है परिवेत्ता २८६६ परिशिष्ट पृ० ३१२ । (ख) एक परिवेण से दूसरे परिवेण जाकर पनाह की दीवार । परकोटा। कोट | ६ प्रकाश या किरणों पूछने लगा। -वै० न०, पृ० १००। का महल। परिवेत्ता-सज्ञा पु० [ स० परिवेतृ ] वह व्यक्ति जो बड़े भाई से परिवेषक-संज्ञा पुं० [सं०] [स्त्री० परिवेपिका ] परसनेवाला। पहले अपना विवाह कर ले या अग्निहोत्र से से । परिवेषण करनेवाला। विशेष-बड़े भाई के अविवाहित रहते छोटे का विवाह होना परिवेषण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [ '२० पिरवेप्टव्य, परिवेप्य ] १. धर्मशास्त्रो से निषिद्ध और निंदित है परतु नीचे लिखी हुई (खाना) परसना । परोसना । २ घेरा । परिधि । वेष्टन । अवस्थाएं अपवाद हैं। इनमे बड़े भाई से पहले विवाह करने ३. सूर्य या चद्र आदि के चारो ओर का महल । वाले छोटे भाई को दोष नहीं लगता । बड़ा भाई देशातर परिवेष्टन-ज्ञा पुं० [स०] [वि० परिवेष्टित ] १ चारो ओर से या परदेश में हो (शास्त्रो ने देशांतर उस देश को माना है घेरना या वेष्टन करना । २ छिपाने, ढकने या लपेटनेवाली जहाँ कोई और भाषा बोली जाती हो, जहाँ जाने के लिये चीज । पाच्छादन । प्रावरण। ३ परिधि । घेरा । दायरा । नदी या पहाड लांघना पड़े, जहाँ का पवाद दस दिन के पहले न सुन सकें अथवा जो साठ, चालीस या तीस योजन परिवेष्टा सञ्चा ५० [सं० परिवेष्ट ] परसनेवाला । परिवेषक । दूर हो ), नपुसक हो, एक ही प्रडकोष रखता हो, वेश्या- परिवेष्य-वि० [सं० ] परिवेषण के योग्य । परसने लायक [को॰] । सक्त हो, (शास्त्रपरिभाषा के अनुसार ) शूद्रतुल्य या परिव्यक्त-वि० [सं०] खूब स्पष्ट या प्रकट । सम्यक् रूप से प्रकाशित । पतित हो, अति रोगी हो, जह, गूगा, अधा, बहरा, कुबडा, परिव्यय-सया पुं० [सं०] खर्च । सपूर्ण व्यय । वोना या कोढ़ी हो, अति वृद्ध हो गया हो, उसने ऐसी स्त्री परिव्याध-सज्ञा पु० [सं०] १ चारो भोर से वेधने या छेदनेवाला । से सबध कर लिया हो जो शास्त्रनिषिद्ध हो, जो शास्त्र २ जलवेत । ३ कनेर । द्रुमोत्पल । ४. एक ऋषि की विधियो को न मानता हो, अपने पिता का पोरस पुत्र नाम । न हो, चोर हो या विवाह करना ही न चाहता हो पौर छोटे भाई को विवाह करने की उसने अनुमति दे दी हो । बड़े परिव्याप्त-वि० [सं०] छाया हुमा । चतुर्दिक फैला हुमा । भाई के देशांतरस्थ होने की दशा में तीन वर्ष, मथवा विशेष परिव्रज्या-पज्ञा सी० [सं०] १ इधर उधर भ्रमण । २. तपस्या। अवस्थानों मे कुछ अधिक वर्षों तक प्रतीक्षा करने की शास्लो ३ भिक्षुक की भांति जीवन विताना। लोहे की चूडी आदि की आशा है, पर कोढ़ी, पतित, आदि होने की दशा में नहीं। धारण करना और सदा भ्रमण करते रहना। भिक्षुक वृत्ति से जीवन निर्वाह । परिवेद-सज्ञा पुं० [स०] पूरा ज्ञान । सम्यक् ज्ञान । परिज्ञान । परिवेदन-सज्ञा पु० [ स०] १ पूरा ज्ञान । सम्यक् ज्ञान । परिज्ञान । परिवाज-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह सन्यासी जो सदा भ्रमण करता २ विचरण । ३ लाभ । प्राप्ति । ४ विद्यमानता । मौजूदगी। रहे । २ सन्यासी । यती । परमहस । ५ वादविवाद वहस । ६ भारी दु ख या कष्ट । ७ बड़े भाई परिव्राजक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] दे० 'परिव्राज' । के पहले छोटे भाई का ब्याह होना । ८ पग्निहात्र के लिये परिव्राजी-सशा मी० [सं०] गोरखमुडी । मुडी । अग्नि की स्थापना । अग्न्याधान । परिबाट-सज्ञा पुं० [सं० परिवाज ] परिव्राज । परिव्राजक । परिवेदना-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ तीक्ष्णबुद्धिता । विचक्षणता । परिशकी-वि० [सं० परिशकिन् ] पायका या भय करनेवाला । विदग्धता । चतुराई । २. भारी दुख या पीडा । प्राशकी [को॰] । परिवेदनीया-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] परिवेत्ता की स्त्री । परिवे- परिशाश्वत-वि० [सं०] सर्वदा एक ही रूप का । सदा एक समान दिनी [को०]। रहनेवाला (को॰] । परिवेदिनी-सञ्ज्ञा स्त्री [ म० ] उस मनुष्य की स्त्री जिसने बड़े भाई परिशिष्ट'–वि० [सं०] बचा हुा । छूटा हुआ । भवशिष्ट । से पहले अपना व्याह कर लिया हो। परिवेत्ता की स्त्री। समाप्त। परिवेश-सञ्ज्ञा पुं० [स०] वेष्टन । परिधि । घेरा । उ०-परिवेशो परिशिष्ट-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ किसी पुस्तक या लेख का वह भाग के सतत बदलते मूल्यो पर ही, अवलबित रहते अपने हैं मान जिसमे वे बातें दी गई हों जो किसी कारण यथास्थान नहीं न मौलिक। -रजत०, १०३१ । दे० 'परिवेष' । जा सकी हों और जिनके पुस्तक मे न माने से वह अपूर्ण रह परिवेष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ परसना या परोसना । परिवेषण । जाती हो । पुस्तक या लेख का वह अश जिसमे ऐसी बातें २ घेरा । परिधि । उ०-रूप तिलक, कच कुटिल; किरनि लिखी गई हो जो यथास्थान देने से छूट गई हो और जिनके छवि कुडल कल विस्तारु । पत्रावलि परिषेष सुमन सरि देने से पुस्तक के विषय की पूर्ति होती हो। जैसे, छांदोग्य- मिल्यो मनहु उद दारु । —सूर०, १० । १७६६ । ३. हलकी परिशिष्ट, गृह्यपरिशिष्ट प्रादि । उ०-कुछ अन्य निवध भी सफेद वदली का वह घेरा जो कभी चंद्रमा या सूर्य के इर्द हैं जो कल्पसूत्रो के सहायक अथवा पूरक कहे जाते हैं। इन गिर्द बन जाता है। मडल । ४ कोई ऐसी वस्तु को चारो निबधों को 'परिशिष्ट' कहते हैं।-आधुनिक०, पृ० ६७ । २ मोर से घेरकर किसी वस्तु की रक्षा करती हो। ५. शहर किसी पुस्तक के अत में जोड़ा हुमा वह लेख जिसमे ऐसे भक,
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१५७
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