्तित पर अवलवित हों, जैसे, स्त्री, पुत्र, सेवक प्रादि । २ सदा (भोजन) । ५ प्रौढ़ । पुष्ट । बढ़ा हुआ। पक्का । कच्चा का साथ रहनेवाले सेवक । अनुचरवर्ग। उलटा (बुद्धि या वय) । ६ समाप्त । अवसित (को०)। परिजनता-सज्ञा स्त्री० [स०] १ परिजन होने का भाव । २. परिणति-सशा बी० [सं०] १. मुकाव । नीचे की ओर मुकना । अवनति । २ वदलना । रूपांतर होना। अवस्थातर प्राप्ति । परिजन्मा-सज्ञा पुं० [सं० परिजन्मन् ] १ चद्रमा । २ अग्नि । परिणयन । विकृति । ३ पकना या पचना। परिपाक । ४. अधीनता।