पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१६१

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परिहस्स द्राक्षामद्य । करना। परिस्फुरण २८७० शित । प्रकट । ३ खूब खिला हा। सम्यक् रूप से विक- परिस्नुषा-सशा रसी० [म.] १ मद्य । शराव । २ अंगूरी शराव । सित। ४ विकसित । खिला हुआ । परिस्फुरण-मज्ञा पुं० [सं०] १ कपिना। हिलना। कपन । २ परिस्वजन-मज्ञा पु० [स० परिस्वञ्जन] श्रालिंगन । परिप्वग (को०] । कलिकायुक्त होना । ३ सूझ जाना । मन मे एक व एक परिहँस- सम पुं० [ न० परिहास ] ईष्या । डाह । उ०-(क) पाना । चमकना (को०] । परिहम पिश्रर भए तेहिं घसा | लिए डक लोगन्ह जहें उसा। परिस्फुर्ति-सञ्ज्ञा न्त्री० [सं०] १ स्पष्टता । २ चमक (को०] । -जायसी प्र०, पृ० ४७ । (ख) परिहम मरसि कि कौनित लाजा । आपन जीउ देसि फेहि काजा । —जायसी ग्र०, परिस्मापन-संज्ञा पुं० [सं०] आश्चर्य, विस्मय या कुतूहल उत्पन्न पृ० १८१॥ परिस्यंद- सज्ञा पुं० [सं० परित्यद ] झरना। क्षरण । जैसे, हाथी परिहण-मा पुं० [२० परिधान, प्रा० परिहाण, देशी परिदय] वस्त्र पहनावा । पोशाक। के मस्तक से मद का परिस्पद । परिहत'- मज़ा पी० [सं० मि० (वैदिक) पराहत (= जुता हुआ)] परिसव-सज्ञा पुं० [ स०] १ टपकना । चूना या रसना । २ धीरे १ हल के अतिम और मुख्य भाग की वह मीषी खडी लकठी धीरे वहना । मद प्रवाह । झिरझिराकर बहना या झिरझिरा जिसमे ऊपर की ओर मुठिया होती है और नीचे की वहाव । मथर प्रवाह । ३ गर्भ का वाहर पाना । बच्चा पैदा पोर हरिन तथा तरेली या चौभी ठुकी रहती है। नगरा । होना । जैसे, गर्भ परिस्रव (को॰) । २ वह नगरा जिसमे तरेली की लकही मलग से नहीं लगानी परिस्राव-संज्ञा पुं० [सं०] १ सुश्रुत के अनुसार एक रोग जिसमे पडती किंतु जिमका निचला भाग स्वयं ही इस प्रकार टेढा गुदा से पित्त और कफ मिला हुआ पतला मल निकलता होता है कि उसी को नोकदार बनाकर उसमे फाल ठोंक रहता है। दिया जाता है। विशेष-कडे कोठेवाले को मृदु विरेचन देने से जब उभरा हुआ परिहत'-वि० [40] १ मृत । मुग्दा । नष्ट । मरा हुआ । २ सारा दोष शरीर के बाहर नहीं हो सकता तव वही दोप शिथिल | अस्तव्यस्त । ढीला ढाला। उ०-कौन कौन उपयुक्त रीति से निकलने लगता है । दस्त में कुछ कुछ मरोड तुम परिहतवमना म्लानमना, भूपतिता सी,। -पल्लव, भी होता है। इससे अरुचि और सच मगो में थकावट होती पृ०६६। है। कहते हैं, यह रोग वैद्य अथवा रोगी की अज्ञता के परिहरण-सज्ञा पुं० [सं०] [नि परिहरणीय, परिहर्तव्य, परिहत] कारण होता है। १ किसी के बिना पूछे अपने अधिकार में फर नेना । षबर- २ चूना । टपकना या बहना। दस्ती ले लेना । छीन लेना।। त्याग । परित्याग । छोउना। परिस्रावण-सज्ञा पुं० [स०] वह व रतन जिसमें से साफ करने के तजना । ३ दोष प्रनिष्टादि का उपचार या उपाप करना। लिये पानी टपकाया जाय । वह बरतन जिससे पानी टपका किसी प्रकार के ऐव, खरावी या बुराई को दूर करना, कर साफ किया जाय । छुडाना या हटाना । निवारण | निराकरण । परिस्रावी'-वि० [स० परिनाविन्] १ चूने, रसने या टपकनेवाला । परिहरणीय-वि० [सं०] १ हरण के योग्य । छीन लेने योग्य । क्षरणशील | बहनेवाला । स्रावशील । हरणीय । २ त्याग के योग्य । त्याज्य । छोर या तज परिझापी-सशा पुं० एक प्रकार का भगदर, जिसमें फोड़े से हर देने योग्य । ३ उपचारयोग्य । निवार्य । हटाने योग्य या समय गाढ़ा मवाद बहता रहता है। दूर करने योग्य। विशेष-कहते हैं, यह कफ के प्रकोप से होता है। फोडा कुछ परिहरना-क्रि० स० [ स० परिहरण ] १ त्यागना । छोडना । कुछ सफेद और बहुत कडा होता है। इसमें पीडा बहुत नहीं तज देना । उ०-(क ) विछुरत दीनदयाल, प्रिय तनु तृन होती । दे० 'भगदर। इव परिहरेउ ।-तुलसी (शब्द०) (ख) परिहरि सोच रहो तुम सोई। विन श्रोपधिहि व्याधि विधि खोई ।-तुलसी परिनुत्'–वि० [सं०] जिससे कुछ टपक या चू रहा हो । नावयुक्त । (शब्द०) २ छीन लेना। ३ नष्ट करना। उ०-का परिसूत्-सञ्ज्ञा स्त्री० मदिरा । मद्य । शराव । ( वैदिक ) । करिक तुव सैन सनु को वल परिहरई-भारतेंदु प्र.. परिनुत'–वि० [ सं०] १ जो चू या टपक रहा हो । नावयुक्त । भा०, २, पृ० ६२३ । २ टपकाया हुमा। निचोठा हुमा। जिसमें से जल का प्रश परिहस-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं० परिहास ] १ परिहास । हंसी दिल्लगी। अलग कर लिया गया हो। मसखरी। २ रज । खेद । दुख । उ०-कठ घघन न मोनि परिनुत-सज्ञा पुं० फूलों का सार । पुष्पसार । इत्र (वैदिक) । पावै, हृदय परिहस भीन) नैन जल भरि रोइ दीन्हो, ग्रसित परिसुत दधि-सज्ञा पुं० [ स० ] ऐसा दही जिसका पानी निचोड प्रापद दीन ।—सूर (शब्द॰) । लिया गया हो। निचोडा हुआ दही। वैद्यक में ऐसे दही को परिसित--वि० [सं० ] जिसका परिहास किया गया हो (फो०] । वातपित्तनाशक, कफकारी और पोषक लिखा है। परिहस्त-सज्ञा पुं॰ [ स०] अंगूठी । मुद्रिका । मुंद्री को।