3 परिवाधा २५८ परिभाषा परिबाधा--मज्ञा स्त्री० [स०] १ पीडा। कष्ट । बाधा। २. श्रम । परिभाव-सज्ञा पुं० [ स०] १. परिभव । अनादर । तिरस्कार । श्राति । मिहनत । अपमान । २ ( नाटक मे ) कोई आश्चर्यजनक दृश्य देखकर परिबृहण-सज्ञा पुं० [स०] [ वि० परिवृ हित ] १ समृद्धि उन्नति । फुतूहलपूर्ण वातें कहना। बढ़ती। २. बढना । अभिवर्घन । ३. वह प्रथ प्रथवा शास्त्र परिभावन-मश पुं० [ मं०] [वि० परिभावित ] १. मिलाप । जो किसी अन्य ग्रथ या शास्त्र के विषय की पूर्ति या पुष्टि मिलन । सयोग । २ चिता । फिक । विचारणा । करता हो। किसी ग्रथ के अंगस्वरुप अन्य प्रप। जैसे परिभावना-सशा ग्री० [सं०] १ चिता। सोच । फिक्र । २ ब्राह्मण प्रादि अथ वेद के परिवृहण हैं। साहित्य में वह वाक्य या पद जिससे कुतूहल या अतिशय परिबृहित -वि॰ [स०] १ समृद्ध । उन्नत । २ किसी से जुडा या उत्सुकता सूचित अथवा उत्पन्न हो। मिला हुमा । युक्त। अगीभूत । बढ़ाया हुप्रा । विशेष-नाटक में ऐसे वाक्य जितने अधिक हों उतना ही अच्छा मभिषित। समझा जाता है। परिबृहित -सञ्ज्ञा पुं० हाथी की चिग्घाउ । हाथी का चिल्लाना [को०] । परिभावित -वि० [सं०] १ चितित । विचारित । २ सयुक्त । परिवृत्ति-तज्ञा पुं० [सं० परिवृचि] एक प्रलकार । दे० 'परि ३ परिव्याप्त [को०] । वृत्ति' । उ०-घाटि वाढ़ि दै बात को जहाँ पलिटवो होय । परिभावो'-० [सं० परिभाविनी ] परिभावकारी। तिरस्कार तहाँ कहत परिवृत्ति हैं कवि कोविद सव कोय ।-मति० या अपमान करनेवाला। ग्र०, पृ० ४१६ । परिभावी-शा पु० वह जो तिरस्कार या अपमान करे । तिरस्कार परिबेख-सञ्ज्ञा पुं० [ स० परिवेप] दे० 'परिवेष' । उ०-तन या अपमान करनेवाला। नील सारी मैं किनारी च दमुख परिवेख । सिंदूर सिर दोउ परिभावुक-विद सं०] तिरस्कार करनेवाला । अनादर या अवज्ञा नैन काजर पान की मुख रेख ।-भारतेंदु प्र०, भा० २, करनेवाला। पृ० १२०। परिभाषफ-सा पुं० [१०] निंदक । वदगोई करनेवाला। निंदा परिबोध-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] ज्ञान । द्वारा किसी का अपमान करनेवाला । परिबोधन-संशा पुं० [स०] [वि० परियोधनीय ] १ दर की परिभापण -सशा पुं० [सं०] १ निंदा करते हुए उलाहना देना। धमकी देकर या कुफलभोग का भय दिखा कर कोई विशेष निदा के सहित उपालम देना। किसी को दोप देते या कार्य करने से रोकना । चिताना । २ ऐसी धमकी या भय लानत मलामत करते हुए उसके कार्य पर असतोप प्रकट प्रदर्शन । चेतावनी। फरना । २. ऐसा उलाहना जिसके साथ निदा भी हो। निंदा परिबोधना-सज्ञा स्त्री० [स० ] दे० 'परिवोधन' । सहित उपालभ । लानत म मत । फटकार । परिभंग-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिभान ] खड खड करना। टुकड़े टुकडे विशेष-मनुस्मृति के अनुसार गभिणी, प्रापद्ग्रस्त, वृद्ध और करना [को०] । वालक को और किसी प्रकार का दंड न देकर केवल परि- परिभक्ष-वि० [सं०] दूसरो का माल खानेवाला । भापण का दड देना चाहिए । परिभक्षण-प्रज्ञा पुं० [सं०] [वि० परिभक्षित ] बिलकुल खा ३ बोलना चालना या वातचीत करना। भाषण । पालाप । डालना । खुब खा जाना । सफाचट कर देना। ४.नियम । दस्तुर । कायदा । परिभक्षा-प्रज्ञा स्त्री० [सं०] पापस्तव सूत्र के अनुसार एक विशेष परिभाषा-ससा त्री० [सं०] १. परिष्कृत भाषण । स्पष्ट कथन । विधान । सशयरहित कथन या वात | २ पदार्थ-विवेचना-युक्त अर्थ- परिभक्षित-वि० [सं०] पूर्ण रूप से खाया हुआ । कथन । किसी शब्द का इस प्रकार प्रर्य करना जिसमे उसकी परिभर्त्सन-सज्ञा पुं॰ [ स०] डाँटना फटकारना । धमकाना [को०] । विशेपता और व्याप्ति पूर्ण रीति से निश्चित हो जाय । ऐसा अर्थनिरूपण जिसमें किसी ग्रथकार या वक्ता द्वारा प्रयुक्त परिमव-शा पुं० [ स०] १ अनादर । तिरस्कार । अपमान । किसी विशेष शब्द या वाक्य का ठीक ठीक लक्ष्य प्रकट हो हतक । २ हार । पराजय (को॰) । जाय । किसी शब्द के वाक्य का इस रीति से वर्णन जिसमें परिमवन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [वि० परिभावनीय ] मनादर या उसके समझने में किसी प्रकार का भ्रम या सदेह न हो सके। तिरस्कार करना । अपमान करना । हतक या तौहीन करना। लक्षण । तारीफ। जैसे,-तुम उदारता उदारता तो बीस परिभवनीय-वि० [स०] १ तिरस्करणीय । अनादर योग्य । २ वार कह गए, पर जबतक तुम अपनी उदारता की परिभाषा पराभव योग्य [को०। न कर दो मैं उससे कुछ भी नहीं समझ सकता। परिभवषद--सचा पुं० [सं० ] उपेक्षरणीय पदार्थ । (को०] । विशेष-परिभाषा सक्षिप्त और अतिव्याप्ति, भव्याप्ति से रहित परिभवविधि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] तिरस्कार । उपेक्षा [फो०] । होनी चाहिए। जिस शब्द को परिभाषा हो वह उसमें परिभवी-वि० [स० परिभविन् ] अपमानकारी । तिरस्कार न माना चाहिए। जिस परिभाषा मे ये दोष हों वह शुद्ध करनेवाला। परिभाषा नहीं होगी बल्कि दुष्ट परिभाषा कहलाएगी।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१४९
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