पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१५९

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परिष्करण २८६८ परिसर परपोषित सतति । २. सेवक । नौकर (फो०) । ३ पाश्व परिष्वक्त-वि० [सं०] जिनका प्रालिंगन किया गया हो। रक्षक (को०)। प्रालिगित । परिष्करण -वि० [सं०] परपोपित । जो दूसरे के द्वारा पालित परिसख्या-राश बी० [सं० परिमट एया] १ गणना । गिनती। २ पोषित हुआ हो [को॰] । एक अर्थालवार जिसमे पूछी या विना पूठी हुई बात उमी के परिष्करण-सञ्ज्ञा पुं० दे० 'परिष्कद-१। सदृश दूसरी बात को व्यग्य या पाच्य गे यजित करने के परिष्कन्न-वि०, सञ्चा पुं० [सं०] दे० 'परिष्करण' । अभिप्राय से यही जाय । यह काही हुई बात और प्रमाणो से सिद्ध विम्यात होती है। परिष्कर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] सजावट । शृगार (को०] । विशेप-परिसरूपा अलकार दो प्रकार का गोता है-प्रए- पूर्वक परिष्करण-सज्ञा पु० [पुं० ] सस्कार । परिष्कार । शुद्धि [को०] ! और बिना प्रश्न या । उ०-(7) मेघ यहा? तट परिष्कार-सज्ञा पुं० [सं०] १ सस्कार । शुद्धि । सफाई । २. सुरतरित, पहा ध्येय ? हरिपार। क न चित कह धर्म नित स्वच्छता। निर्मलता। ३ अलकार । प्राभूपण। गहना । चित तजि मकल विषाद । (पश्नपूर्वक) । उसमें 'सेव्य क्या जेवर । ४ शोभा । ५ सजावट । बनाव । सिंगार।। है' ? प्रादि प्रश्नो के जो उत्तर दिए गए हैं उनमे व्यग्य से सयम (वौद्ध दर्शन)। ७ भोजनादि पकाना। सिद्ध करना 'सी प्रादि सेव्य नहीं' यह बात भी मूचित होती है । (ख) (को०)। ८ उपकरण । सामान (को०)। इतनोई स्वारथ बडो लहि नरतनु जग माहिं । भक्ति अनन्य परिष्कारण-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ वह जो पाला पोसा गया हो। २. गोविंद पद लखहि चगचर ताहिं । दत्तक पुत्र। ३ मीमांसा दर्शन मे यह विधान जिगसे विहित के अतिरिक्त परिष्कृत-वि० [स०] [वि० सी० परिष्कृता] १ साफ किया हुआ। अन्य का निषेध हो। शुद्ध किया हुआ।२ मांजा या घोया हुआ। ३ संवारा या परिसख्यात-पि० [सं० परिसर रयात ] १ जिमको परिसम्या सजाया हुमा । ४ सिद्ध किया हुआ। ( भोजन ) स्वादिष्ट अर्थात् गणना हुई हो। २ परिसग्या के योग्य । उल्लेख के बनाया हुआ (को०)। योग्य | गिनती फरने लायक [को०] | परिष्कृता-सञ्ज्ञा स्त्री० [०] वह भूमि जो यज्ञ के लिये शुद्ध की परिसख्यान-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिसए रयान ] १ गिनती । गणना । गई हो [को॰] । परिसस्या । २ विशेष वस्तु का निर्देश । ३ ठीक अनुमान । परिष्कृति-सञ्चा सी० [सं०] परिष्कार (को॰] । सही निर्णय [को०] । परिष्क्रिया-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ शुद्ध करना । शोधन । २ मांजना। परिसंचर-सा पुं० [ मे० परिसचर ] सृष्टि के प्रलय का काल । धोना । ३. संवारना । सजाना। परिसचित-वि० [सं० परिसञ्चित ] एकल रिया हुमा । जिसका परिष्टवन-सा पुं० [सं०] भली भांति प्रशंसा करना। खूब तारीफ सचय किया गया हो (को०)। करना । सम्यक् प्रकार से स्तुति करना। परिसंतान-सफा पुं० [सं० परिसन्तान ] तार । तत्री। परिष्टोम–सञ्चा पुं० [सं०] १ एक प्रकार का स्तुतियुक्त सामगान । २ वह कपडा जिसे हाथी आदि की पीठ पर शोभा के लिये परिसवाद-सक्षा पुं० [स०] विचार विमर्श । प्रश्नोत्तर । डाल देते हैं। मूल । परिस्तोम। ३ आच्छादन । प्रावरण परिसभ्य-सज्ञा पुं० [सं०] सभासद । सदस्य । (को०) । ४ उपधान, गद्दा प्रादि (को०)। परिसमत-सज्ञा पुं० [सं० परिसमन्त ] किनी वृक्ष के चारो ओर की सीमा । परिष्ठल-सज्ञा पुं० [०] चारो ओर फी भूमि । पार्श्वस्थ भूमि (को०] । परिसमापन--सज्ञा पुं० [स०] किसी कार्य या वस्तु का पूर्णत समाप्त परिष्पद-सज्ञा पुं० [सं० परिस्पन्द ] स्पदन । हिलना हुलना। होना । पूर्ण समाप्ति । परिसमाप्ति [को०] । कापना । दे० 'परिस्पद' (को०] । परिसमाप्त-वि० [सं०] बिलकुल समाप्त | निश्शेष । परिष्यद-सक्षा पुं० [ स० परिप्यन्द ] १ प्रवाह । धारा । २ नदी। परिसमाप्ति-सज्ञा स्त्री॰ [०] दे॰ 'परिममापन' । दरिया । ३ द्वीप । टापू । परिसपहन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ तृण आदि को प्राग मे कोकना । परिष्यदी-वि० [स० परिष्यन्दिन् ] बहता हुआ। जिसका प्रवाह हो। २ यश की अग्नि में समिधा डालना। ३ यज्ञादि में अग्नि के परिष्वंग-सया पुं० [सं० परिप्वङ्ग] प्रालिंगन । उ०-और उस चारो ओर जलादि से मार्जन (को०)। ४ एकत्रीकरण । सुनसान में नि सग, खोजने सच्याति का परिष्वग ।-साम०, इक्ट्ठा करना (को०)। पृ० ४२। परिसर-वि० [स०] मिला हुआ । जुहा या लगा हुआ । परिष्वंजन-सशा पुं० [सं० परिष्वज्जन][वि परिप्वक्त, परिप्वाय परिसर-नवा' पुं० [स०] १ किसी स्थान के पास पास की भूमि | आदि ] पालिंगन । गले मिलना या गले से लगाना । छाती किसी घर के निकट का खुला मैदान । प्रांतभूमि । नदी या से लगना या लगाना। पहाड के पास पास की भूमि । २ मृत्यु । ३ विधि । ४,