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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१५८

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परिशीलन २५६७ परिष्कंद व्याख्याएँ, कथाएँ, हवाले अथवा अन्य कोई वात दी गई हो परिश्रय-सचा पुं० [स०] १.आश्रय । रक्षा का स्थान । पनाह की जिससे पुस्तक का विषय समझने में सहायता मिलती हो जगह । २ सभा । परिपद् । किसी पुस्तक का वह अतिरिक्त अश जिसमें कुछ ऐसी बातें परिश्रयण-सज्ञा पुं० [सं०] घेरना। परिवेष्टित करना [को०] | दी गई हो जिनसे उसकी उपयोगिता या महत्व बढ़ता हो । परिश्रांत-वि० [सं० परिश्रान्त] थका हुआ । श्रमित । क्लातियुक्त । जमीमा । थका मादा। परिशीलन-सशा पुं० [स०] [वि० परिशीलित] १ विषय को खूब परिश्रांति-स्त्री० मज्ञा [सं० परिश्रान्ति] थकावट । क्लाति । मांदगी । सोचते हुए पढना। सब वातो या अगो को सोच समझकर पढ़ना। मननपूर्वक अध्ययन । २ स्पर्श । लग जाना या परिश्रित्-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ कपडे की दीवार या चिक प्रादि छू जाना। का घेरा। कनात। २ यज्ञ में काम आनेवाला पत्थर का परिशीलित-वि० [सं०] परिशीलन किया हुमा । जिसका परिशीलन एक विशिष्ट टुकडा। किया गया हो [को०)। परिश्रित'-वि० [स०] १ आवेष्टित । घिरा हुआ । २ प्राश्रय- परिशुद्ध-वि० [स०] १. पूर्णत शुद्ध । विशुद्ध । निर्मल । निर्दोष । प्राप्त । माश्रित (को०। उ०-इस प्रकार अपने जीवन को परिशुद्ध बनाकर उसने परिश्रित-सज्ञा पुं०१ आश्रय । पनाह । २ आवेष्टित करना । जनता के जीवन मे से हिंसा के दोष को मिटाने का निश्चय चारो भोर से घेरना [फो०] । किया। -सपूर्णा० अभि० ग्र०, पृ० २५ । २ मुक्त। पूटा परिश्रुत-वि० [सं०] जिसके विषय मे यथेष्ट सुना या जाना जा हुप्रा । वरी किया हुआ (को०) । ३ जो चुका दिया गया हो। चुकता किया हुआ (को०)। चुका हो । विश्रुत । विख्यात । प्रसिद्ध । मशहूर । परिशुद्धि-सशा स्त्री॰ [ स०] १ पूर्ण शुद्धि । सम्यक् शुद्धि । २ परिश्लेष-सज्ञा पु० [सं०] आलिंगन । गले मिलना । छुटकारा । रिहाई। परिषत् -सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'परिषद्' । परिशुष्क'-वि० [म०] १. बिलकुल सूखा हुआ । २ अत्यंत रसहीन । परिषत्व-सञ्ज्ञा पु० [सं०] परिषद् का भाव या धर्म । परिशष्क-सञ्चा पु० तला हुआ मास । परिषद्-सञ्ज्ञा स्त्री [ स०] १ प्राचीन काल की विद्वान् ब्राह्मणों परिशून्य-वि० [सं०] एकदम शून्य । रिक्त [को॰] । की वह सभा जिसे राजा समय समय पर राजनीति, धर्मशास्त्र मादि के किसी विषय पर व्यवस्था देने के लिये परिश्रुत-सशा पु० [स०] जोश । उत्साह । उमग [को०] । आवाहित किया करता था और जिसका निर्णय सर्वमान्य परिशेष'-वि० [स०] वाकी बचा हुआ । अवशिष्ट । होता था। २. सभा। मजलिस । ३ समूह । समाज । भीड । परिशेषर-सशा पुं० १. जो कुछ बच रहा हो। बच रहनेवाला। २. ४ विद्याप्राप्ति का केंद्र । परिशिष्ट । ३ समाप्ति । प्रत । उ०-वृहदारण्यक उपनिषद् के परिषदों का उल्लेख है जो विद्यापीठ थे और जिनमें बहुत परिशेषण-सज्ञा पु० [ स० ] वह जो बाकी वच रहा हो। से छात्र इकट्ठे होते थे।-हिंदु० सभ्यता, पृ० १३१ । परिशोध-सज्ञा पु० [सं०] १ पूर्ण शुद्धि । पूरी सफाई। २ ऋण परिषद-सबा पुं० [सं०] १ सवारी या जुलूस में चलनेवाले वे मन- की बेबाकी । चुकता । ऋणशुद्धि । चर जो स्वामी को घेरकर चलते हैं। पारिषद् । २. सदस्य परिशोधन-सम्रा पुं० [ स०] [वि० परिशुद्ध, परिशोधनीय, परि- सभासद । ३ मुसाहब । दरवारी । शोधित ] १ पूरी तरह साफ या शुद्ध करना। पूर्ण रीति से शुद्धि करना। भग प्रत्यग की सफाई करना। सर्वतोभाव से परिषद्य-सना ० [सं०] १ सभासद । सदस्य । २ दशक । प्रेक्षक । शोघन । २ ऋण का दाम दे डालना। कर्ज़ की वेबकी। परिषद्वल-सज्ञा पुं० [सं०] सभासद । सदस्य । परिपद । चुकता। परिषिक्त-वि० [स०] १ जो सीचा गया हो। सिंचित । २ जिसपर परिशोभमान-वि० [स० परि+शोभायमान ] चारो ओर से सुशो छिड़काव किया गया हो। भित होनेवाला । ०-पुष्पो से परिशोभमान बहुश जो वृक्ष परिषीवण-मञ्चा पु० [सं०] १ गोठ देना । २ सीना । प्रकस्थ थे, वे उद्घोषित थे सदर्प करते उत्फुल्लता मेरु की।- परिषेक-सझा पुं० [म० ] १ सिंचाई । तर करना । २ छिडकाव । प्रिय०, पृ०६८। ३ स्नान । परिशोप-सज्ञा पुं० [स०] शुष्क हो जाना। सृखने की क्रिया या भाव [को॰] । परिपेचक-१० [स०] १ सींचनेवाला । २. छिडकनेवाला । परिश्रम-सज्ञा पुं० [ स०] १ उद्यम । भायास । श्रम । क्लेश । परिपेचन-सज्ञा पुं० [सं०] [ वि० परिपिप्त ] १ तर करना । मेहनत । मशक्कत । २ थकावट । धाति । मौदगी। सौंपना । २ छिडकना। परिश्रमी-वि० [स० परिभ्रमिन् ] जो बहुत श्रम करे । उद्यमी । परिष्कंद-मुज्ञा पु० [सं० परिष्कन्द ] १ वह सतति जिसको उमके श्रमशील । मेहनती। माता पिता के अतिरिक्त किसी और ने पाला पोसा हो।