पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१४३

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परितलु परिणामक २८५२ ५ एक अर्थालकार जिसमें उपमेय के कार्य का उपमान द्वारा स्थिर रहे पर रूप, प्राकार प्रादि बदलता रहे। जो एकरस किया जाना अथवा अप्रकृत (उपमान) का प्रकृत (उपमेय) न होकर भी अविनाशी हो। से एकरूप होकर कोई कार्य करना कहा जाता है। जैसे, विशेष-सास्य दर्शन के अनुसार प्रकृति परिणामिनित्य है और 'कर कमलन धनु सायक फेरत' अथवा 'हरे हरे पद कमल पुरुष अथवा प्रात्मा अपरिणामिनित्य । तें फूलन बीनति बाल । इन उदाहरणो में 'धनुसायक फेरना' परिणामी -वि० [ स० परिणामिन् ] [ वि० सी० परिणामिनी ] १ और 'फूल चुनना' वस्तुत कर के कार्य हैं, पर कवि ने उसके जो वरावर बदलता रहे। जिमका बदलने का स्वभाव हो। उपमान कमल द्वारा इनका किया जाना कहा है। रूपातरित होने या रहनेवाला । परिवर्तनधर्मी। २. जो विशेष रूपक अलकार से इसमें यह भेद है कि इसके उपमान परिवर्तन स्वीकार करे । बदलनेवाला। से कोई विशेष कार्य कराकर अर्थ मे चमत्कार पैदा किया परिणाय-सरा पुं० [ म०] १ किनी वस्तु को जिस दिशा में चाहे जाता है परतु रूपक के उपमान से कोई कार्य कराने की चलाना । सब पोर चलाना। २ चौसर, शतरज आदि के ओर लक्ष्य ही नहीं होता। केवल उपमेय पर उसका आरोप गोटों को चलाना । ३ विवाह । व्याह । भर कर दिया जाता है। 'कर कमलन धनुसायक फेरत' 'अपने करकज लिखी यह पाती,' 'मुख शशि हरत अंधार' परिणायफ-सज्ञा पुं॰ [ म०] १ नेता । चलानेवाला । पथप्रदर्शक । २ सेनापति । ३ स्वामी। पति । भर्ता । श्रादि परिणाम के उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है । ६. पकने या पचने का भाव । पाक । ७ बाढ । विकास । परिणयकरत्न-ज्ञा पुं० [ स०] बौद्ध चक्रवर्ती । राजाप्रो के सप्तवन वृद्धि । परिपुष्टि । ८ वृद्ध होना । बूढ़ा होना । ६ वीतना । अथवा सात कोपो में से एक । समाप्त होना । अवसान । १० नतीजा। फल । परिणाह-सज्ञा पुं० [सं०] १ विस्तार । फैलाव । २ विशालता । परिणामफ-वि० [म०] परिणाम लानेवाला । रूपातर या अवस्थांतर चौहाई । ३ लवी सांस । दीर्घ श्वास । लानेवाला [को०] । परिणाहवान्-त्रि० [ म० परिणाहवत् ] विस्तारयुक्त। फैला हुप्रा । परिणामदर्शी-वि० [ स० परिणामदर्शिन् ] जिसे काम करने के प्रशस्त । पहले उसका नतीजा मालूम हो जाय । फल को सोचकर कार्य परिणाही-वि० [म० परिणाहिन् ] विस्तारयुक्त । फैला हुआ । करनेवाला । सोच समझकर कार्य करनेवाला। भविष्य या विस्तृत । होनहार को जान सकनेवाला सूक्ष्मदर्शी । दूरदर्शी । परिणिंसक-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ चूमनेवाला। वनकारी। २ परिणामदृष्टि-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] किसी कार्य के परिणाम को जान खानेवाला । भक्षणकारी। लेने की शक्ति । आगामी फल की ओर दृष्टि । परिणिसा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १. चूमना । चु वन । २ खाना । भक्षण । परिणामन-सझा पुं० [म०] १ परिणत करना । पूर्ण पुष्ट तथा परिणीत-वि० [स०] १. विवाहित । जिसका ब्याह हो चुका हो । वर्षित करना । २ परिणाम को प्राप्त कराना। ३ जाति या २ समाप्त । सपन्नकृत । पूर्ण । सघ का उद्दिष्ट वस्तु को अपने काम मे लाना (बौद्ध)। परिणीतरत्न-सञ्ज्ञा पुं० [ मं०] दे० 'परिणायकरत्न' । परिणामपथ्य-वि० [स०] अच्छे परिणामवाला । उत्तम फल- परिणीता-वि० [सं० ] विवाहिता । विवाह की हुई (ली)। दायक [को॰] । परिणीता-सशा जी० विवाहिता स्त्री । पत्नी । [को०] । परिणामवाद-सज्ञा पुं० [म०] वह सिद्धात जिसमें जगत् की उत्पत्ति परिणेतव्या-वि० पी० [सं०] परिणय के योग्य (फुमारी)। विवाह नाश प्रादि नित्य परिणाम के रूप में माने जाते हैं। के योग्य [को०] । (साख्य मत) परिणेता-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० परिणेतृ ] स्वामी । पति । भर्ता । परिणामवादी-वि० [सं० परिणामवादिन् ] परिणामवाद को परिणेष-वि० [सं०] चारो ओर घुमाया जानेवाला [को॰] । माननेवाला । सास्य मतानुयायी [को०] । परिणेया-वि० [मं०] ब्याहने योग्य (स्रो)। पत्नी या भार्या वनाने परिणामशूल-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक रोग जिसमें भोजन पचने के समय के उपयुक्त। पेट में पीडा होती है। परितः-प्रव्य० [सं० परितस् ] १ सब ओर। चारो ओर । २ परिणामिक-वि० [सं०] सुपाच्य । सरलता से पच जानेवाला (को॰] । सब प्रकार । सपूर्ण रूप से । सर्वतोभाव से। परिणामित्व-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] बदलने का स्वभाव या धर्म । परिवर्तन- परिवच्छ पुर–तज्ञा पुं० [सं० प्रत्यक्ष ." 'प्रत्यक्ष'। परितच्छर -क्रि० वि० सामने से । देखते देखते । परिणामिनित्य--वि० [स०] जो नित्य हो, पर बदलता रहे। जो परितत्तु-वि॰ [ मै0 ] सब कही फैला हुमा । सर्वत्र व्याप्त । सर्वतो- परिणामशील होकर नित्य या अविनाशी हो। जिसकी सत्ता व्याप्त ( अथर्ववेद )। 1 शीलता।