पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१६०

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परिसरण २८६६ परिस्फुट शिरा या नाही। ५ अवसर । स्थिति । मौका (को०)। ६ परिस्फंद-वि० [सं० ] दूसरे के द्वारा पालित ( व्यक्ति ) । जिसका एक देवता (को०) । ७. विस्तार । व्यास (को॰) । पालन पोषण उसके माता पिता के अतिरिक्त किसी और परिसरण-सक्षा पुं० [सं०] [वि० परिसारी, परिसृत ] १ चलना। ने किया हो । परपुष्ट । टहनना । पर्यटन | २ पराभव । हार । ३ मृत्यु । मौत । परिस्कंघ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिस्कन्ध ] राशि । समूह [को०] । परिसर्प-सञ्ज्ञा पु० [स०] १. किसी के चारो ओर घूमना । परिक्रिया । परिस्कन्न-वि०, सक्षा पुं० [ स०] दे० 'परिष्करण' । परिक्रमण । २ टहलना । चलना । घूमना । फिरना । ३ परिस्तर-सशा पुं० [स] दे० 'परिस्तरण' [को०) । किसी की खोज में जाना । किसी के पीछे उसे ढूंढते हुए परिस्तरण-सज्ञा पुं॰ [सं०] १ छितराना । फेंकना या डालना । जाना। ४. साहित्यदर्पण के अनुसार नाटक मे किसी का (जैसे, पाग पर फूस का)। फैलाना । तानना । ३ लपेटना। किसी की खोज में भटकना जब कि खोजी जानेवाली वस्तु के श्रावरण करना। जाने की दिशा या अवस्थिति का स्थान अज्ञात हो, केवल मार्ग के चिह्नो आदि के सहारे उसका अनुमान किया जाय, परिस्तान-सशा पुं० [फा०] १ वह कल्पित लोक या स्थान जहाँ परियाँ रहती हों। परियों का लोक । वह स्थान जहाँ जैसे शकुतला नाटक के तीसरे प्रक में दुष्यत का शकुतला की खोज करना और निम्नलिखित दोहो में वर्णित चिह्नो से सु दर मनुष्यो विशेषत स्त्रियो का जमघटा हो । सौंदर्य का अखाडा। उसके जाने के रास्ते और ठहरने के स्थान का निश्चय करना। उ०—(क) जिन डारन ने मम प्रिया लुने फूल अरु पात । सूख्यो विशेष—यह शब्द 'परी' और 'स्तान' शब्दो का समास है । ये दूध न छन भरघो तिनकों अजौं लखात । (ख) लिए कमल रज दोनो ही शब्द फारसी के हैं तथापि 'परिस्तान' शब्द फारसी गघि अस कर मालिनी तरग। आय पवन लागत भली मदन किताबो मे नहीं मिलता। अतएव यह समास उर्दू वालों देत मम अग। (ग) दीखत पहू रेत मे नए खोज या द्वार । का ही रचा जान पडता है । अर्थात् यह शब्द फारस में नहीं आगे उठि, पाछे घसकि रहे नितवन भार । -शकुंतला नाटक किंतु भारत में बना है। ५ एक प्रकार का सांप । ६ घेरना । पावेष्टित करना (को०) परिस्तीर्ण-वि० [सं०] १ बिखराया हुआ। फैलाया हुआ।२ ७ सुश्रुत के अनुसार ११ क्षुद्र कुष्टो मे से एक । इसमें छोटी आवरित । आच्छादित [को०] । छोटी फु सियां निकलती हैं जो फूटकर फैलती जाती हैं । परिस्तृत-वि० [सं०] दे० 'परिस्तीर्ण' [को०] । फु सियों से पछा या पीव भी निकलता है। परिस्तोम-सज्ञा पुं० [ हाथी आदि की पीठ पर डाला जानेवाला परिसर्पण-सञ्ज्ञा पु० [ म०] १ चलना। टहलना । धूम ना । २ चित्रित वस्त्र । झूल । २ यज्ञ में प्रयुक्त एक पात्र (को०) । रेंगना। ३. इधर उधर माना जाना। आवागमन । इतस्तत परिस्थान-सज्ञा पुं० [स०] १ प्रालय | ग्रह । वेश्म । २. दृढ़ता। चक्रमण (को०)। स्थिरता । ३. ठोसपन । मजबूती [को०] परिसर्या-सच्चा स्त्री० [सं०] १ टहलना । भ्रमण करना । २ एक रोग [को०] । परिस्थिति-समा पुं० [सं०] स्थिति । अवस्था। हालत । परिसांत्वन-सज्ञा पुं० [सं० परिसान्त्वन ] ढाढस बंधाना । तसल्ली परिस्पद-सज्ञा पुं० [ स० परिस्पन्द ] कांपने का भाव। कंप । कप- देवा (को०] । कपी। बहुत जल्दी जल्दी हिलना। २ दबाना। मदन । परिसाम-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म० परिसामन् ] एक विशेष साम । ३. सजाव । सिंगार (को०)। ४. परिजन । परिवार । (को०)। परिसार-सज्ञा पु० [सं० ] घूमना । परिसरण करना (को०] । ५. सेवक । अनुगामी । अनुचर वर्ग (को०)। ६ पुष्पादि द्वारा केश का शृगार (को०)। परिसारक-मज्ञा पुं० [सं०] चलनेवाला । घूमनेवाला । भटकनेवाला । परिसारी-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० परिसारिन् ] दे० 'परिसारक' । परिस्पंदन-सञ्चा पुं० [स० परिस्पन्दन ] १. बहुत अधिक हिलना। खुब कापना । सम्यक् कपन । २. कापना । कपन । परिसिद्धिका–सञ्चा खी० [स०] वैद्यक में एक प्रकार की चावल की लपसी। परिस्पर्द्धा-सज्ञा श्री० [सं०] धन, बल, यश प्रादि में किसी के बरा- परिसीमा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ चारो घोर की सीमा। चौहद्दी । बर होने की इच्छा । प्रतिस्पर्धा । प्रतियोगिता । मुकाविला । लागडाट । चतु सीमा । २ सीमा । हद । काष्ठा । अवधि । उ०- तुम मेरी परिसीमा, तुम मम, दिक् काल रूप, तुम ही घर पाए परिस्पर्धी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० परिस्पर्छिन् ] परिस्पर्धा करनेवाला । हो यह जग जजाल रूप । -पवासि, पृ०६१ । प्रतियोगिता करनेवाला । मुकावला पा लागडाट करनेवाला । परिसूना-सचा पुं० [स०] वूघउखाने के बाहर मारा हुपा परिस्पर्धा-सक्षा श्री [ स०] दे॰ 'परिस्पर्द्धा' । पशु ( कौटि.)। परिस्पर्धी-वि० [सं० परिस्पर्छिन् ] दे० 'परिस्पर्धी' । परिसृप्त-वि० [सं०] लडाई से भागा हुआ ( सैनिक )। परिस्फुट-वि० [ स०] १ भली भांति व्यक्त। सम्यक् प्रकार से परिसेवना-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] विशेष रूप से की गई सेवा [को॰] । प्रकाशित । विलकुल प्रकट या खुला हुमा। २ व्यक्त । प्रका-